Books - कर्मकांड प्रदीप
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Language: HINDI
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मुण्डन (चूडाकर्म) संस्कार
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विशेष व्यवस्था- इस संस्कार के लिए सामान्य व्यवस्था के साथ नीचे लिखे अनुसार विशेष तैयारी पर ध्यान दिया जाना चाहिए। १. मस्तक लेपन के लिए यथासम्भव गाय का दूध एवं दही पचास- पचास ग्राम भी बहुत है। २. कलावे के लिए लगभग छः- छः इञ्च के तीन टुकड़ों के बीच में छोटे- छोटे कुश के टुकड़ों को बाँधकर रखना चाहिए। ३. प्रज्ञा संस्थानों- शाखाओं को इस उद्देश्य के लिए कैंची, छुरा अलग से रखना चाहिए। उन्हीं का पूजन कराकर नाई से केश उतरवाना चाहिए। ४. बालक के लिए मुण्डन के बाद नवीन वस्त्रों की व्यवस्था रखनी चाहिए। ५. बाल एकत्र करने के लिए गुँथे आँटे या गोबर की व्यवस्था रखनी चाहिए।
विशेष कर्मकाण्ड- बालक एवं उसके अभिभावकों का मङ्गलाचरण से स्वागत करते हुए क्रमबद्ध रूप से निर्धारित प्राथमिक उपचार तथा रक्षाविधान तक का क्रम पूरा कर लेना चाहिए। उसके बाद क्रमशः विशेष कर्मकाण्ड कराये जाएँ। ॥ मस्तक लेपन॥ क्रिया और भावना- मन्त्र के साथ माता- पिता दूध, दही से बालक- बालिका के केश गीले करें। गर्मी की ऋतु हो, तो अच्छी तरह भी भिगो सकते हैं, अन्यथा थोड़े छींटे डाल करके भी काम चलाया जा सकता है।
भावना करें कि मस्तिष्क के इस दिव्योपचार प्रसङ्ग में द्रव्यों के माध्यम से बालक के मस्तिष्क में शुभ देव- शक्तियों, देव- वृत्तियों का स्पर्श दिया जा रहा है। अशुभ के उच्छेदन तथा शुभ की स्थापना का कार्य स्नेह- प्रेम के आधार पर ही करेंगे। माता- पिता दूध- दही मिश्रित पदार्थ की कटोरी हाथ में लेकर सूत्र दुहरायें-
ॐ हीनसंस्कारान् निवारयिष्यामि। (बच्चे के हीन संस्कारों का निवारण करेंगे।) मन्त्र बोलते हुए बालक के केश गीला करें। मन्त्र- ॐ सवित्रा प्रसूता दैव्या आपउदन्तु ते तनूम्। दीर्घायुत्वाय वर्चसे॥- पार०गृ०सू० २.१.९
॥ त्रिशिखा बन्धन॥ क्रिया और भावना- एक- एक करके मन्त्रों के क्रम से निर्धारित केन्द्रों को कलावे से बाँधा जाए। तदनुरूप भावना की जाए। हाथ में कलावा लेकर सूत्र दुहरायें-
ॐ बहुमुखं विकासं करिष्ये। (शरीर के साथ मस्तिष्क के बहुमुखी विकास की व्यवस्था बनायेंगे।)
ब्रह्म ग्रन्थि बन्धन- सिर के पिछले भाग में दायीं ओर के बालों में मन्त्र के साथ कलावा बाँधें। भावना करें कि मस्तिष्क को रचना शक्ति के प्रतीक ब्रह्मा की शक्ति से देवों की साक्षी में प्रतिबद्ध किया जा रहा है। आसुरी शक्तियाँ इसका उपयोग न कर सकेंगी। यह उनका उपकरण न बन सकेगा, देवत्व की मर्यादा में ही इसका विकास और सञ्चालन होगा।
ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेनऽ आवः। स बुध्न्याऽ उपमाऽ अस्यविष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः॥ -१३.३
