Books - कर्मकांड प्रदीप
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Language: HINDI
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नामकरण संस्कार
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विशेष व्यवस्था- यज्ञ पूजन की सामान्य व्यवस्था के साथ ही नामकरण संस्कार के लिए विशेष रूप से इन व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए। १- यदि दसवें दिन नामकरण घर में ही कराया जा रहा है, तो वहाँ समय पर स्वच्छता का कार्य पूरा कर लिया जाए तथा शिशु एवं माता को समय पर संस्कार के लिए तैयार कराया जाए। २- अभिषेक के लिए कलश- पल्लव युक्त हो तथा कलश के कण्ठ में कलावा बँधा हो, रोली से ॐ, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्न बने हों। ३- शिशु की कमर में बाँधने के लिए मेखला सूती या रेशमी धागे की बनी हो। न हो, तो कलावा के सूत्र की बना लेनी चाहिए। ४- मधु प्राशन के लिए शहद तथा चटाने के लिए चाँदी की चम्मच। वह न हो, तो चाँदी की सलाई या अँगूठी अथवा स्टील की चम्मच आदि का प्रयोग किया जा सकता है। ५- संस्कार के समय जहाँ माता शिशु को लेकर बैठे, वहीं वेदी के पास थोड़ा सा स्थान स्वच्छ करके, उस पर स्वस्तिक चिह्न बना दिया जाए। इसी स्थान पर बालक को भूमि स्पर्श कराया जाए। ६- नाम घोषणा के लिए थाली, सुन्दर तख्ती आदि हो। उस पर निर्धारित नाम पहले से सुन्दर ढङ्ग से लिखा रहे। चन्दन- रोली से लिखकर, उस पर चावल तथा फूल की पंखुड़ियाँ चिपकाकर, साबूदाने हलके पकाकर, उनमें रङ्ग मिलाकर, उन्हें अक्षरों के आकार में चिपकाकर, स्लेट या तख्ती पर रङ्ग- बिरङ्गी खड़िया के रङ्गों से नाम लिखे जा सकते हैं। थाली, ट्रे या तख्ती को फूलों से सजाकर उस पर एक स्वच्छ वस्त्र ढककर रखा जाए। नाम घोषणा के समय उसका अनावरण किया जाए। ७- विशेष आहुति के लिए खीर, मिष्टान्न या मेवा जिसे हवन सामग्री में मिलाकर आहुतियाँ दी जा सकें। ८- शिशु को माँ की गोद में रहने दिया जाए। पति उसके बायीं ओर बैठे। यदि शिशु सो रहा हो या शान्त रहता है, तो माँ की गोद में प्रारम्भ से ही रहने दिया जाए। अन्यथा कोई अन्य उसे सँभाले, केवल विशेष कर्मकाण्ड प्रारम्भ किया जाए।
॥ अभिषेक॥ क्रिया और भावना- सिञ्चन के लिए तैयार कलश में मुख्य कलश का थोड़ा- सा जल या गङ्गाजल मिलाएँ। मन्त्र के साथ बालक, संस्कार कराने वालों तथा उपकरणों पर सिञ्चन किया जाए।
भावना करें कि जो जीवात्मा शिशु के रूप में ईश्वर प्रदत्त सुअवसर का लाभ लेने अवतरित हुई है, उसका अभिनन्दन किया जा रहा है। ईश्वरीय योजना के अनुरूप शिशु में उत्तरदायित्वों के निर्वाह की क्षमता पैदा करने के लिए श्रेष्ठ संस्कारों तथा सत् शक्तियों के स्रोत से, उस पर अनुदानों की वृष्टि हो रही है। उपस्थित सभी परिजन अपनी भावनात्मक संगति से उस प्रक्रिया को अधिक प्राणवान् बना रहे हैं।
ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवः ता नऽ ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे॥ ॐ यो वः शिवतमो रसः तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः॥ ॐ तस्माऽ अरंगमामवो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जन यथा च नः॥- ३६.१४
