• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • आत्मनिवेदन
    • आदि जिज्ञासा, शिष्य का प्रथम प्रश्न
    • सद्गुरू से मिलना जैसे रोशनी फैलाते दिये से एकाकार होना
    • सद्गुरू की प्राप्ति ही आत्मसाक्षात्कार
    • परमसिद्धि का राजमार्ग
    • गुंरू- चरण व रज का माहात्म्य
    • साक्षात् भगवान् विश्वनाथ होते हैं - सद्गुरू
    • स्वयं से कहो- शिष्योऽहम्
    • समर्पण विसर्जन विलय
    • सब कुछ गुरू को अर्पित हो
    • आओ गुरू को करें हम नमन
    • शंकर रूप सद्गुरू को बारंबार नमन
    • शिवभाव से करें नित्य सद्गुरू का ध्यान
    • गुरू से बड़ा तीनों लोकों में और कोई नहीं
    • गुरू कृपा ने बनाया महासिद्ध
    • गुरूकृपा से असंभव भी संभव है
    • गुरूचरणों की रज कराए भवसागर से पार
    • साधन सिद्धि गुरूवर पद नेहू
    • मंत्रराज है सद्गुरू का नाम
    • भावनाओं का हो सद्गुरू की पराचेतना में विसर्जन
    • सद्गुरू की कठोरता में भी प्रेम छिपा है
    • मद्गुरूः श्री जगद्गुरूः
    • मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यम्
    • चेतना के रहस्यों का जानकार होता है सद्गुरू
    • श्री सद्गुरू शरणं मम
    • गुरू ही इष्ट है इष्ट ही गुरू है
    • एक ही यज्ञ अहं को भस्म कर देना
    • सहस्त्रदल कमल पर सद्गुरू की दिव्यमूर्ति का ध्यान
    • गुरू का वाक्य ब्रह्मवाक्य समान
    • सबसे सच्ची सिद्धि गुरूभक्ति
    • गुरूसेवा ही सच्ची साधना
    • गुरूभक्ति ही साधना वही है सिद्धि
    • सत् चित् आनन्दमयी सद्गुरू की सत्ता
    • सद्गुरू को तत्व से जान लेने का मर्म
    • सद्गुरू की कृपा से ही मिलती है मुक्ति
    • गुरूकृपा गृहस्थ को भी विदेह बना देती है
    • सच्चे शिष्य का एक ही स्वर- निष्काम कर्म
    • गुरूगीता का प्रत्येक अक्षर मंत्रराज है
    • ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान रूप में गुरूगीता
    • साधना से सिद्धि में आसन व दिशा का भी महत्तव
    • गुरू भक्ति की सिद्धि सर्वोपरि सबसे बड़ी
    • कष्टों में भी प्रसन्न रखती है गुरूभक्ति
    • कामधेनु कल्पतरू चिन्तामणि है गुरूगीता का पाठ
    • गुरूगीता से मिलता है ज्ञान का परम प्रकाश
    • गुरूगीता के पाठ की महिमा न्यारी
    • सर्वसंकटहारिणी गुरूगीता की मंत्र साधना
    • सारे तीर्थ विद्यमान होते हैं जहाँ
    • संकटमोचक मोक्षदायी है गुरूगीता का पाठ
    • परम गोपनीय संकट रक्षक है यह ज्ञानामृत
    • महामंत्र एवं मंत्रराज है गुरूगीता
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • आत्मनिवेदन
    • आदि जिज्ञासा, शिष्य का प्रथम प्रश्न
    • सद्गुरू से मिलना जैसे रोशनी फैलाते दिये से एकाकार होना
    • सद्गुरू की प्राप्ति ही आत्मसाक्षात्कार
    • परमसिद्धि का राजमार्ग
    • गुंरू- चरण व रज का माहात्म्य
    • साक्षात् भगवान् विश्वनाथ होते हैं - सद्गुरू
    • स्वयं से कहो- शिष्योऽहम्
    • समर्पण विसर्जन विलय
    • सब कुछ गुरू को अर्पित हो
    • आओ गुरू को करें हम नमन
    • शंकर रूप सद्गुरू को बारंबार नमन
    • शिवभाव से करें नित्य सद्गुरू का ध्यान
    • गुरू से बड़ा तीनों लोकों में और कोई नहीं
    • गुरू कृपा ने बनाया महासिद्ध
    • गुरूकृपा से असंभव भी संभव है
    • गुरूचरणों की रज कराए भवसागर से पार
    • साधन सिद्धि गुरूवर पद नेहू
    • मंत्रराज है सद्गुरू का नाम
