Books - गायत्री महाविज्ञान
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Language: HINDI
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गायत्री साधना से आपत्तियों का निवारण
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विपरीत परिस्थितियों का प्रवाह बड़ा प्रबल होता है। उसके थपेड़े में जो फँस गया, वह विपत्ति की ओर बढ़ता ही जाता है। बीमारी, धन- हानि, मुकदमा, शत्रुता, बेकारी, गृह- कलह, विवाद, कर्ज आदि की शृंखला जब चल पड़ती है, तो मनुष्य हैरान हो जाता है। कहावत है कि विपत्ति अकेली नहीं आती, वह हमेशा अपने बाल- बच्चे साथ लाती है। एक मुसीबत आने पर उसकी साथिन सहित और भी कई कठिनाइयाँ उसी समय आती हैं। चारों ओर से घिरा हुआ मनुष्य अपने को चक्रव्यूह में फँसा- सा अनुभव करता है। ऐसे विकट समय में जो लोग निराशा, चिन्ता, भय, निरुत्साह, घबराहट, किंकर्तव्यविमूढ़ में पड़कर हाथ- पाँव चलाना छोड़ देते हैं, रोने- कलपने में लगे रहते हैं, वे अधिक समय तक अधिक मात्रा में कष्ट भोगते हैं।
विपत्ति और विपरीत परिस्थितियों की धारा से त्राण पाने के लिए धैर्य, साहस, विवेक और प्रयत्न की आवश्यकता है। इन चारों कोनों वाली नाव पर चढक़र ही संकट की नदी को पार करना सुगम होता है। गायत्री की साधना आपत्ति के समय इन चार तत्त्वों को मनुष्य के अन्तःकरण में विशेष रूप से प्रोत्साहित करती है, जिससे वह ऐसा मार्ग ढूँढऩे में सफल हो जाता है जो उसे विपत्ति से पार लगा दे।
आपत्तियों में फँसे हुए अनेकों व्यक्ति गायत्री की कृपा से किस प्रकार पार उतरे, उनके कुछ उदाहरण हमारी जानकारी में इस पकार हैं—
घाटकोपर बम्बई के श्री आर. बी. वेद गायत्री की कृपा से घोर साम्प्रदायिक दंगों के दिनों में मुस्लिम बस्तियों से निर्भय होकर निकलते रहते थे। उनकी पुत्री को एक बार भयंकर हैजा हुआ। यह भी उसी के अनुग्रह पर शान्त हुआ। एक महत्त्वपूर्ण मुकदमे में भी अनुकूल फैसला हुआ।
इन्दौर, काँगड़ा के चौ. अमरसिंह एक ऐसी जगह बीमार पड़े, जहाँ की जलवायु बड़ी खराब थी और जहाँ कोई चिकित्सक खोजे न मिलता था। उस भयंकर बीमारी में गायत्री प्रार्थना को उन्होंने औषधि बनाया और अच्छे हो गये।
बम्बई के पं. रामशरण शर्मा जब गायत्री अनुष्ठान कर रहे थे, उन्हीं दिनों उनके माता- पिता सख्त बीमार हुए। परन्तु अनुष्ठान के प्रभाव से उनका बाल भी बाँका न हुआ, दोनों ही नीरोग हो गये।
इटौआधुरा के डॉक्टर रामनारायण जी भटनागर को उनकी स्वर्गीया पत्नी ने स्वप्न में दर्शन देकर गायत्री जप करने की शिक्षा दी थी। तब से वे बराबर इस साधना को कर रहे हैं। चिकित्सा क्षेत्र में उनके हाथ में ऐसा यश आया है कि बड़े- बड़े कष्टसाध्य रोगी उनकी चिकित्सा से अच्छे हुए हैं।
कनकुवा जि० हमीरपुर के लक्ष्मीनारायण श्रीवास्तव बी० ए० एल० एल० बी० की धर्मपत्नी प्रसवकाल में अत्यन्त कष्ट पीडि़त हुआ करती थी। गायत्री उपासना से उनका कष्ट बहुत कम हो गया। एक बार उनका लडक़ा मोतीझरा से पीडि़त हुआ। बेहोशी और चीखने की दशा को देखकर सब लोग बड़े दु:खी थे। वकील साहब की गायत्री प्रार्थना के द्वारा बालक को गहरी नींद आ गयी और वह थोड़े ही दिनों में स्वस्थ हो गया।
जफरापुर के ठा० रामकरण सिंह जी वैद्य की धर्मपत्नी को दो वर्ष से संग्रहणी की बीमारी थी। अनेक प्रकार से चिकित्सा कराने पर भी जब लाभ न हुआ, तो सवालक्ष गायत्री जप का अनुष्ठान किया गया। फलस्वरूप वह पूर्ण स्वस्थ हो गयीं और उनके एक पुत्र पैदा हुआ।