विष्णु ग्रन्थि बन्धन- पिछले हिस्से के बायें भाग के केशों में कलावा बाँधें, भावना करें कि मस्तिष्क के पोषण, सञ्चालन करने वाले केन्द्र भगवान् विष्णु की शक्ति से प्रतिबद्ध हो रहे हैं। उन पर असुरत्व का शासन न चल सकेगा। देव मर्यादा से नियन्त्रित ये केन्द्र सत्प्रवृत्तियों को ही पोषण देंगे। ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। समूढमस्य पा*सुरे स्वाहा॥- ५.१५ रुद्र ग्रन्थि बन्धन- सिर के अगले भाग के केशों में मन्त्र के साथ कलावा बाँधें। भावना करें कि रुद्र- शिव की शक्ति इस क्षेत्र पर आधिपत्य कर रही है। असुरता की दाल अब नहीं गलेगी। रुद्र की शक्ति विकारों को जला डालेगी और ईश्वरीय मर्यादा के अनुकूल कल्याणकारी अनुशासन लागू करेगी। ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतो त ऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥- १६.१ ॥ छुरा पूजन॥ क्रिया और भावना- अभिभावक थाली या तश्तरी में रखे कैंची- छुरे की पूजा रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप से करें और उसके मूल में कलावा बाँध दें। भावना करें कि बालक के कुविचारों को काटने के लिए, उनकी काट करने में समर्थ पैने उपकरण- सद्विचारों की अभ्यर्थना कर रहे हैं। जिस प्रकार स्थूल
बालों की सफाई के लिए ये औजार प्रभु कृपा से मिले हैं, वैसे ही सूक्ष्म प्रवाह भी मिलेंगे। उनका उपयोग पूरी तत्परता, जागरूकता से करेंगे।
ॐ यत् क्षुरेण मज्जयता सुपेशसा वप्ता वपति केशान्। छिन्धि शिरो मास्यायुः प्रमोषीः॥ -पा०गृ०सू० २.१.१८
॥ त्रिशिखा कर्त्तन॥ क्रिया और भावना- पुरोहित स्वयं कैंची या उस्तरे से एक- एक करके मन्त्रों के उच्चारण के साथ- साथ तीनों ग्रन्थियों को क्रमशः काट दें। सभी लोग भावना प्रवाह पैदा करने में योगदान दें। प्रतिनिधि कैंची हाथ में लेकर सूत्र दुहरवायें- ॐ दुष्प्रवृत्तीः उच्छेत्स्यामि। (स्वभावजन्य दुष्प्रवृत्तियों का उच्छेदन करते रहेंगे। )तत्पश्चात् कलावा बँधे हुए बालों के तीनों अंश काटें।
ब्रह्म ग्रन्थि कर्त्तन के साथ- साथ भावना करें कि निर्माण की शक्ति विनाशक प्रवृत्तियों को काट रही है। अब रचनात्मक प्रवृत्तियों के लिए यह केन्द्र सुरक्षित रहेंगे।
ॐ येनावपत् सविता क्षुरेण सोमस्य राज्ञो वरुणस्य विद्वान्। तेन ब्रह्माणो वपतेदमस्य गोमानश्ववानयमस्तु प्रजावान्॥ -अथर्व.६.६८.३
विष्णु ग्रन्थि कर्त्तन के साथ भावना करें, भगवान् विष्णु की शक्ति अपने प्रतिकूल प्रवृत्तियों का उन्मूलन- निवारण कर रही है। मस्तिष्क अब अनैतिक पोषण न दे सकेगा, नीतिमत्ता में ही प्रयुक्त होगा।
ॐ येन धाताबृहस्पतेः अग्नेरिन्द्रस्य चायुषेऽवपत्। तेन तऽ आयुषे वपामि सुश्लोक्याय स्वस्तये॥ -आश्व०गृ०सू०.१.१७.१२