    • भावनाओं का हो सद्गुरू की पराचेतना में विसर्जन
    • सद्गुरू की कठोरता में भी प्रेम छिपा है
    • मद्गुरूः श्री जगद्गुरूः
    • मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यम्
    • चेतना के रहस्यों का जानकार होता है सद्गुरू
    • श्री सद्गुरू शरणं मम
    • गुरू ही इष्ट है इष्ट ही गुरू है
    • एक ही यज्ञ अहं को भस्म कर देना
    • सहस्त्रदल कमल पर सद्गुरू की दिव्यमूर्ति का ध्यान
    • गुरू का वाक्य ब्रह्मवाक्य समान
    • सबसे सच्ची सिद्धि गुरूभक्ति
    • गुरूसेवा ही सच्ची साधना
    • गुरूभक्ति ही साधना वही है सिद्धि
    • सत् चित् आनन्दमयी सद्गुरू की सत्ता
    • सद्गुरू को तत्व से जान लेने का मर्म
    • सद्गुरू की कृपा से ही मिलती है मुक्ति
    • गुरूकृपा गृहस्थ को भी विदेह बना देती है
    • सच्चे शिष्य का एक ही स्वर- निष्काम कर्म
    • गुरूगीता का प्रत्येक अक्षर मंत्रराज है
    • ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान रूप में गुरूगीता
    • साधना से सिद्धि में आसन व दिशा का भी महत्तव
    • गुरू भक्ति की सिद्धि सर्वोपरि सबसे बड़ी
    • कष्टों में भी प्रसन्न रखती है गुरूभक्ति
    • कामधेनु कल्पतरू चिन्तामणि है गुरूगीता का पाठ
    • गुरूगीता से मिलता है ज्ञान का परम प्रकाश
    • गुरूगीता के पाठ की महिमा न्यारी
    • सर्वसंकटहारिणी गुरूगीता की मंत्र साधना
    • सारे तीर्थ विद्यमान होते हैं जहाँ
    • संकटमोचक मोक्षदायी है गुरूगीता का पाठ
    • परम गोपनीय संकट रक्षक है यह ज्ञानामृत
    • महामंत्र एवं मंत्रराज है गुरूगीता
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - गुरुगीता

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


गुरू से बड़ा तीनों लोकों में और कोई नहीं

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 13 15 Last
गुरूगीता में गुरूतत्त्व की अनुभूति समायी है। सद्गुरू भक्तों के लिए सहज- सुलभ यह अनुभूति बुद्धिप्रवण जनों के लिए परम दुर्लभ है। ऐसे लोग अपनी तर्क- बुद्धि से देहधारी गुरूसत्ता को सामान्य मानव समझने की भूल करते रहते हैं वे सोचते हैं- हमारी ही तरह दिखने वाला यह व्यक्ति हमसे इतना अलग और असाधारण किस भाँति हो सकता है? जो ठीक हमारी तरह खाता- पीता व सोता है, वह भला किस तरह ईश्वरीय तत्त्व की सघन प्रतिमूर्ति हो सकता है? अनेकों शंकाएँ- कुशंकाएँ उनके मन- अन्तःकरण को घेरे रहती हैं। अनगिनत संदेह- भ्रम उन्हें परेशान करते रहते हैं। मूढ़ताओं का यह कुहासा इतना गहरा होता है कि सूर्य की भाँति प्रकाशित सद्गुरू चेतना उन्हें नजर ही नहीं आती। अपनी तर्कप्रवण बुद्धि में उलझकर वे यह भूल जाते हैं कि गुरूदेव तो तर्क से अतीत हैं। वे महामहेश्वर गुरूदेव बुद्धिगम्य नहीं ,भावगम्य हैं।      उन भावगम्य भगवान् को तर्क से नहीं, श्रद्धा से समझा जा सकता है। उन्हें नमन एवं समर्पण से ही इस सत्य का बोध होता है कि वे कौन हैं? गुरू भक्त्ति कथा की पिछली पंक्तियों में इसी तत्त्व की अनुभूति कराने की चेष्टा की गई है। इसमें यह ज्ञान कराया गया है कि गुरूदेव ब्राह्यी चेतना से सर्वथा अभिन्न होने के कारण इस जगत् के परम स्त्रोत हैं। यह जगत् भी उन्हीं का विराट् रूप है। वे एक साथ महाबीज भी हैं और महावट भी। ऊपरी तौर पर हर कहीं- सब कहीं कितना भी भेद क्यों न दिखाई दे, पर गुरूदेव की परम पावन चेतना सभी कुछ अभिन्न और अभेद है। उनके चरण कमलों में आश्रय पाने से शिष्यों के सभी दुःख, द्वन्द्व और तापों का निवारण हो जाता है। उनका प्रभाव और प्रताप कुछ ऐसा है कि महारूद्र यदि क्रुद्ध हो जायें ,, तो गुरू कृपा से शिष्य का त्राण हो जाता है; परन्तु सद्गुरू के रूष्ट होने से स्वयं महारूद्र भी रक्षा नहीं कर पाते हैं। सद्गुरू चरण युगल शिव- शक्ति का ही रूप हैं। उनकी बार- बार वन्दना करने से शिष्यों का सब भाँति कल्याण होता है।      