कसराबाद, निमाड़ के श्री शंकरलाल व्यास का बालक इतना बीमार था कि डाक्टर वैद्यों ने आशा छोड़ दी। दस हजार गायत्री जप के प्रभाव से वह अच्छा हुआ।
एक बार व्यास जी रास्ता भूलकर रात के समय ऐसे पहाड़ी बीहड़ जंगल में फँस गये, जहाँ हिंसक जानवर चारों ओर शोर करते हुए घूम रहे थे। इस संकट के समय में उन्होंने गायत्री का ध्यान किया और उनके प्राण बच गये।
विहिया, शाहाबाद के श्री गुरुचरण आर्य एक अभियोग में जेल भेज दिये गये। छुटकारे के लिये वे जेल में जप करते रहते थे। वे अचानक जेल से छूट गये और मुकदमे में निर्दोष बरी हो गये।
मुन्द्रावजा के श्री प्रकाश नारायण मिश्र कक्षा १० की पढ़ाई में पारिवारिक कठिनाइयों के कारण ध्यान न दे सके ।। परीक्षा के २५ दिन रह गये, तब उन्होंने पढऩा और गायत्री का जप करना आरम्भ किया। उत्तीर्ण होने की आशा न थी, फिर भी उन्हें सफलता मिली। मिश्र जी के बाबा शत्रुओं के ऐसे कुचक्र में फँस गये कि जेल जाना पड़ा। गायत्री अनुष्ठान के कारण वे उस आपत्ति से बच गये ।।
काशी के पं० धरनीदत्त शास्त्री का कथन है कि उनके दादा पं० कन्हैयालाल गायत्री के उपासक थे। बचपन में शास्त्री जी अपने दादा के साथ रात के समय कुएँ पर पानी लेने गये ।। उन्होंने देखा कि वहाँ पर एक भयंकर प्रेत आत्मा है जो कभी भैंसा बनकर, कभी शूकर बनकर उन पर आक्रमण करना चाहती है। वह कभी मुख से, कभी सिर से भयंकर अग्रि ज्वालाएँ फेंकता रहा और कभी मनुष्य, कभी हिंसक जन्तु बनकर एक- डेढ़ घण्टे तक भयोत्पादन करता रहा। दादा ने मुझे डरा हुआ देखकर समझा दिया कि बेटा, हम गायत्री उपासक हैं, यह प्रेत आत्मा हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अन्त में वे दोनों सकुशल घर को गये, प्रेत का क्रोध असफल रहा।
‘‘सनाढ्य जीवन’’ इटावा के सम्पादक पं० प्रभुदयाल शर्मा का कथन है कि उनकी पुत्रवधू तथा नातियों को कोई दुष्ट प्रेतात्मा लग गयी थी। हाथ, पैर और मस्तक में भारी पीड़ा होती थी और बेहोशी आ जाती थी। रोग- मुक्ति के जब सब प्रयत्न असफल हुए, तो गायत्री का आश्रय लेने से वह बाधा दूर हुई। इसी प्रकार शर्मा जी का भतीजा भी मृत्यु के मुँह में अटका था। उसे गोदी में लेकर गायत्री का जप किया गया, बालक अच्छा हो गया। शर्मा जी के ताऊ जी दानापुर (पटना) गये हुए थे। वहाँ वे स्नान के बाद गायत्री का जप कर रहे थे कि अचानक उनके कान में जोर से शब्द हुआ- ‘जल्दी निकल भाग, यह मकान अभी गिरने वाला है।’ वे खिडक़ी से कूद कर भागे। मुश्किल से चार- छ: कदम गये होंगे कि मकान गिर पड़ा और वे बाल- बाल बच गये।
शेखपुरा के अमोलकचन्द्र गुप्ता बचपन में ही पिता की और किशोरावस्था में माता की मृत्यु हो जाने से कुसंग में पडक़र अनेक बुरी आदतों में फँस गये थे। दोस्तों की चौकड़ी दिनभर जमी रहती और ताश, शतरंज, गाना- बजाना, वेश्या- नृत्य, सिगरेट, शराब, जुआ, व्यभिचार, नाच- तमाशा, सैर- सपाटा, भोजन पार्टी आदि के दौर चलते रहते। इसी कुचक्र में पाँच वर्ष के भीतर नकदी, जेवर, मकान और बीस हजार की जायदाद स्वाहा हो गयी। जब कुछ न रहा, तो जुए के अड्डे, व्यभिचार की दलाली, चोरी, जेबकटी, लूट, धोखाधड़ी आदि की नई- नई तरकीबें निकालकर एक छोटे गिरोह के साथ अपना गुजारा करने लगे। इसी स्थिति में उनका चित्त बड़ा अशान्त रहता। एक दिन एक महात्मा ने उन्हें गायत्री का उपदेश दिया। उनकी श्रद्धा जम गयी। धीरे- धीरे उत्तम विचारों की वृद्धि हुई। पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त की भावना बढऩे से उन्होंने चान्द्रायण व्रत, तीर्थ, अनुष्ठान और प्रायश्चित्त किये। अब वे एक दुकान करके अपना गुजारा करते हैं और पुरानी बुरी आदतों से मुक्त हैं।