॥ मेखला बन्धन॥ क्रिया और भावना- मन्त्र के साथ शिशु के पिता उसकी कमर में मेखला बाँधें। भावना करें कि इस संस्कारित सूत्र के साथ बालक में तत्परता, जागरूकता, संयमशीलता जैसी सत्प्रवृत्तियों की स्थापना की जा रही है। मेखला बाँधने से पहले निम्न सूत्र दुहराये- ॐ स्फूर्तं तत्परं करिष्यामि। (शिशु में स्फूर्ति और तत्परता बढ़ायेंगे।) शिशु के कमर में सूत्र बाँधते हुए यह मन्त्र बोला जाये- ॐ इयं दुरुक्तं परिबाधमाना, वर्णं पवित्रं पुनतीमआगात्। प्राणापानाभ्यां बलमादधाना, स्वसादेवी सुभगा मेखलेयम्॥ -पार०गृ०सू० २.२.८
।। मधु प्राशन।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ थोड़ा- सा शहद निर्धारित उपकरण से बालक को चटाया जाए। घर के किसी बुजुर्ग या उपस्थित समुदाय में से किन्हीं चरित्रनिष्ठ सम्भ्रान्त व्यक्ति द्वारा भी यह कार्य कराया जा सकता है। भावना की जाए कि सभी उपस्थित परिजनों के भाव- संयोग से बालक की जिह्वा में शुभ, प्रिय, हितकारी, कल्याणप्रद वाणी के संस्कार स्थापित किये जा रहे हैं। माता चम्मच में शहद लेकर सूत्र दुहराये- ॐ शिष्टतां शालीनतां वर्धयिष्यामि। (शिशु में शिष्टता- शालीनता की वृद्धि करेंगे।) शिशु को शहद चटाते हुए यह मन्त्र बोला जाये- ॐ प्रते ददामि मधुनो घृतस्य, वेदं सवित्रा प्रसृतं मघोनाम्। आयुष्मान् गुप्तो देवताभिः, शतं जीव शरदो लोके अस्मिन्।।- आश्व०गृ०सू०१.१५.१
।। सूर्य नमस्कार।। क्रिया और भावना- यदि सूर्य को देखने की स्थित हो, तो माता शिशु को बाहर ले जाकर सूर्य दर्शन कराए। सूर्य देव को नमस्कार करें। किसी कारण संस्कार के समय पूर्व दृश्यमान न हो, तो उनका ध्यान करके नमस्कार करें। भावना की जाए कि माँ अपने स्नेह के प्रभाव से बालक में तेजस्विता के प्रति आकर्षण पैदा कर रही है, बालक में तेजस्वी जीवन के प्रति सहज अनुराग पैदा हो रहा है। इसे सब मिलकर स्थिर रखेंगे, बढ़ाते रहेंगे। पिता शिशु को गोदी में सूत्र दूहराये- ॐ तेजस्वितां वर्धयिष्यामि। (शिशु की तेजस्विता में वृद्धि करेंगे।) इसके बाद उसे सूर्य के प्रकाश में ले जायें। इस बीच गायत्री मन्त्र का सस्वर पाठ चलायें।
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत * शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।। -३६.२४
।। भूमि पूजन एवं स्पर्श।। क्रिया और भावना- शिशु के माता- पिता हाथ में रोली, अक्षत, पुष्प आदि लेकर मन्त्र के साथ भूमि का पूजन करें। भावना की जाए कि धरती माता से इस क्षेत्र में बालक के हित के लिए श्रेष्ठ संस्कारों को घनीभूत करने की प्रार्थना की जा रही है। अपने आवाहन- पूजन से उस पुण्य- प्रक्रिया को गति दी जा रही है। मन्त्र पूरा होने पर पूजन सामग्री पर चढ़ाई जाए। माता हाथ में अक्षत- पुष्प लेकर सूत्र दुहराये-
ॐ सहिष्णुं कर्तव्यनिष्ठं विधास्यामि। (शिशु को सहनशील और कर्तव्यनिष्ठ बनायेंगे।) सूत्र पूरा होने पर अक्षत- पुष्प पृथ्वी पर अर्पित करें और मन्त्रोच्चार के साथ शिशु का स्पर्श पृथ्वी से करें- ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः।। ॐ पृथिव्यै नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि।- ८.३२
