Books - कर्मकांड प्रदीप
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Language: HINDI
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विद्यारम्भ संस्कार
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विशेष व्यवस्था- विद्यारम्भ संस्कार के लिए सामान्य तैयारी के अतिरिक्त नीचे लिखी व्यवस्थाएँ पहले से ही बना लेनी चाहिए। १. पूजन के लिए गणेशजी एवं माँ सरस्वती के चित्र या प्रतिमाएँ। २. पट्टी, दवात और लेखनी, पूजन के लिए। बच्चे को लिखने में सुविधा हो, इसके लिए स्लेट, खड़िया भी रखी जा सकती है। ३. गुरु पूजन के लिए प्रतीक रूप में नारियल रखा जा सकता है। बालक के शिक्षक प्रत्यक्ष में हों, तो उनका पूजन भी कराया जा सकता है। विशेष कर्मकाण्ड- मङ्गलाचरण से लेकर रक्षाविधान तक के क्रम पूरे करके विशेष कर्मकाण्ड कराया जाता है।
।। गणेश पूजन।। क्रिया और भावना- बालक के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली देकर मन्त्र के साथ गणपति जी के चित्र के सामने अर्पित कराएँ। भावना करें कि इस आवाहन- पूजन के द्वारा विवेक के अधिष्ठाता से बालक की भावना का स्पर्श हो रहा है। उनके अनुग्रह से बालक मेधावी और विवेकशील बनेगा। बच्चे के हाथ में अक्षत- पुष्प देकर सूत्र दुहरवायें-
ॐ विद्यां संवर्धयिष्यामि। (बच्चे में शिक्षा के साथ- साथ विद्या का भी विकास करेंगे।) तदुपरान्त मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा वेदी पर उसे चढ़वा दें।
ॐ गणानां त्वा गणपति* हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति* हवामहे निधीनां त्वा निधिपति* हवामहे वसोमम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥ ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि॥ -२३.१९
॥ सरस्वती पूजन॥ क्रिया और भावना- बालक के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली आदि देकर मन्त्रोपरान्त माँ सरस्वती के चित्र के आगे पूजा भाव से समर्पित कराएँ। भावना करें कि यह बालक कला, ज्ञान, संवेदना की देवी माता सरस्वती के स्नेह का पात्र बन रहा है। उनकी छत्रछाया का रसास्वादन करके यह ज्ञानार्जन में सतत रस लेता हुआ आगे बढ़ सकेगा। पुनः- अक्षत देकर सूत्र दुहरवायें-
ॐ कलां संवेदनशीलतां वर्धयिष्यामि। (बच्चे में कलात्मकता और संवेदनशीलता का विकास करेंगे।) तदुपरान्त मन्त्र बोलते हुए उसे पूजा- वेदी पर चढ़वा दें।
ॐ पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥ ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि। -२०.८४
॥ उपकरणों- माध्यमों की पवित्रता॥ शिक्षा की तीन अधिष्ठात्री देवियाँ- उपासना विज्ञान की मान्यताओं के आधार पर कलम की अधिष्ठात्री देवी 'धृति' दवात की अधिष्ठात्री देवी 'पुष्टि' और पट्टी की अधिष्ठात्री देवी 'तुष्टि' मानी गई है। षोडश मातृकाओं में धृति, पुष्टि तथा तुष्टि तीन देवियाँ उन तीन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो विद्या प्राप्ति के लिए आधारभूत हैं। विद्यारम्भ संस्कार में कलम- पूजन का मन्त्र बोलते समय धृति का आवाहन करते हैं। निर्धारित मन्त्रों में उन्हीं की वन्दना, अभ्यर्थना की गयी है। बच्चे एवं अभिभावकों के हाथ में अक्षत- पुष्प देकर सूत्र दुहरवायें-
ॐ विद्यासंसाधनमहत्त्वं स्वीकरिष्ये। (विद्या विकास के साधनों की गरिमा का अनुभव करते रहेंगे।) इसके बाद स्लेट, बत्ती, कलम- कॉपी पर मन्त्रोच्चारणपूर्वक चढ़वा दें।