रानीपुरा के ठा० अङ्गजीत राठौर एक डकैती के केस में फँस गये थे। जेल में गायत्री का जप करते रहते थे। मुकदमे में निर्दोष हो छुटकारा पाया।
अम्बाला के मोतीलाल माहेश्वरी का लडक़ा कुसंग में पडक़र ऐसी बुरी आदतों का शिकार हो गया था, जिससे उनके प्रतिष्ठित परिवार पर कलंक के छींटे पड़ते थे। माहेश्वरी जी ने दु:खी होकर गायत्री की शरण ली। उस तपश्चर्या के प्रभाव से लडक़े की मति पलटी और अशान्त परिवार में शान्त वातावरण उत्पन्न हो गया।
टोंक के श्री शिवनारायण श्रीवास्तव के पिता जी के मरने पर जमींदारी की दो हजार रुपये सालाना आमदनी पर गुजारा करने वाले १९ व्यक्ति रह गये। परिश्रम कोई न करता, पर खर्च सब बढ़ाते और जमींदारी से माँगते। निदान वह घर फूट और कलह का अखाड़ा बन गया। फौजदारी और मुकदमेबाजी के आसार खड़े हो गये। श्रीवास्तव जी को इससे बड़ा दु:ख होता, क्योंकि वे पिताजी के उत्तराधिकारी गृहपति थे। दु:खी होकर एक महात्मा के आदेशानुसार उन्होंने गायत्री जप आरंभ किया। परिस्थिति बदली। बुद्धियों में सुधार हुआ। कमाने लायक लोग नौकरी तथा व्यापार में लग गये। झगड़े शान्त हुए। डगमगाता हुआ घर बिगडऩे से बच गया।
अमरावती के सोहनलाल मेहरोत्रा की स्त्री को भूत बाधा बनी रहती थी। बड़ा कष्ट था, हजारों रुपये खर्च हो चुके थे। स्त्री दिन- दिन घुलती जाती थी। एक दिन मेहरोत्रा जी से स्वप्न में उनके पिता जी ने कहा- ‘बेटा, गायत्री का जप कर, सब विपत्ति दूर हो जायेगी।’ दूसरे दिन से उन्होंने वैसा ही किया। फलस्वरूप उपद्रव शान्त हो गये और स्त्री नीरोग हो गयी। उनकी बहिन की ननद भी इस गायत्री जप द्वारा भूत बाधा से मुक्त हुई।
चाचौड़ा के डाँ० भगवान् स्वरूप की स्त्री भी प्रेत बाधा में मरणासन्न स्थिति को पहुँच गयी थी। उसकी प्राण रक्षा भी एक गायत्री उपासक के प्रयत्न से हुई।
बिझौली के बाबा उमाशंकर खरे के परिवार से गाँव के जाट परिवार की पुश्तैनी दुश्मनी थी। इस रंजिश के कारण कई बार खरे के यहाँ डकैतियाँ हो चुकी थीं और बड़े- बड़े नुकसान हुए थे। सदा ही जान- जोखिम का अन्देशा रहता था। खरे जी ने गायत्री भक्ति का मार्ग अपनाया। उनके मधुर व्यवहार ने अपने परिवार को शान्त स्वभाव और गाँव को नरम बना लिया। पुराना बैर समाप्त होकर नई सद्भावना कायम हुई।
खडग़पुर के श्री गोकुलचन्द सक्सेना रेलवे के लोको दफ्तर में कर्मचारी थे। इनके दफ्तर में ऊँचे ओहदे के कर्मचारी उनसे द्वेष करते थे और षड्यन्त्र करके उनकी नौकरी छुड़ाना चाहते थे। उनके अनेकों हमले विफल हुए। सक्सेना जी का विश्वास है कि गायत्री उनकी रक्षा करती है और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।।
बम्बई के श्री मानिकचन्द्र पाटोदिया व्यापारिक घाटे के कारण काफी रुपये के कर्जदार हो गये थे। कर्ज चुकाने की कोई व्यवस्था हो नहीं पायी थी कि सट्टे में और भी नुकसान हो गया। दिवालिया होकर अपनी प्रतिष्ठा खोने और भविष्य में दु:खी जीवन बिताने के लक्षण स्पष्ट रूप से सामने थे। विपत्ति में सहायता के लिये उन्होंने गायत्री अनुष्ठान कराया। साधना के प्रभाव से दिन- दिन लाभ होने लगा। रुई और चाँदी के चान्स अच्छे आ गये, जिसमे सारा कर्ज चुक गया। गिरा हुआ व्यापार फिर चमकने लगा।