स्पर्श और भावना- माता बालक को मन्त्रोच्चार के साथ उस पूजित भूमि पर लिदा दे। सभी लोग हाथ जोड़कर भावना करें कि जैसे माँ अपनी गोद में बालक को अपने स्नेह- पुलकन के साथ जाने- अनजाने में श्रेष्ठ प्रवृत्ति और गहरा सन्तोष देती रहती है- वैसे ही माता वसुन्धरा इस बालक को अपना लाल मानकर गोद में लेकर धन्य बना रही है।
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः। अप नः शोशुचदघम्।। -३५.२१
।। नाम घोषणा।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ नाम से सज्जित थाली या तख्ती पर से आच्छादन हटाया जाए। सबको दिखाया जाए। यह कार्य आचार्य या कोई सम्माननीय व्यक्ति करें। भावना की जाए कि यह घोषित नाम ऐसे व्यक्तित्व का प्रतीक बनेगा, जो सबका गौरव बढ़ाने वाला होगा।
ॐ मेधां ते देवः सविता मेधां देवी सरस्वती। मेधां ते अश्विनौ देवौ आधत्तां पुष्करस्त्रजौ।। -आश्व०गृ०१.१५.२ मन्त्र पूरा होने पर सबको नाम दिखाएँ और तीन नारे लगवाएँ-
(प्रमुख कहें) (सब कहें) १. शिशु......................चिरञ्जीवी हो। (तीन बार कहें।) २. शिशु......................धर्मशील हो। (तीन बार कहें।) ३. शिशु......................प्रगतिशील हो। (तीन बार कहें।) ।। परस्पर परिवर्तन।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ माता शिुशु पहले उसके पिता की गोद में दे। पिता अन्य परिजनों को दे। शिशु एक- दूसरे के हाथ में जाता स्नेह- दुलार पाता हुआ पुनः माँ के पास पहुँच जाए। भावना की जाए कि शिशु सबका स्नेह पात्र बन रहा है, सबके स्नेह- अनुदानों का अधिकार पा रहा है। सभी उपस्थित जन सूत्र दुहराये-
ॐ उपलालनं करिष्यामि- अनुशिष्टं विधास्यामि। (शिशु को दुलार देंगे- अनुशासन में रखेंगे।) मन्त्र- ॐ अथ सुमङ्गल नामान*ह्वयति बहुकार श्रेयस्कर भूयस्करेति। यऽ एव वन्नामाभवति कल्याणमेवैतन्मानुष्यै वाचो वदति।।
।। लोकदर्शन।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ नियुक्त व्यक्ति उसे गोद में उठायें- खुले में जाकर विभिन्न दृश्य दिखाकर ले आएँ। भावना की जाए कि शिशु में इस विराट् विश्व को सही दृष्टि से देखने, समझने एवं प्रयुक्त करने की क्षमता देव अनुग्रह और सद्भावना के सहयोग से प्राप्त हो रही है। ॐ हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकऽ आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।। -१३.४
इसके बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मन्त्र की आहुतियाँ पूरी करने का क्रम चलाए जाए, तब विशेष आहुतियाँ दी जाएँ।
।। विशेष आहुति।। क्रिया और भावना- हवन सामग्री के साथ निर्धारित मेवा- मिष्टान्न खीर आदि मिलाकर पाँच आहुतियाँ नीचे लिखे मन्त्र से दी जाएँ। भावना की जाए कि विशेष उद्देश्य के लिए विशेष वातावरण का निर्माण हो रहा है।
ॐ भूर्भुवः स्वः। अग्निऋर्षिः पवमानः पाञ्चजन्यः पुरोहितः। तमीमहे महागयं स्वाहा।। इदं अग्नये पवमानाय इदं न मम।- ऋ०९.६६.२०
