Books - कर्मकांड प्रदीप
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Language: HINDI
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नवग्रह स्तोत्र
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जपाकुसुमसंङ्काशं, काश्यपेयं महाद्युतिम्। तमोऽरिसर्वपापघ्नं, प्रणतोऽस्मिदिवाकरम्।।
भावार्थ- जपा कुसुम- सी लाल कान्ति वाले कश्यप के आत्मज, अन्धकार के शत्रु तथा समस्त पापों के नाशक सूर्य भगवान् को नमस्कार है।
दधिशङ्खषाराभं, क्षीरोदार्णवसम्भवम्। नमामि शशिनं सोमं, शम्भुर्मुकुटभूषणम्।।
भावार्थ- दही, शङ्ख एवं तुषार जैसी श्वेत दीप्तिवाले, समुद्र से उत्पन्न, शिवजी के मुकुट के आभूषण, चन्द्रदेव को प्रणाम है।
धरणीगर्भसम्भूतं, विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्ति हस्तं तं, मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- पृथ्वी से उत्पन्न, बिजली की- सी प्रभा वाले, शक्तिधारी कुमार, मङ्गलदेव को प्रणाम है।
प्रियङ्गुकलिकाश्यामं, रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं, तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- प्रियङ्गु केसर की कली, श्याम वर्ण, सौम्य आकृति और अनेक सौम्य गुणों से परिपूर्ण, बुधदेव को प्रणाम है ।।
देवानां च ऋषीणां च, गुरुं काञ्चन सन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं, तं नमामि बृहस्पतिम्।।
भावार्थ- देवताओं और ऋषियों के गुरु, कञ्चन जैसी प्रभा, बुद्धि के भण्डार, तीनों लोकों के स्वामी, बृहस्पति देव को प्रणाम है। हिमकुन्दमृणालाभं, दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्वशास्त्रप्रवक्तारं, भार्गवं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- बर्फ ,, कुन्द, मृणाल की आभा वाले, दैत्यों के गुरु, सर्व शास्त्रों के ज्ञाता, शुक्रदेव को प्रणाम है। नीलाञ्जनसमाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्।।
भावार्थ- काले अञ्जन की दीप्ति, सूर्य- पुत्र तथा यमराज के बड़े भाई जिनकी उत्पत्ति सूर्य की छाया से हुई है, उन शनि महाराज को प्रणाम है।
अर्धकायं महावीर्यं, चन्द्रादित्य विमर्दनम्। सिंहिकागर्भसम्भूतं, तं राहुं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ - केवल आधी देह रहने पर भी महान साहसी, चन्द्र- सूर्य को त्रस्त कर देने वाले, सिंहिका से उत्पन्न राहु देवता को प्रणाम है।
पलाशपुष्पसङ्काशं, तारकाग्रह मस्तकम्। रौद्र रौद्रात्मकं घोरं, तं के तुं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- पलाश के फूल की तरह लाल दीप्ति, समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ रौद्र रूपधारी और रौद्रात्मक घोर केतु को प्रणाम है।
इति व्यासमुखोद् गीतं, यः पठेत्सुसमाहितः। दिवावा यदि वा रात्रौ, विघ्नशान्तिर्भविष्यति।।
भावार्थ- व्यासदेव के मुख से गाये हुए इस स्तोत्र का जो श्रद्धा से पाठ करता है, उसकी सारी बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।
नर नारी नृपाणां च, भवेद्दुःस्वप्ननाशनम्। ऐश्वर्यमतुलं तेषां, आरोग्यं पुष्टिवर्द्धनम्।।
भावार्थ- जन साधारण और सामन्तों के बुरे स्वप्न भी मिट जाते हैं। ऐश्वर्य, धन- धान्य, आरोग्य की वृद्धि होती है ।।
भावार्थ- जपा कुसुम- सी लाल कान्ति वाले कश्यप के आत्मज, अन्धकार के शत्रु तथा समस्त पापों के नाशक सूर्य भगवान् को नमस्कार है।
दधिशङ्खषाराभं, क्षीरोदार्णवसम्भवम्। नमामि शशिनं सोमं, शम्भुर्मुकुटभूषणम्।।
भावार्थ- दही, शङ्ख एवं तुषार जैसी श्वेत दीप्तिवाले, समुद्र से उत्पन्न, शिवजी के मुकुट के आभूषण, चन्द्रदेव को प्रणाम है।
धरणीगर्भसम्भूतं, विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्ति हस्तं तं, मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- पृथ्वी से उत्पन्न, बिजली की- सी प्रभा वाले, शक्तिधारी कुमार, मङ्गलदेव को प्रणाम है।
प्रियङ्गुकलिकाश्यामं, रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं, तं बुधं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- प्रियङ्गु केसर की कली, श्याम वर्ण, सौम्य आकृति और अनेक सौम्य गुणों से परिपूर्ण, बुधदेव को प्रणाम है ।।
देवानां च ऋषीणां च, गुरुं काञ्चन सन्निभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं, तं नमामि बृहस्पतिम्।।
भावार्थ- देवताओं और ऋषियों के गुरु, कञ्चन जैसी प्रभा, बुद्धि के भण्डार, तीनों लोकों के स्वामी, बृहस्पति देव को प्रणाम है। हिमकुन्दमृणालाभं, दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्वशास्त्रप्रवक्तारं, भार्गवं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- बर्फ ,, कुन्द, मृणाल की आभा वाले, दैत्यों के गुरु, सर्व शास्त्रों के ज्ञाता, शुक्रदेव को प्रणाम है। नीलाञ्जनसमाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्।।
भावार्थ- काले अञ्जन की दीप्ति, सूर्य- पुत्र तथा यमराज के बड़े भाई जिनकी उत्पत्ति सूर्य की छाया से हुई है, उन शनि महाराज को प्रणाम है।
अर्धकायं महावीर्यं, चन्द्रादित्य विमर्दनम्। सिंहिकागर्भसम्भूतं, तं राहुं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ - केवल आधी देह रहने पर भी महान साहसी, चन्द्र- सूर्य को त्रस्त कर देने वाले, सिंहिका से उत्पन्न राहु देवता को प्रणाम है।
पलाशपुष्पसङ्काशं, तारकाग्रह मस्तकम्। रौद्र रौद्रात्मकं घोरं, तं के तुं प्रणमाम्यहम्।।
भावार्थ- पलाश के फूल की तरह लाल दीप्ति, समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ रौद्र रूपधारी और रौद्रात्मक घोर केतु को प्रणाम है।
इति व्यासमुखोद् गीतं, यः पठेत्सुसमाहितः। दिवावा यदि वा रात्रौ, विघ्नशान्तिर्भविष्यति।।
भावार्थ- व्यासदेव के मुख से गाये हुए इस स्तोत्र का जो श्रद्धा से पाठ करता है, उसकी सारी बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।
नर नारी नृपाणां च, भवेद्दुःस्वप्ननाशनम्। ऐश्वर्यमतुलं तेषां, आरोग्यं पुष्टिवर्द्धनम्।।
भावार्थ- जन साधारण और सामन्तों के बुरे स्वप्न भी मिट जाते हैं। ऐश्वर्य, धन- धान्य, आरोग्य की वृद्धि होती है ।।