रुद्र ग्रन्थि कर्त्तन के साथ यह भावना करें कि रुद्र त्रिपुरारि की प्रचण्ड शक्ति दुर्धर्ष, दुष्प्रवृत्तियों पर चोट कर रही है, अब उनका निवारणहोगा; ताकि मस्तिष्क में दिव्य दृष्टि, दिव्यानुभूति की क्षमता विकसित हो सके।
ॐ येन भूयश्च रात्र्यां ज्योक् च पश्याति सूर्यम्। तेन तऽआयुषे वपामि सुश्लोक्याय स्वस्तये॥- आश्व०गृ०सू०१.१७
॥ नवीन वस्त्र पूजन॥ क्रिया और भावना- एक थाली में रखकर बालक के नये वस्त्रों पर अक्षत- पुष्प मन्त्रोच्चार के साथ चढ़ाये जाएँ। भावना की जाए कि जिस प्रकार अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप वस्त्र आच्छादनों की व्यवस्था करने की सामर्थ्य प्रभु ने दी है- वैसे ही अपने गौरव के अनुरूप व्यक्तित्व बनाने की सामर्थ्य भी मिल रही है। उस दिव्यता के प्रति वस्त्रों- प्रतीकों के पूजन द्वारा अपनी आस्था व्यक्त की जा रही है। सूत्र दुहरायें- ॐसंस्कृतिनिष्ठां विधास्यामि। (बच्चे को संस्कृति के प्रति निष्ठावान् बनायेंगे।) तदुपरान्त यह मन्त्र बोलते हुए वस्त्रों का पूजन करें।
ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतऽ ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दा * सि जज्ञिरे। तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥- ३१.७
वस्त्र पूजन के बाद अग्नि स्थापन से गायत्री मन्त्र की आहुति देने तक का क्रम पूरा करके विशेष आहुतियाँ दी जाएँ।
॥ विशेष आहुति॥ हवन सामग्री में थोड़ा मेवा, मिष्टान्न मिलाकर ५ आहुतियाँ निम्न मन्त्र से दें। भावना करें कि यज्ञीय ऊष्मा बालक को सुसंस्कारों से भर रही है।
ॐ भूर्भुवः स्वः। अग्न आयू* षि पवस ऽ आ सुवोर्जमिषं च नः। आरे बाधस्वदुच्छुना* स्वाहा॥ इदं अग्नये इदं न मम। -- १९.३८, ३५.१६
इसके बाद यज्ञ के शेष कृत्य पूरे कर लिये जाएँ। विसर्जन न किया जाए। नाई (मुण्डन करने वाले) द्वारा मुण्डन कर देने पर बालक को स्नान के बाद नये वस्त्र पहनाकर पुनः देवस्थल पर लाया जाता है। तब शिखा पूजन, स्वस्तिक लेखन और आशीर्वाद के बाद विसर्जन किया जाता है। यदि घर पर आयोजन है, तो इस बीच गीत, भजन- कीर्तन, उद्बोधन का क्रम चलाते रहना चाहिए। सार्वजनिक स्थल पर हो, तो अन्य लोग बालक पर अक्षत, पुष्प वृष्टि करके प्रसाद लेकर विदा भी हो सकते हैं अथवा सर्वोपयोगी भजन- सत्संग का लाभ उठाते रह सकते हैं।
॥ मुण्डन कृत्य॥ क्रिया और भावना- बच्चे को बहलाने- फुसलाने के साथ माता मानसिक रूप से गायत्री मन्त्र का जप करती रहे। भावना की जाए कि गर्भ से आये बालों को हटाने के साथ दिव्य सत्ता के प्रभाव से सारी मानसिक दुर्बलताएँ हट रही हैं। इस प्रक्रिया में सहायक हर शक्ति और हर व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता के भाव रखे जाएँ। भगवान् से प्रार्थना की जाए कि इस संस्कार से प्राप्त दिशा धारा के निर्वाह की क्षमता प्रदान करें। मंत्रोच्चार के साथ केश उतारना प्रारम्भ किया जाए।