दिल्ली के प्रसिद्ध पहलवान गोपाल विश्नोई कोई बड़ी कुश्ती लडऩे जाते थे, तो पहले गायत्री पुरश्चरण करते थे। प्राय: सदा ही विजयी होकर लौटते थे।
बाँसवाड़ा के श्री सीताराम मालवीय को क्षय रोग हो गया था। एक्सरे होने पर डॉक्टरों ने बताया कि उनके फेफड़े खराब हो गये हैं। दशा निराशाजनक थी। सैकड़ों रुपये की दवा खाने पर भी जब कुछ आराम न हुआ, तो एक वयोवृद्ध विद्वान् के आदेशानुसार उन्होंने चारपाई पर पड़े- पड़े गायत्री का जप आरम्भ कर दिया और मन ही मन प्रतिज्ञा की कि यदि मैं बच गया, तो अपना जीवन देश हित में लगा दूँगा ।। प्रभु की कृपा से वे बच गये। धीरे- धीरे स्वास्थ्य सुधरा और बिलकुल भले चंगे हो गये ।। तब से अब तक वे आदिवासियों, भीलों तथा पिछड़ी हुई जातियों के लोगों की सेवा में लगे हुए हैं।
थरपारकर के ला० करनदास का लड़का बहुत ही दुबला और कमजोर था, आये दिन बीमार पड़ा रहता था। आयु १९ वर्ष की हो चुकी थी, पर देखने में १३ वर्ष से अधिक न मालूम पड़ता था। लडक़े को उनके कुलगुरु ने गायत्री की उपासना का आदेश दिया। उसका मन इस ओर लग गया। एक- एक करके उसकी सब बीमारियाँ छूट गयीं। कसरत करने लगा, खाना भी हजम होने लगा। दो- तीन वर्ष में उसका शरीर ड्यौढ़ा हो गया और घर का सब काम- काज होशियारी के साथ सँभालने लगा।
प्रयाग के श्री मुन्नूलाल जी के दौहित्र की दशा बहुत खराब हो गयी थी। गला फूल गया था। डॉक्टर अपना प्रयत्न कर रहे थे, पर कोई दवा कारगर नहीं होती थी। तब उनके घरवालों ने गायत्री उपासना का सहारा लिया। रातभर गायत्री जप तथा चालीसा पाठ चलता रहा। सबेरा होते- होते दशा बहुत कुछ सुधर गयी और दो- चार दिन में वह पुन: खेलने- कूदने लगा।
आगरा निवासी श्री रामकरण जी किसी के यहाँ निमन्त्रण पाकर भोजन करने गये। वहाँ से घर लौटते ही उनका मस्तिष्क विकृत हो गया। वे पागल होकर इधर- उधर फिरने लगे। एक दिन उन्होंने अपनी जाँघ में ईंट मारकर उसे खूब सूजा लिया। उनका जीवन निरर्थक जान पड़ने लग गया था। एक दिन कुछ लोग परामर्श करके उन्हें पकडक़र जबरदस्ती गायत्री उपासक के पास ले आये। उन्होंने उनकी कल्याण भावना से चावल को गायत्री मन्त्र से अभिमन्त्रित करके उनके शरीर पर छींटे मारे, जिससे वे मूर्छित के समान गिर गये। कुछ देर बाद वे उठे और पीने को पानी माँगा। उन्हें गायत्री मन्त्र से अभिमन्त्रित जल पिलाया गया, जिससे कुछ समय में वे बिल्कुल ठीक हो गये।
श्री नारायण प्रसाद कश्यप राजनाँदगाँव वालों के बड़े भाई पर कुछ लोगों ने मिलकर एक फौजदारी का मुकदमा चलाया। वह मुकदमा चार वर्ष तक चला। इसी प्रकार उनके छोटे भाई पर कत्ल का अभियोग लगाया। इन लोगों ने गायत्री माता का आँचल पकड़ा और दोनों मुकदमों में से इन्हें छुटकारा मिला।
स्वामी योगानन्द जी संन्यासी को कुछ म्लेच्छ अकारण बहुत सताते थे। उन्हें गायत्री का आग्नेयास्त्र सिद्ध था, उसका उन्होंने उन म्लेच्छों पर प्रयोग किया, तो उनके शरीर ऐसे जलने लगे मानो किसी ने अग्रि लगा दी हो। वे मरणतुल्य कष्ट से छटपटाने लगे। तब लोगों की प्रार्थना पर स्वामीजी ने उस अन्तर्दाह को शान्त किया। इसके बाद वे सदा के लिये सीधे हो गये।
नन्दनपुरवा के सत्यनारायण जी एक अच्छे गायत्री उपासक हैं। इन्हें अकारण सताने वाले गुण्डों पर ऐसा वज्रपात हुआ कि एक भाई २४ घण्टे के अन्दर हैजे से मर गया और शेष भाइयों को पुलिस डकैती के अभियोग में पकडक़र ले गयी। उन्हें पाँच- पाँच वर्ष की जेल काटनी पड़ी।