।। बालप्रबोधन।। क्रिया और भावना- आचार्य शिशु को गोद में लें। उसके कान के पास नीचे वाला मन्त्र बोलें। सभी लोग भावना करें कि भाव- भाषा को शिशु हृदयङ्गम कर रहा है और श्रेष्ठ सार्थक जीवन की दृष्टि प्राप्त कर रहा है। आचार्य या सम्माननीय व्यक्ति शिशु को अपनी गोद में लेकर उसके कान के पास बोलें-
(क) ॐ भो तात! त्वं ईश्वरांशोऽसि। (हे तात! तुम ईश्वर के अंश हो।) (ख) मनुष्यता तव महती विशिष्टता। (तुम्हारी सबसे बड़ी विशेषता मनुष्यता है।) (ग) ऋष्यनुशासनं पालयेः। (जीवन भर ऋषि- अनुशासन का पालन करना।)
ॐ शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरञ्जनोऽसि, संसारमाया परिवर्जितोऽसि। संसारमायां त्यज मोहनिद्रां, त्वां सद्गुरुः शिक्षयतीति सूत्रम्।।
प्रबोधन के बाद स्विष्टकृत् होम से लेकर विसर्जन (पृष्ठ 100-121) तक के शेष कृत्य पूरे किये जाएँ। विसर्जन के पूर्व आचार्य, शिशु एवं अभिभावकों को पुष्प, अक्षत, तिलक सहित आशीर्वाद दें, फिर सभी मङ्गल मन्त्रों के साथ अक्षत, पुष्प वृष्टि करके आशीर्वाद दें।
आशीवर्चन- आचार्य शिशु तथा अभिभावक को आशीर्वाद दें। नीचे लिखे मन्त्र के अतिरिक्त आशीर्वचन के अन्य मन्त्रों का भी पाठ करना चाहिए। हे बालक! त्वम् आयुष्मान् वर्चस्वी तेजस्वी श्रीमान् भूयाः।
॥ अभिषेक॥ क्रिया और भावना- सिञ्चन के लिए तैयार कलश में मुख्य कलश का थोड़ा- सा जल या गङ्गाजल मिलाएँ। मन्त्र के साथ बालक, संस्कार कराने वालों तथा उपकरणों पर सिञ्चन किया जाए।
भावना करें कि जो जीवात्मा शिशु के रूप में ईश्वर प्रदत्त सुअवसर का लाभ लेने अवतरित हुई है, उसका अभिनन्दन किया जा रहा है। ईश्वरीय योजना के अनुरूप शिशु में उत्तरदायित्वों के निर्वाह की क्षमता पैदा करने के लिए श्रेष्ठ संस्कारों तथा सत् शक्तियों के स्रोत से, उस पर अनुदानों की वृष्टि हो रही है। उपस्थित सभी परिजन अपनी भावनात्मक संगति से उस प्रक्रिया को अधिक प्राणवान् बना रहे हैं।
ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवः ता नऽ ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे॥ ॐ यो वः शिवतमो रसः तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः॥ ॐ तस्माऽ अरंगमामवो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जन यथा च नः॥- ३६.१४
॥ मेखला बन्धन॥ क्रिया और भावना- मन्त्र के साथ शिशु के पिता उसकी कमर में मेखला बाँधें। भावना करें कि इस संस्कारित सूत्र के साथ बालक में तत्परता, जागरूकता, संयमशीलता जैसी सत्प्रवृत्तियों की स्थापना की जा रही है। मेखला बाँधने से पहले निम्न सूत्र दुहराये- ॐ स्फूर्तं तत्परं करिष्यामि। (शिशु में स्फूर्ति और तत्परता बढ़ायेंगे।) शिशु के कमर में सूत्र बाँधते हुए यह मन्त्र बोला जाये- ॐ इयं दुरुक्तं परिबाधमाना, वर्णं पवित्रं पुनतीमआगात्। प्राणापानाभ्यां बलमादधाना, स्वसादेवी सुभगा मेखलेयम्॥ -पार०गृ०सू० २.२.८
।। मधु प्राशन।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ थोड़ा- सा शहद निर्धारित उपकरण से बालक को चटाया जाए। घर के किसी बुजुर्ग या उपस्थित समुदाय में से किन्हीं चरित्रनिष्ठ सम्भ्रान्त व्यक्ति द्वारा भी यह कार्य कराया जा सकता है। भावना की जाए कि सभी उपस्थित परिजनों के भाव- संयोग से बालक की जिह्वा में शुभ, प्रिय, हितकारी, कल्याणप्रद वाणी के संस्कार स्थापित किये जा रहे हैं। माता चम्मच में शहद लेकर सूत्र दुहराये- ॐ शिष्टतां शालीनतां वर्धयिष्यामि। (शिशु में शिष्टता- शालीनता की वृद्धि करेंगे।) शिशु को शहद चटाते हुए यह मन्त्र बोला जाये- ॐ प्रते ददामि मधुनो घृतस्य, वेदं सवित्रा प्रसृतं मघोनाम्। आयुष्मान् गुप्तो देवताभिः, शतं जीव शरदो लोके अस्मिन्।।- आश्व०गृ०सू०१.१५.१