ॐ येन पूषा बृहस्पतेः वायोरिन्द्रस्य चावपत्। तेन ते वपामि ब्रह्मणा, जीवातवे जीवनाय दीर्घायुष्ट्वाय वर्चसे॥ -मं० ब्रा० १.६.७
॥ शिखा पूजन॥ क्रिया और भावना- शिशु के माता- पिता से बालक के सिर में शिखा के स्थान पर रोली, चावल द्वारा शिखा- पूजन कराया जाए। भावना की जाए कि यह बालक ध्वजधारी सैनिक की तरह गौरव एवं तेजस्विता का धनी बनेगा। भारतीय संस्कृति की ध्वजा लेकर उसके अनुरूप उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करके गौरवान्वित होगा। ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते। तिष्ठ देवि शिखामध्ये तजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥- सं०प्र०
॥ स्वस्तिक लेखन॥
क्रिया और भावना- आचार्य या कोई सम्माननीय पूज्य व्यक्ति बालक के मुण्डित सिर पर रोली या चन्दन से शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाए। मन्त्रोच्चार के साथ इस चिह्न के अनुरूप श्रेष्ठ प्रवृत्तियों की मस्तिष्क में स्थापना की भावना की जाए। संयुक्त सद्भाव एवं प्रभु अनुग्रह से एकता, समता, शान्ति, सरलता, प्रखरता, पवित्रता, सङ्कल्पशीलता, उदारता, प्रसन्नता, ज्ञान, परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और श्रेष्ठ गुणों के स्थापन की भावभरी प्रार्थना की जाए। प्रतिनिधि रोली या चन्दन अनामिका अँगुली में लेकर सूत्र दुहरायें-
ॐ विचारान् संयन्तुं प्रेरयिष्यामि। (बच्चे को विचार संयम के लिए प्रेरित करते रहेंगे।)
तदुपरान्त यह मन्त्र बोलते हुए बच्चे सिर पर स्वास्तिक बनायें।
ॐ स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्तिनस्ताक्र्ष्योऽअरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥- २५.१९
इसके बाद स्विष्टकृत् हवन आदि शेष यज्ञकर्म पूरे किये जाएँ। आशीर्वाद, विसर्जन, जयघोष के साथ कार्यक्रम समाप्त किया।
विशेष कर्मकाण्ड- बालक एवं उसके अभिभावकों का मङ्गलाचरण से स्वागत करते हुए क्रमबद्ध रूप से निर्धारित प्राथमिक उपचार तथा रक्षाविधान तक का क्रम पूरा कर लेना चाहिए। उसके बाद क्रमशः विशेष कर्मकाण्ड कराये जाएँ। ॥ मस्तक लेपन॥ क्रिया और भावना- मन्त्र के साथ माता- पिता दूध, दही से बालक- बालिका के केश गीले करें। गर्मी की ऋतु हो, तो अच्छी तरह भी भिगो सकते हैं, अन्यथा थोड़े छींटे डाल करके भी काम चलाया जा सकता है।
भावना करें कि मस्तिष्क के इस दिव्योपचार प्रसङ्ग में द्रव्यों के माध्यम से बालक के मस्तिष्क में शुभ देव- शक्तियों, देव- वृत्तियों का स्पर्श दिया जा रहा है। अशुभ के उच्छेदन तथा शुभ की स्थापना का कार्य स्नेह- प्रेम के आधार पर ही करेंगे। माता- पिता दूध- दही मिश्रित पदार्थ की कटोरी हाथ में लेकर सूत्र दुहरायें-