इस प्रकार के अनेकों प्रमाण मौजूद हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि गायत्री माता का आँचल श्रद्धापूर्वक पकडऩे से मनुष्य अनेक प्रकार की आपत्तियों से सहज में छुटकारा पा सकता है। अनिवार्य कर्म- भोगों एवं कठोर प्रारब्ध में भी कई बार आश्चर्यजनक सुधार होते देखे गये हैं।
गायत्री उपासना का मूल लाभ आत्म- शान्ति है। इस महामन्त्र के प्रभाव से आत्मा में सतोगुण बढ़ता है और अनेक प्रकार की आत्मिक समृद्धियाँ बढ़ती हैं, साथ ही अनेक प्रकार के सांसारिक लाभ भी मिलते हैं।
विपत्ति और विपरीत परिस्थितियों की धारा से त्राण पाने के लिए धैर्य, साहस, विवेक और प्रयत्न की आवश्यकता है। इन चारों कोनों वाली नाव पर चढक़र ही संकट की नदी को पार करना सुगम होता है। गायत्री की साधना आपत्ति के समय इन चार तत्त्वों को मनुष्य के अन्तःकरण में विशेष रूप से प्रोत्साहित करती है, जिससे वह ऐसा मार्ग ढूँढऩे में सफल हो जाता है जो उसे विपत्ति से पार लगा दे।
आपत्तियों में फँसे हुए अनेकों व्यक्ति गायत्री की कृपा से किस प्रकार पार उतरे, उनके कुछ उदाहरण हमारी जानकारी में इस पकार हैं—
घाटकोपर बम्बई के श्री आर. बी. वेद गायत्री की कृपा से घोर साम्प्रदायिक दंगों के दिनों में मुस्लिम बस्तियों से निर्भय होकर निकलते रहते थे। उनकी पुत्री को एक बार भयंकर हैजा हुआ। यह भी उसी के अनुग्रह पर शान्त हुआ। एक महत्त्वपूर्ण मुकदमे में भी अनुकूल फैसला हुआ।
इन्दौर, काँगड़ा के चौ. अमरसिंह एक ऐसी जगह बीमार पड़े, जहाँ की जलवायु बड़ी खराब थी और जहाँ कोई चिकित्सक खोजे न मिलता था। उस भयंकर बीमारी में गायत्री प्रार्थना को उन्होंने औषधि बनाया और अच्छे हो गये।
बम्बई के पं. रामशरण शर्मा जब गायत्री अनुष्ठान कर रहे थे, उन्हीं दिनों उनके माता- पिता सख्त बीमार हुए। परन्तु अनुष्ठान के प्रभाव से उनका बाल भी बाँका न हुआ, दोनों ही नीरोग हो गये।
इटौआधुरा के डॉक्टर रामनारायण जी भटनागर को उनकी स्वर्गीया पत्नी ने स्वप्न में दर्शन देकर गायत्री जप करने की शिक्षा दी थी। तब से वे बराबर इस साधना को कर रहे हैं। चिकित्सा क्षेत्र में उनके हाथ में ऐसा यश आया है कि बड़े- बड़े कष्टसाध्य रोगी उनकी चिकित्सा से अच्छे हुए हैं।
कनकुवा जि० हमीरपुर के लक्ष्मीनारायण श्रीवास्तव बी० ए० एल० एल० बी० की धर्मपत्नी प्रसवकाल में अत्यन्त कष्ट पीडि़त हुआ करती थी। गायत्री उपासना से उनका कष्ट बहुत कम हो गया। एक बार उनका लडक़ा मोतीझरा से पीडि़त हुआ। बेहोशी और चीखने की दशा को देखकर सब लोग बड़े दु:खी थे। वकील साहब की गायत्री प्रार्थना के द्वारा बालक को गहरी नींद आ गयी और वह थोड़े ही दिनों में स्वस्थ हो गया।
जफरापुर के ठा० रामकरण सिंह जी वैद्य की धर्मपत्नी को दो वर्ष से संग्रहणी की बीमारी थी। अनेक प्रकार से चिकित्सा कराने पर भी जब लाभ न हुआ, तो सवालक्ष गायत्री जप का अनुष्ठान किया गया। फलस्वरूप वह पूर्ण स्वस्थ हो गयीं और उनके एक पुत्र पैदा हुआ।
कसराबाद, निमाड़ के श्री शंकरलाल व्यास का बालक इतना बीमार था कि डाक्टर वैद्यों ने आशा छोड़ दी। दस हजार गायत्री जप के प्रभाव से वह अच्छा हुआ।
एक बार व्यास जी रास्ता भूलकर रात के समय ऐसे पहाड़ी बीहड़ जंगल में फँस गये, जहाँ हिंसक जानवर चारों ओर शोर करते हुए घूम रहे थे। इस संकट के समय में उन्होंने गायत्री का ध्यान किया और उनके प्राण बच गये।