।। सूर्य नमस्कार।। क्रिया और भावना- यदि सूर्य को देखने की स्थित हो, तो माता शिशु को बाहर ले जाकर सूर्य दर्शन कराए। सूर्य देव को नमस्कार करें। किसी कारण संस्कार के समय पूर्व दृश्यमान न हो, तो उनका ध्यान करके नमस्कार करें। भावना की जाए कि माँ अपने स्नेह के प्रभाव से बालक में तेजस्विता के प्रति आकर्षण पैदा कर रही है, बालक में तेजस्वी जीवन के प्रति सहज अनुराग पैदा हो रहा है। इसे सब मिलकर स्थिर रखेंगे, बढ़ाते रहेंगे। पिता शिशु को गोदी में सूत्र दूहराये- ॐ तेजस्वितां वर्धयिष्यामि। (शिशु की तेजस्विता में वृद्धि करेंगे।) इसके बाद उसे सूर्य के प्रकाश में ले जायें। इस बीच गायत्री मन्त्र का सस्वर पाठ चलायें।
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत * शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।। -३६.२४
।। भूमि पूजन एवं स्पर्श।। क्रिया और भावना- शिशु के माता- पिता हाथ में रोली, अक्षत, पुष्प आदि लेकर मन्त्र के साथ भूमि का पूजन करें। भावना की जाए कि धरती माता से इस क्षेत्र में बालक के हित के लिए श्रेष्ठ संस्कारों को घनीभूत करने की प्रार्थना की जा रही है। अपने आवाहन- पूजन से उस पुण्य- प्रक्रिया को गति दी जा रही है। मन्त्र पूरा होने पर पूजन सामग्री पर चढ़ाई जाए। माता हाथ में अक्षत- पुष्प लेकर सूत्र दुहराये-
ॐ सहिष्णुं कर्तव्यनिष्ठं विधास्यामि। (शिशु को सहनशील और कर्तव्यनिष्ठ बनायेंगे।) सूत्र पूरा होने पर अक्षत- पुष्प पृथ्वी पर अर्पित करें और मन्त्रोच्चार के साथ शिशु का स्पर्श पृथ्वी से करें- ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः।। ॐ पृथिव्यै नमः। आवाहयामि स्थापयामि, ध्यायामि।- ८.३२
स्पर्श और भावना- माता बालक को मन्त्रोच्चार के साथ उस पूजित भूमि पर लिदा दे। सभी लोग हाथ जोड़कर भावना करें कि जैसे माँ अपनी गोद में बालक को अपने स्नेह- पुलकन के साथ जाने- अनजाने में श्रेष्ठ प्रवृत्ति और गहरा सन्तोष देती रहती है- वैसे ही माता वसुन्धरा इस बालक को अपना लाल मानकर गोद में लेकर धन्य बना रही है।
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म सप्रथाः। अप नः शोशुचदघम्।। -३५.२१
।। नाम घोषणा।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ नाम से सज्जित थाली या तख्ती पर से आच्छादन हटाया जाए। सबको दिखाया जाए। यह कार्य आचार्य या कोई सम्माननीय व्यक्ति करें। भावना की जाए कि यह घोषित नाम ऐसे व्यक्तित्व का प्रतीक बनेगा, जो सबका गौरव बढ़ाने वाला होगा।
ॐ मेधां ते देवः सविता मेधां देवी सरस्वती। मेधां ते अश्विनौ देवौ आधत्तां पुष्करस्त्रजौ।। -आश्व०गृ०१.१५.२ मन्त्र पूरा होने पर सबको नाम दिखाएँ और तीन नारे लगवाएँ-