ॐ हीनसंस्कारान् निवारयिष्यामि। (बच्चे के हीन संस्कारों का निवारण करेंगे।) मन्त्र बोलते हुए बालक के केश गीला करें। मन्त्र- ॐ सवित्रा प्रसूता दैव्या आपउदन्तु ते तनूम्। दीर्घायुत्वाय वर्चसे॥- पार०गृ०सू० २.१.९
॥ त्रिशिखा बन्धन॥ क्रिया और भावना- एक- एक करके मन्त्रों के क्रम से निर्धारित केन्द्रों को कलावे से बाँधा जाए। तदनुरूप भावना की जाए। हाथ में कलावा लेकर सूत्र दुहरायें-
ॐ बहुमुखं विकासं करिष्ये। (शरीर के साथ मस्तिष्क के बहुमुखी विकास की व्यवस्था बनायेंगे।)
ब्रह्म ग्रन्थि बन्धन- सिर के पिछले भाग में दायीं ओर के बालों में मन्त्र के साथ कलावा बाँधें। भावना करें कि मस्तिष्क को रचना शक्ति के प्रतीक ब्रह्मा की शक्ति से देवों की साक्षी में प्रतिबद्ध किया जा रहा है। आसुरी शक्तियाँ इसका उपयोग न कर सकेंगी। यह उनका उपकरण न बन सकेगा, देवत्व की मर्यादा में ही इसका विकास और सञ्चालन होगा।
ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेनऽ आवः। स बुध्न्याऽ उपमाऽ अस्यविष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः॥ -१३.३
विष्णु ग्रन्थि बन्धन- पिछले हिस्से के बायें भाग के केशों में कलावा बाँधें, भावना करें कि मस्तिष्क के पोषण, सञ्चालन करने वाले केन्द्र भगवान् विष्णु की शक्ति से प्रतिबद्ध हो रहे हैं। उन पर असुरत्व का शासन न चल सकेगा। देव मर्यादा से नियन्त्रित ये केन्द्र सत्प्रवृत्तियों को ही पोषण देंगे। ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। समूढमस्य पा*सुरे स्वाहा॥- ५.१५ रुद्र ग्रन्थि बन्धन- सिर के अगले भाग के केशों में मन्त्र के साथ कलावा बाँधें। भावना करें कि रुद्र- शिव की शक्ति इस क्षेत्र पर आधिपत्य कर रही है। असुरता की दाल अब नहीं गलेगी। रुद्र की शक्ति विकारों को जला डालेगी और ईश्वरीय मर्यादा के अनुकूल कल्याणकारी अनुशासन लागू करेगी। ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतो त ऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥- १६.१ ॥ छुरा पूजन॥ क्रिया और भावना- अभिभावक थाली या तश्तरी में रखे कैंची- छुरे की पूजा रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप से करें और उसके मूल में कलावा बाँध दें। भावना करें कि बालक के कुविचारों को काटने के लिए, उनकी काट करने में समर्थ पैने उपकरण- सद्विचारों की अभ्यर्थना कर रहे हैं। जिस प्रकार स्थूल
बालों की सफाई के लिए ये औजार प्रभु कृपा से मिले हैं, वैसे ही सूक्ष्म प्रवाह भी मिलेंगे। उनका उपयोग पूरी तत्परता, जागरूकता से करेंगे।
ॐ यत् क्षुरेण मज्जयता सुपेशसा वप्ता वपति केशान्। छिन्धि शिरो मास्यायुः प्रमोषीः॥ -पा०गृ०सू० २.१.१८