विहिया, शाहाबाद के श्री गुरुचरण आर्य एक अभियोग में जेल भेज दिये गये। छुटकारे के लिये वे जेल में जप करते रहते थे। वे अचानक जेल से छूट गये और मुकदमे में निर्दोष बरी हो गये।
मुन्द्रावजा के श्री प्रकाश नारायण मिश्र कक्षा १० की पढ़ाई में पारिवारिक कठिनाइयों के कारण ध्यान न दे सके ।। परीक्षा के २५ दिन रह गये, तब उन्होंने पढऩा और गायत्री का जप करना आरम्भ किया। उत्तीर्ण होने की आशा न थी, फिर भी उन्हें सफलता मिली। मिश्र जी के बाबा शत्रुओं के ऐसे कुचक्र में फँस गये कि जेल जाना पड़ा। गायत्री अनुष्ठान के कारण वे उस आपत्ति से बच गये ।।
काशी के पं० धरनीदत्त शास्त्री का कथन है कि उनके दादा पं० कन्हैयालाल गायत्री के उपासक थे। बचपन में शास्त्री जी अपने दादा के साथ रात के समय कुएँ पर पानी लेने गये ।। उन्होंने देखा कि वहाँ पर एक भयंकर प्रेत आत्मा है जो कभी भैंसा बनकर, कभी शूकर बनकर उन पर आक्रमण करना चाहती है। वह कभी मुख से, कभी सिर से भयंकर अग्रि ज्वालाएँ फेंकता रहा और कभी मनुष्य, कभी हिंसक जन्तु बनकर एक- डेढ़ घण्टे तक भयोत्पादन करता रहा। दादा ने मुझे डरा हुआ देखकर समझा दिया कि बेटा, हम गायत्री उपासक हैं, यह प्रेत आत्मा हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अन्त में वे दोनों सकुशल घर को गये, प्रेत का क्रोध असफल रहा।
‘‘सनाढ्य जीवन’’ इटावा के सम्पादक पं० प्रभुदयाल शर्मा का कथन है कि उनकी पुत्रवधू तथा नातियों को कोई दुष्ट प्रेतात्मा लग गयी थी। हाथ, पैर और मस्तक में भारी पीड़ा होती थी और बेहोशी आ जाती थी। रोग- मुक्ति के जब सब प्रयत्न असफल हुए, तो गायत्री का आश्रय लेने से वह बाधा दूर हुई। इसी प्रकार शर्मा जी का भतीजा भी मृत्यु के मुँह में अटका था। उसे गोदी में लेकर गायत्री का जप किया गया, बालक अच्छा हो गया। शर्मा जी के ताऊ जी दानापुर (पटना) गये हुए थे। वहाँ वे स्नान के बाद गायत्री का जप कर रहे थे कि अचानक उनके कान में जोर से शब्द हुआ- ‘जल्दी निकल भाग, यह मकान अभी गिरने वाला है।’ वे खिडक़ी से कूद कर भागे। मुश्किल से चार- छ: कदम गये होंगे कि मकान गिर पड़ा और वे बाल- बाल बच गये।
शेखपुरा के अमोलकचन्द्र गुप्ता बचपन में ही पिता की और किशोरावस्था में माता की मृत्यु हो जाने से कुसंग में पडक़र अनेक बुरी आदतों में फँस गये थे। दोस्तों की चौकड़ी दिनभर जमी रहती और ताश, शतरंज, गाना- बजाना, वेश्या- नृत्य, सिगरेट, शराब, जुआ, व्यभिचार, नाच- तमाशा, सैर- सपाटा, भोजन पार्टी आदि के दौर चलते रहते। इसी कुचक्र में पाँच वर्ष के भीतर नकदी, जेवर, मकान और बीस हजार की जायदाद स्वाहा हो गयी। जब कुछ न रहा, तो जुए के अड्डे, व्यभिचार की दलाली, चोरी, जेबकटी, लूट, धोखाधड़ी आदि की नई- नई तरकीबें निकालकर एक छोटे गिरोह के साथ अपना गुजारा करने लगे। इसी स्थिति में उनका चित्त बड़ा अशान्त रहता। एक दिन एक महात्मा ने उन्हें गायत्री का उपदेश दिया। उनकी श्रद्धा जम गयी। धीरे- धीरे उत्तम विचारों की वृद्धि हुई। पश्चात्ताप और प्रायश्चित्त की भावना बढऩे से उन्होंने चान्द्रायण व्रत, तीर्थ, अनुष्ठान और प्रायश्चित्त किये। अब वे एक दुकान करके अपना गुजारा करते हैं और पुरानी बुरी आदतों से मुक्त हैं।
रानीपुरा के ठा० अङ्गजीत राठौर एक डकैती के केस में फँस गये थे। जेल में गायत्री का जप करते रहते थे। मुकदमे में निर्दोष हो छुटकारा पाया।