॥ लेखनी पूजन॥ क्रिया और भावना- पूजन सामग्री बालक के हाथ में दी जाए। पूजा की चौकी पर स्थापित कलम पर उसे मन्त्र के साथ श्रद्धापूर्वक चढ़ाया जाए। भावना की जाए कि धृति शक्ति बालक की विद्या के प्रति अभिरुचि को परिष्कृत कर रही है।
ॐ पुरुदस्मो विषुरूपऽ इन्दुरन्तर्महिमानमानञ्जधीरः। एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीम् अष्टापदीं भुवनानु प्रथन्ता* स्वाहा॥- ८.३०
॥ दवात पूजन॥ क्रिया और भावना- पूजा वेदी पर स्थापित दवात पर बालक के हाथ से मन्त्रोच्चार के साथ पूजन सामग्री अर्पित कराई जाए। भावना की जाए कि पुष्टि शक्ति के सान्निध्य से बालक में बुद्धि की तीव्रता एवं एकाग्रता की उपलब्धि हो रही है।
ॐ देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीर्वयोधसं पतिमिन्द्रमवर्द्धयन्। जगत्या छन्दसेन्द्रिय * शूषमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥- २८.४१
॥ पट्टी पूजन॥ क्रिया और भावना- बालक द्वारा मन्त्रोच्चार के साथ पूजा स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजन सामग्री अर्पित कराई जाए। भावना की जाए कि इस आराधना से बालक तुष्टि शक्ति से सम्पर्क स्थापित कर रहा है। उस शक्ति से परिश्रम, साधना करने की क्षमता का विकास होगा।
ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां पत्नी सुकृतं बिभर्ति। अपा*रसेन वरुणो न साम्नेन्द्र * श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥- १९.९४
॥ गुरु पूजन॥ क्रिया और भावना- मन्त्र के साथ बालक द्वारा गुरु के अभाव में उनके प्रतीक का पूजन कराया जाए। भावना की जाए कि इस श्रद्धा प्रक्रिया द्वारा बालक में वे शिष्योचित गुण विकसित हो रहे हैं, जिनके आधार पर शिष्य भी धन्य हो जाता है और गुरु भी। गुरु तत्त्व की कृपा का भाजन बालक बना रहे। हाथ में अक्षत- पुष्प देकर बच्चे एवं अभिभावकों से सूत्र दुहरवायें-
ॐ आचार्यनिष्ठां वर्धयिष्यामि। (शिक्षकों- गुरुजनों के प्रति निष्ठा को सतत बढ़ाते रहेंगे।)
मंत्र के साथ गुरु पूजन करें।
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु यद्दीदयच्छवसऽऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। उपयामगृहीतोसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा॥ ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि। -२६.३, तैत्ति०सं० १.८.२२.१२।
॥ अक्षर लेखन एवं पूजन॥ क्रिया और भावना- पट्टी पर बालक के हाथ से 'ॐ भूर्भुवः स्वः' शब्द लिखाया जाए। खड़िया से उन अक्षरों को अध्यापक बना दें और बालक उस पर कलम फेरकर अक्षर बना दे अथवा अध्यापक और छात्र दोनों कलम पकड़ लें और उपर्युक्त पञ्चाक्षरी गायत्री मन्त्र को पट्टी पर लिख दें। ज्ञान का उदय अन्तःकरण में होता है। ज्ञान की प्रथम अभिव्यक्ति अक्षरों को पूजकर की जाती है। भविष्य में बच्चे में साधना के प्रति उमङ्ग पैदा की जाए।अक्षत, पुष्प लेकर अक्षर पूजन करें। सूत्र दुहरायें-
ॐ नीतिनिष्ठां वर्धयिष्यामि। (बच्चे में नीति के प्रति निष्ठा की वृद्धि करते रहेंगे।) मन्त्र- ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च। -- १६.४१ इसके बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मन्त्र की आहुति तक का क्रम चले। बालक को भी उसमें सम्मिलित रखें।
॥ विशेष आहुति॥