॥ त्रिशिखा कर्त्तन॥ क्रिया और भावना- पुरोहित स्वयं कैंची या उस्तरे से एक- एक करके मन्त्रों के उच्चारण के साथ- साथ तीनों ग्रन्थियों को क्रमशः काट दें। सभी लोग भावना प्रवाह पैदा करने में योगदान दें। प्रतिनिधि कैंची हाथ में लेकर सूत्र दुहरवायें- ॐ दुष्प्रवृत्तीः उच्छेत्स्यामि। (स्वभावजन्य दुष्प्रवृत्तियों का उच्छेदन करते रहेंगे। )तत्पश्चात् कलावा बँधे हुए बालों के तीनों अंश काटें।
ब्रह्म ग्रन्थि कर्त्तन के साथ- साथ भावना करें कि निर्माण की शक्ति विनाशक प्रवृत्तियों को काट रही है। अब रचनात्मक प्रवृत्तियों के लिए यह केन्द्र सुरक्षित रहेंगे।
ॐ येनावपत् सविता क्षुरेण सोमस्य राज्ञो वरुणस्य विद्वान्। तेन ब्रह्माणो वपतेदमस्य गोमानश्ववानयमस्तु प्रजावान्॥ -अथर्व.६.६८.३
विष्णु ग्रन्थि कर्त्तन के साथ भावना करें, भगवान् विष्णु की शक्ति अपने प्रतिकूल प्रवृत्तियों का उन्मूलन- निवारण कर रही है। मस्तिष्क अब अनैतिक पोषण न दे सकेगा, नीतिमत्ता में ही प्रयुक्त होगा।
ॐ येन धाताबृहस्पतेः अग्नेरिन्द्रस्य चायुषेऽवपत्। तेन तऽ आयुषे वपामि सुश्लोक्याय स्वस्तये॥ -आश्व०गृ०सू०.१.१७.१२
रुद्र ग्रन्थि कर्त्तन के साथ यह भावना करें कि रुद्र त्रिपुरारि की प्रचण्ड शक्ति दुर्धर्ष, दुष्प्रवृत्तियों पर चोट कर रही है, अब उनका निवारणहोगा; ताकि मस्तिष्क में दिव्य दृष्टि, दिव्यानुभूति की क्षमता विकसित हो सके।
ॐ येन भूयश्च रात्र्यां ज्योक् च पश्याति सूर्यम्। तेन तऽआयुषे वपामि सुश्लोक्याय स्वस्तये॥- आश्व०गृ०सू०१.१७
॥ नवीन वस्त्र पूजन॥ क्रिया और भावना- एक थाली में रखकर बालक के नये वस्त्रों पर अक्षत- पुष्प मन्त्रोच्चार के साथ चढ़ाये जाएँ। भावना की जाए कि जिस प्रकार अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप वस्त्र आच्छादनों की व्यवस्था करने की सामर्थ्य प्रभु ने दी है- वैसे ही अपने गौरव के अनुरूप व्यक्तित्व बनाने की सामर्थ्य भी मिल रही है। उस दिव्यता के प्रति वस्त्रों- प्रतीकों के पूजन द्वारा अपनी आस्था व्यक्त की जा रही है। सूत्र दुहरायें- ॐसंस्कृतिनिष्ठां विधास्यामि। (बच्चे को संस्कृति के प्रति निष्ठावान् बनायेंगे।) तदुपरान्त यह मन्त्र बोलते हुए वस्त्रों का पूजन करें।
ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतऽ ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दा * सि जज्ञिरे। तस्माद्यजुस्तस्मादजायत॥- ३१.७
वस्त्र पूजन के बाद अग्नि स्थापन से गायत्री मन्त्र की आहुति देने तक का क्रम पूरा करके विशेष आहुतियाँ दी जाएँ।
॥ विशेष आहुति॥ हवन सामग्री में थोड़ा मेवा, मिष्टान्न मिलाकर ५ आहुतियाँ निम्न मन्त्र से दें। भावना करें कि यज्ञीय ऊष्मा बालक को सुसंस्कारों से भर रही है।
ॐ भूर्भुवः स्वः। अग्न आयू* षि पवस ऽ आ सुवोर्जमिषं च नः। आरे बाधस्वदुच्छुना* स्वाहा॥ इदं अग्नये इदं न मम। -- १९.३८, ३५.१६