अम्बाला के मोतीलाल माहेश्वरी का लडक़ा कुसंग में पडक़र ऐसी बुरी आदतों का शिकार हो गया था, जिससे उनके प्रतिष्ठित परिवार पर कलंक के छींटे पड़ते थे। माहेश्वरी जी ने दु:खी होकर गायत्री की शरण ली। उस तपश्चर्या के प्रभाव से लडक़े की मति पलटी और अशान्त परिवार में शान्त वातावरण उत्पन्न हो गया।
टोंक के श्री शिवनारायण श्रीवास्तव के पिता जी के मरने पर जमींदारी की दो हजार रुपये सालाना आमदनी पर गुजारा करने वाले १९ व्यक्ति रह गये। परिश्रम कोई न करता, पर खर्च सब बढ़ाते और जमींदारी से माँगते। निदान वह घर फूट और कलह का अखाड़ा बन गया। फौजदारी और मुकदमेबाजी के आसार खड़े हो गये। श्रीवास्तव जी को इससे बड़ा दु:ख होता, क्योंकि वे पिताजी के उत्तराधिकारी गृहपति थे। दु:खी होकर एक महात्मा के आदेशानुसार उन्होंने गायत्री जप आरंभ किया। परिस्थिति बदली। बुद्धियों में सुधार हुआ। कमाने लायक लोग नौकरी तथा व्यापार में लग गये। झगड़े शान्त हुए। डगमगाता हुआ घर बिगडऩे से बच गया।
अमरावती के सोहनलाल मेहरोत्रा की स्त्री को भूत बाधा बनी रहती थी। बड़ा कष्ट था, हजारों रुपये खर्च हो चुके थे। स्त्री दिन- दिन घुलती जाती थी। एक दिन मेहरोत्रा जी से स्वप्न में उनके पिता जी ने कहा- ‘बेटा, गायत्री का जप कर, सब विपत्ति दूर हो जायेगी।’ दूसरे दिन से उन्होंने वैसा ही किया। फलस्वरूप उपद्रव शान्त हो गये और स्त्री नीरोग हो गयी। उनकी बहिन की ननद भी इस गायत्री जप द्वारा भूत बाधा से मुक्त हुई।
चाचौड़ा के डाँ० भगवान् स्वरूप की स्त्री भी प्रेत बाधा में मरणासन्न स्थिति को पहुँच गयी थी। उसकी प्राण रक्षा भी एक गायत्री उपासक के प्रयत्न से हुई।
बिझौली के बाबा उमाशंकर खरे के परिवार से गाँव के जाट परिवार की पुश्तैनी दुश्मनी थी। इस रंजिश के कारण कई बार खरे के यहाँ डकैतियाँ हो चुकी थीं और बड़े- बड़े नुकसान हुए थे। सदा ही जान- जोखिम का अन्देशा रहता था। खरे जी ने गायत्री भक्ति का मार्ग अपनाया। उनके मधुर व्यवहार ने अपने परिवार को शान्त स्वभाव और गाँव को नरम बना लिया। पुराना बैर समाप्त होकर नई सद्भावना कायम हुई।
खडग़पुर के श्री गोकुलचन्द सक्सेना रेलवे के लोको दफ्तर में कर्मचारी थे। इनके दफ्तर में ऊँचे ओहदे के कर्मचारी उनसे द्वेष करते थे और षड्यन्त्र करके उनकी नौकरी छुड़ाना चाहते थे। उनके अनेकों हमले विफल हुए। सक्सेना जी का विश्वास है कि गायत्री उनकी रक्षा करती है और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।।
बम्बई के श्री मानिकचन्द्र पाटोदिया व्यापारिक घाटे के कारण काफी रुपये के कर्जदार हो गये थे। कर्ज चुकाने की कोई व्यवस्था हो नहीं पायी थी कि सट्टे में और भी नुकसान हो गया। दिवालिया होकर अपनी प्रतिष्ठा खोने और भविष्य में दु:खी जीवन बिताने के लक्षण स्पष्ट रूप से सामने थे। विपत्ति में सहायता के लिये उन्होंने गायत्री अनुष्ठान कराया। साधना के प्रभाव से दिन- दिन लाभ होने लगा। रुई और चाँदी के चान्स अच्छे आ गये, जिसमे सारा कर्ज चुक गया। गिरा हुआ व्यापार फिर चमकने लगा।
दिल्ली के प्रसिद्ध पहलवान गोपाल विश्नोई कोई बड़ी कुश्ती लडऩे जाते थे, तो पहले गायत्री पुरश्चरण करते थे। प्राय: सदा ही विजयी होकर लौटते थे।
बाँसवाड़ा के श्री सीताराम मालवीय को क्षय रोग हो गया था। एक्सरे होने पर डॉक्टरों ने बताया कि उनके फेफड़े खराब हो गये हैं। दशा निराशाजनक थी। सैकड़ों रुपये की दवा खाने पर भी जब कुछ आराम न हुआ, तो एक वयोवृद्ध विद्वान् के आदेशानुसार उन्होंने चारपाई पर पड़े- पड़े गायत्री का जप आरम्भ कर दिया और मन ही मन प्रतिज्ञा की कि यदि मैं बच गया, तो अपना जीवन देश हित में लगा दूँगा ।। प्रभु की कृपा से वे बच गये। धीरे- धीरे स्वास्थ्य सुधरा और बिलकुल भले चंगे हो गये ।। तब से अब तक वे आदिवासियों, भीलों तथा पिछड़ी हुई जातियों के लोगों की सेवा में लगे हुए हैं।