हवन सामग्री में कुछ मिष्टान्न मिलाकर पाँच आहुतियाँ निम्न मन्त्र से कराएँ। भावना करें, यज्ञीय ऊर्जा बालक के अन्दर संस्कार द्वारा पड़े प्रभाव को स्थिर और बलिष्ठ बना रही है।
ॐ सरस्वती मनसा पेशलं वसु नासत्याभ्यां वयति दर्शतं वपुः। रसं परिस्रुता न रोहितं नग्नहुर्धीरस्तसरं न वेम स्वाहा॥ इदं सरस्वत्यै इदं न मम। -१९.८३
तत्पश्चात् यज्ञ के शेष क्रम स्विष्टकृत(पृष्ठ १००- १२१) से आगे पूरा करके आशीर्वचन, विसर्जन एवं जयघोष के बाद कार्यक्रम का समापन करें।
।। गणेश पूजन।। क्रिया और भावना- बालक के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली देकर मन्त्र के साथ गणपति जी के चित्र के सामने अर्पित कराएँ। भावना करें कि इस आवाहन- पूजन के द्वारा विवेक के अधिष्ठाता से बालक की भावना का स्पर्श हो रहा है। उनके अनुग्रह से बालक मेधावी और विवेकशील बनेगा। बच्चे के हाथ में अक्षत- पुष्प देकर सूत्र दुहरवायें-
ॐ विद्यां संवर्धयिष्यामि। (बच्चे में शिक्षा के साथ- साथ विद्या का भी विकास करेंगे।) तदुपरान्त मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा वेदी पर उसे चढ़वा दें।
ॐ गणानां त्वा गणपति* हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति* हवामहे निधीनां त्वा निधिपति* हवामहे वसोमम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥ ॐ गणपतये नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि॥ -२३.१९
॥ सरस्वती पूजन॥ क्रिया और भावना- बालक के हाथ में अक्षत, पुष्प, रोली आदि देकर मन्त्रोपरान्त माँ सरस्वती के चित्र के आगे पूजा भाव से समर्पित कराएँ। भावना करें कि यह बालक कला, ज्ञान, संवेदना की देवी माता सरस्वती के स्नेह का पात्र बन रहा है। उनकी छत्रछाया का रसास्वादन करके यह ज्ञानार्जन में सतत रस लेता हुआ आगे बढ़ सकेगा। पुनः- अक्षत देकर सूत्र दुहरवायें-
ॐ कलां संवेदनशीलतां वर्धयिष्यामि। (बच्चे में कलात्मकता और संवेदनशीलता का विकास करेंगे।) तदुपरान्त मन्त्र बोलते हुए उसे पूजा- वेदी पर चढ़वा दें।
ॐ पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः॥ ॐ सरस्वत्यै नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि। -२०.८४
॥ उपकरणों- माध्यमों की पवित्रता॥ शिक्षा की तीन अधिष्ठात्री देवियाँ- उपासना विज्ञान की मान्यताओं के आधार पर कलम की अधिष्ठात्री देवी 'धृति' दवात की अधिष्ठात्री देवी 'पुष्टि' और पट्टी की अधिष्ठात्री देवी 'तुष्टि' मानी गई है। षोडश मातृकाओं में धृति, पुष्टि तथा तुष्टि तीन देवियाँ उन तीन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो विद्या प्राप्ति के लिए आधारभूत हैं। विद्यारम्भ संस्कार में कलम- पूजन का मन्त्र बोलते समय धृति का आवाहन करते हैं। निर्धारित मन्त्रों में उन्हीं की वन्दना, अभ्यर्थना की गयी है। बच्चे एवं अभिभावकों के हाथ में अक्षत- पुष्प देकर सूत्र दुहरवायें-
ॐ विद्यासंसाधनमहत्त्वं स्वीकरिष्ये। (विद्या विकास के साधनों की गरिमा का अनुभव करते रहेंगे।) इसके बाद स्लेट, बत्ती, कलम- कॉपी पर मन्त्रोच्चारणपूर्वक चढ़वा दें।
॥ लेखनी पूजन॥ क्रिया और भावना- पूजन सामग्री बालक के हाथ में दी जाए। पूजा की चौकी पर स्थापित कलम पर उसे मन्त्र के साथ श्रद्धापूर्वक चढ़ाया जाए। भावना की जाए कि धृति शक्ति बालक की विद्या के प्रति अभिरुचि को परिष्कृत कर रही है।
ॐ पुरुदस्मो विषुरूपऽ इन्दुरन्तर्महिमानमानञ्जधीरः। एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीम् अष्टापदीं भुवनानु प्रथन्ता* स्वाहा॥- ८.३०