इसके बाद यज्ञ के शेष कृत्य पूरे कर लिये जाएँ। विसर्जन न किया जाए। नाई (मुण्डन करने वाले) द्वारा मुण्डन कर देने पर बालक को स्नान के बाद नये वस्त्र पहनाकर पुनः देवस्थल पर लाया जाता है। तब शिखा पूजन, स्वस्तिक लेखन और आशीर्वाद के बाद विसर्जन किया जाता है। यदि घर पर आयोजन है, तो इस बीच गीत, भजन- कीर्तन, उद्बोधन का क्रम चलाते रहना चाहिए। सार्वजनिक स्थल पर हो, तो अन्य लोग बालक पर अक्षत, पुष्प वृष्टि करके प्रसाद लेकर विदा भी हो सकते हैं अथवा सर्वोपयोगी भजन- सत्संग का लाभ उठाते रह सकते हैं।
॥ मुण्डन कृत्य॥ क्रिया और भावना- बच्चे को बहलाने- फुसलाने के साथ माता मानसिक रूप से गायत्री मन्त्र का जप करती रहे। भावना की जाए कि गर्भ से आये बालों को हटाने के साथ दिव्य सत्ता के प्रभाव से सारी मानसिक दुर्बलताएँ हट रही हैं। इस प्रक्रिया में सहायक हर शक्ति और हर व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता के भाव रखे जाएँ। भगवान् से प्रार्थना की जाए कि इस संस्कार से प्राप्त दिशा धारा के निर्वाह की क्षमता प्रदान करें। मंत्रोच्चार के साथ केश उतारना प्रारम्भ किया जाए।
ॐ येन पूषा बृहस्पतेः वायोरिन्द्रस्य चावपत्। तेन ते वपामि ब्रह्मणा, जीवातवे जीवनाय दीर्घायुष्ट्वाय वर्चसे॥ -मं० ब्रा० १.६.७
॥ शिखा पूजन॥ क्रिया और भावना- शिशु के माता- पिता से बालक के सिर में शिखा के स्थान पर रोली, चावल द्वारा शिखा- पूजन कराया जाए। भावना की जाए कि यह बालक ध्वजधारी सैनिक की तरह गौरव एवं तेजस्विता का धनी बनेगा। भारतीय संस्कृति की ध्वजा लेकर उसके अनुरूप उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करके गौरवान्वित होगा। ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते। तिष्ठ देवि शिखामध्ये तजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥- सं०प्र०
॥ स्वस्तिक लेखन॥
क्रिया और भावना- आचार्य या कोई सम्माननीय पूज्य व्यक्ति बालक के मुण्डित सिर पर रोली या चन्दन से शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाए। मन्त्रोच्चार के साथ इस चिह्न के अनुरूप श्रेष्ठ प्रवृत्तियों की मस्तिष्क में स्थापना की भावना की जाए। संयुक्त सद्भाव एवं प्रभु अनुग्रह से एकता, समता, शान्ति, सरलता, प्रखरता, पवित्रता, सङ्कल्पशीलता, उदारता, प्रसन्नता, ज्ञान, परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और श्रेष्ठ गुणों के स्थापन की भावभरी प्रार्थना की जाए। प्रतिनिधि रोली या चन्दन अनामिका अँगुली में लेकर सूत्र दुहरायें-
ॐ विचारान् संयन्तुं प्रेरयिष्यामि। (बच्चे को विचार संयम के लिए प्रेरित करते रहेंगे।)
तदुपरान्त यह मन्त्र बोलते हुए बच्चे सिर पर स्वास्तिक बनायें।
ॐ स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्तिनस्ताक्र्ष्योऽअरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥- २५.१९
इसके बाद स्विष्टकृत् हवन आदि शेष यज्ञकर्म पूरे किये जाएँ। आशीर्वाद, विसर्जन, जयघोष के साथ कार्यक्रम समाप्त किया।