थरपारकर के ला० करनदास का लड़का बहुत ही दुबला और कमजोर था, आये दिन बीमार पड़ा रहता था। आयु १९ वर्ष की हो चुकी थी, पर देखने में १३ वर्ष से अधिक न मालूम पड़ता था। लडक़े को उनके कुलगुरु ने गायत्री की उपासना का आदेश दिया। उसका मन इस ओर लग गया। एक- एक करके उसकी सब बीमारियाँ छूट गयीं। कसरत करने लगा, खाना भी हजम होने लगा। दो- तीन वर्ष में उसका शरीर ड्यौढ़ा हो गया और घर का सब काम- काज होशियारी के साथ सँभालने लगा।
प्रयाग के श्री मुन्नूलाल जी के दौहित्र की दशा बहुत खराब हो गयी थी। गला फूल गया था। डॉक्टर अपना प्रयत्न कर रहे थे, पर कोई दवा कारगर नहीं होती थी। तब उनके घरवालों ने गायत्री उपासना का सहारा लिया। रातभर गायत्री जप तथा चालीसा पाठ चलता रहा। सबेरा होते- होते दशा बहुत कुछ सुधर गयी और दो- चार दिन में वह पुन: खेलने- कूदने लगा।
आगरा निवासी श्री रामकरण जी किसी के यहाँ निमन्त्रण पाकर भोजन करने गये। वहाँ से घर लौटते ही उनका मस्तिष्क विकृत हो गया। वे पागल होकर इधर- उधर फिरने लगे। एक दिन उन्होंने अपनी जाँघ में ईंट मारकर उसे खूब सूजा लिया। उनका जीवन निरर्थक जान पड़ने लग गया था। एक दिन कुछ लोग परामर्श करके उन्हें पकडक़र जबरदस्ती गायत्री उपासक के पास ले आये। उन्होंने उनकी कल्याण भावना से चावल को गायत्री मन्त्र से अभिमन्त्रित करके उनके शरीर पर छींटे मारे, जिससे वे मूर्छित के समान गिर गये। कुछ देर बाद वे उठे और पीने को पानी माँगा। उन्हें गायत्री मन्त्र से अभिमन्त्रित जल पिलाया गया, जिससे कुछ समय में वे बिल्कुल ठीक हो गये।
श्री नारायण प्रसाद कश्यप राजनाँदगाँव वालों के बड़े भाई पर कुछ लोगों ने मिलकर एक फौजदारी का मुकदमा चलाया। वह मुकदमा चार वर्ष तक चला। इसी प्रकार उनके छोटे भाई पर कत्ल का अभियोग लगाया। इन लोगों ने गायत्री माता का आँचल पकड़ा और दोनों मुकदमों में से इन्हें छुटकारा मिला।
स्वामी योगानन्द जी संन्यासी को कुछ म्लेच्छ अकारण बहुत सताते थे। उन्हें गायत्री का आग्नेयास्त्र सिद्ध था, उसका उन्होंने उन म्लेच्छों पर प्रयोग किया, तो उनके शरीर ऐसे जलने लगे मानो किसी ने अग्रि लगा दी हो। वे मरणतुल्य कष्ट से छटपटाने लगे। तब लोगों की प्रार्थना पर स्वामीजी ने उस अन्तर्दाह को शान्त किया। इसके बाद वे सदा के लिये सीधे हो गये।
नन्दनपुरवा के सत्यनारायण जी एक अच्छे गायत्री उपासक हैं। इन्हें अकारण सताने वाले गुण्डों पर ऐसा वज्रपात हुआ कि एक भाई २४ घण्टे के अन्दर हैजे से मर गया और शेष भाइयों को पुलिस डकैती के अभियोग में पकडक़र ले गयी। उन्हें पाँच- पाँच वर्ष की जेल काटनी पड़ी।
इस प्रकार के अनेकों प्रमाण मौजूद हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि गायत्री माता का आँचल श्रद्धापूर्वक पकडऩे से मनुष्य अनेक प्रकार की आपत्तियों से सहज में छुटकारा पा सकता है। अनिवार्य कर्म- भोगों एवं कठोर प्रारब्ध में भी कई बार आश्चर्यजनक सुधार होते देखे गये हैं।
गायत्री उपासना का मूल लाभ आत्म- शान्ति है। इस महामन्त्र के प्रभाव से आत्मा में सतोगुण बढ़ता है और अनेक प्रकार की आत्मिक समृद्धियाँ बढ़ती हैं, साथ ही अनेक प्रकार के सांसारिक लाभ भी मिलते हैं।