॥ दवात पूजन॥ क्रिया और भावना- पूजा वेदी पर स्थापित दवात पर बालक के हाथ से मन्त्रोच्चार के साथ पूजन सामग्री अर्पित कराई जाए। भावना की जाए कि पुष्टि शक्ति के सान्निध्य से बालक में बुद्धि की तीव्रता एवं एकाग्रता की उपलब्धि हो रही है।
ॐ देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीर्वयोधसं पतिमिन्द्रमवर्द्धयन्। जगत्या छन्दसेन्द्रिय * शूषमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज॥- २८.४१
॥ पट्टी पूजन॥ क्रिया और भावना- बालक द्वारा मन्त्रोच्चार के साथ पूजा स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजन सामग्री अर्पित कराई जाए। भावना की जाए कि इस आराधना से बालक तुष्टि शक्ति से सम्पर्क स्थापित कर रहा है। उस शक्ति से परिश्रम, साधना करने की क्षमता का विकास होगा।
ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां पत्नी सुकृतं बिभर्ति। अपा*रसेन वरुणो न साम्नेन्द्र * श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥- १९.९४
॥ गुरु पूजन॥ क्रिया और भावना- मन्त्र के साथ बालक द्वारा गुरु के अभाव में उनके प्रतीक का पूजन कराया जाए। भावना की जाए कि इस श्रद्धा प्रक्रिया द्वारा बालक में वे शिष्योचित गुण विकसित हो रहे हैं, जिनके आधार पर शिष्य भी धन्य हो जाता है और गुरु भी। गुरु तत्त्व की कृपा का भाजन बालक बना रहे। हाथ में अक्षत- पुष्प देकर बच्चे एवं अभिभावकों से सूत्र दुहरवायें-
ॐ आचार्यनिष्ठां वर्धयिष्यामि। (शिक्षकों- गुरुजनों के प्रति निष्ठा को सतत बढ़ाते रहेंगे।)
मंत्र के साथ गुरु पूजन करें।
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु यद्दीदयच्छवसऽऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। उपयामगृहीतोसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा॥ ॐ श्री गुरवे नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि। -२६.३, तैत्ति०सं० १.८.२२.१२।
॥ अक्षर लेखन एवं पूजन॥ क्रिया और भावना- पट्टी पर बालक के हाथ से 'ॐ भूर्भुवः स्वः' शब्द लिखाया जाए। खड़िया से उन अक्षरों को अध्यापक बना दें और बालक उस पर कलम फेरकर अक्षर बना दे अथवा अध्यापक और छात्र दोनों कलम पकड़ लें और उपर्युक्त पञ्चाक्षरी गायत्री मन्त्र को पट्टी पर लिख दें। ज्ञान का उदय अन्तःकरण में होता है। ज्ञान की प्रथम अभिव्यक्ति अक्षरों को पूजकर की जाती है। भविष्य में बच्चे में साधना के प्रति उमङ्ग पैदा की जाए।अक्षत, पुष्प लेकर अक्षर पूजन करें। सूत्र दुहरायें-
ॐ नीतिनिष्ठां वर्धयिष्यामि। (बच्चे में नीति के प्रति निष्ठा की वृद्धि करते रहेंगे।) मन्त्र- ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च। -- १६.४१ इसके बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मन्त्र की आहुति तक का क्रम चले। बालक को भी उसमें सम्मिलित रखें।
॥ विशेष आहुति॥
हवन सामग्री में कुछ मिष्टान्न मिलाकर पाँच आहुतियाँ निम्न मन्त्र से कराएँ। भावना करें, यज्ञीय ऊर्जा बालक के अन्दर संस्कार द्वारा पड़े प्रभाव को स्थिर और बलिष्ठ बना रही है।
ॐ सरस्वती मनसा पेशलं वसु नासत्याभ्यां वयति दर्शतं वपुः। रसं परिस्रुता न रोहितं नग्नहुर्धीरस्तसरं न वेम स्वाहा॥ इदं सरस्वत्यै इदं न मम। -१९.८३
तत्पश्चात् यज्ञ के शेष क्रम स्विष्टकृत(पृष्ठ १००- १२१) से आगे पूरा करके आशीर्वचन, विसर्जन एवं जयघोष के बाद कार्यक्रम का समापन करें।