(प्रमुख कहें) (सब कहें) १. शिशु......................चिरञ्जीवी हो। (तीन बार कहें।) २. शिशु......................धर्मशील हो। (तीन बार कहें।) ३. शिशु......................प्रगतिशील हो। (तीन बार कहें।) ।। परस्पर परिवर्तन।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ माता शिुशु पहले उसके पिता की गोद में दे। पिता अन्य परिजनों को दे। शिशु एक- दूसरे के हाथ में जाता स्नेह- दुलार पाता हुआ पुनः माँ के पास पहुँच जाए। भावना की जाए कि शिशु सबका स्नेह पात्र बन रहा है, सबके स्नेह- अनुदानों का अधिकार पा रहा है। सभी उपस्थित जन सूत्र दुहराये-
ॐ उपलालनं करिष्यामि- अनुशिष्टं विधास्यामि। (शिशु को दुलार देंगे- अनुशासन में रखेंगे।) मन्त्र- ॐ अथ सुमङ्गल नामान*ह्वयति बहुकार श्रेयस्कर भूयस्करेति। यऽ एव वन्नामाभवति कल्याणमेवैतन्मानुष्यै वाचो वदति।।
।। लोकदर्शन।। क्रिया और भावना- मन्त्रोच्चार के साथ नियुक्त व्यक्ति उसे गोद में उठायें- खुले में जाकर विभिन्न दृश्य दिखाकर ले आएँ। भावना की जाए कि शिशु में इस विराट् विश्व को सही दृष्टि से देखने, समझने एवं प्रयुक्त करने की क्षमता देव अनुग्रह और सद्भावना के सहयोग से प्राप्त हो रही है। ॐ हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकऽ आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।। -१३.४
इसके बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मन्त्र की आहुतियाँ पूरी करने का क्रम चलाए जाए, तब विशेष आहुतियाँ दी जाएँ।
।। विशेष आहुति।। क्रिया और भावना- हवन सामग्री के साथ निर्धारित मेवा- मिष्टान्न खीर आदि मिलाकर पाँच आहुतियाँ नीचे लिखे मन्त्र से दी जाएँ। भावना की जाए कि विशेष उद्देश्य के लिए विशेष वातावरण का निर्माण हो रहा है।
ॐ भूर्भुवः स्वः। अग्निऋर्षिः पवमानः पाञ्चजन्यः पुरोहितः। तमीमहे महागयं स्वाहा।। इदं अग्नये पवमानाय इदं न मम।- ऋ०९.६६.२०
।। बालप्रबोधन।। क्रिया और भावना- आचार्य शिशु को गोद में लें। उसके कान के पास नीचे वाला मन्त्र बोलें। सभी लोग भावना करें कि भाव- भाषा को शिशु हृदयङ्गम कर रहा है और श्रेष्ठ सार्थक जीवन की दृष्टि प्राप्त कर रहा है। आचार्य या सम्माननीय व्यक्ति शिशु को अपनी गोद में लेकर उसके कान के पास बोलें-
(क) ॐ भो तात! त्वं ईश्वरांशोऽसि। (हे तात! तुम ईश्वर के अंश हो।) (ख) मनुष्यता तव महती विशिष्टता। (तुम्हारी सबसे बड़ी विशेषता मनुष्यता है।) (ग) ऋष्यनुशासनं पालयेः। (जीवन भर ऋषि- अनुशासन का पालन करना।)
ॐ शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरञ्जनोऽसि, संसारमाया परिवर्जितोऽसि। संसारमायां त्यज मोहनिद्रां, त्वां सद्गुरुः शिक्षयतीति सूत्रम्।।
प्रबोधन के बाद स्विष्टकृत् होम से लेकर विसर्जन (पृष्ठ 100-121) तक के शेष कृत्य पूरे किये जाएँ। विसर्जन के पूर्व आचार्य, शिशु एवं अभिभावकों को पुष्प, अक्षत, तिलक सहित आशीर्वाद दें, फिर सभी मङ्गल मन्त्रों के साथ अक्षत, पुष्प वृष्टि करके आशीर्वाद दें।
आशीवर्चन- आचार्य शिशु तथा अभिभावक को आशीर्वाद दें। नीचे लिखे मन्त्र के अतिरिक्त आशीर्वचन के अन्य मन्त्रों का भी पाठ करना चाहिए। हे बालक! त्वम् आयुष्मान् वर्चस्वी तेजस्वी श्रीमान् भूयाः।