गुरू नमन की यह महिमा गुरूतत्त्व के विस्तार की ही भाँति असीम और अनन्त है। इसके अगले क्रम को गुरूगीता के महामन्त्रों में प्रकट करते हुए भगवान् सदाशिव- पराम्बा भवानी से कहते हैं- 
गुकारं च गुणातीतं रूकारं रूपवर्जितम् ।। गुणातीत स्वरूपं च यो दद्यात् स गुरूः स्मृतः॥४६॥ अ- त्रिनेत्रः सर्वसाक्षी अ- चतुर्बाहुरच्युतः। अ- चतुर्वदनो ब्रह्मा श्री गुरूः कथितः प्रिये॥ ४७॥ अयं मयाञ्जलिर्बद्धो दयासागरवृद्धये ।। यद् अनुग्रहतो जन्तुश्र्वित्र संसार मुक्तिभाक ॥४८॥ श्रीगुरोः परमं रूपं विवेक चक्षुषोऽमृतम्। मन्दभाग्या न पश्यन्ति अन्धाः सूर्योदयं यथा॥ ४९॥ श्रीनाथ चरणद्वन्द्वं यस्यां दिशि विराजते। तस्यै दिशेनमस्कुर्याद् भक्त्या प्रतिदिनं प्रिये॥ ५०॥ 
     गुरूतत्त्व की अनुभूति कराने वाले इन महामंत्रों में आध्यात्मिक जीवन का निष्कर्ष प्रकट है। भगवान् महेश्वर की वाणी शिष्यों के समक्ष इस सत्य को उजागर करती है कि गुरूदेव साकार होते हुए भी निराकार हैं। गुरू शब्द का पहला अक्षर गु इस सत्य का बोध कराता है कि त्रिगुणमय कलेवर को धारण करने वाले गुरूदेव सर्वथा गुणातीत हैं। दूसरे अक्षर रु में यह सत्य निहित है कि शिष्यों के लिए रूप वाले होते हुए भी गुरूदेव भगवान् रूपातीत हैं। यानि कि गुरूवर की चेतना वास्तव में निर्गुण व निराकार है। शिष्य को आत्मा स्वरूप प्रदान करने वाले गुरूदेव की महिमा अनन्त है॥ ४६॥ भगवान् सदाशिव के वचन हैं कि तीन आँखों वाले न होने पर भी गुरूदेव साक्षात् शिव हैं। चार भुजाएँ न होने पर भी वे सर्वव्यापी विष्णु हैं। चार मुख न होने पर भी वे सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा हैं॥ ४७॥ ऐसे दयासागर गुरूदेव को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। उनकी कृपा से ही जीवों को भेद बुद्धि वाले संसार से मुक्त्ति मिलती है ॥ ४८॥ श्री सद्गुरू का यह परम रूप उनसे विवेक चक्षु मिलने पर ही दृश्य होता है; तभी उनके अमृत तुल्य रूप का स्पर्श मिलता है। इसके अभाव में जिस तरह अन्धा व्यक्ति सूर्योदय के दृश्य को नहीं देख पाता॥ ४९॥ उन परम स्थायी सद्गुरू के चरणद्वय जिस दिशा में भी विराजते हैं, उस दिशा में प्रतिदिन नमस्कार करने से शिष्यों का- भक्तों का परम कल्याण होता है॥ ५०॥      गुरूगीता में वर्णित यह गुरूतत्त्व बुद्धिगम्य ही नहीं, घ्यानगम्य व भक्तिगम्य भी है। जिनकी अंतर्चेतना ने भक्ति का स्वाद चखा है, जो ध्यान की गहराइयों में अंतर्लीन हुए हैं, उन्हें यह सत्य सहज ही समझ में आ जाता है। इस तथ्य को श्रीरामकृष्ण देव के शिष्य लाटू महाराज स्वामी अद्भुतानन्द के उदाहरण से समझा जा सकता है। श्री ठाकुर एवं उनके शिष्य समुदाय की जीवन कथा को पढ़ने वाले सभी जानते हैं कि लाटू महाराज अनपढ़ ही थे। गुरूभक्ति ही उनकी साधना थी। भक्त समुदाय में बहुप्रचलित श्रीरामकृष्ण देव की समाधिलीन फोटो जब बन कर आयी, तो श्री ठाकुर ने स्वयं उसे प्रणाम किया। लाटू महाराज बोले- ठाकुर यह क्या, अपनी ही फोटो को प्रणाम ।। इस पर ठाकुर हँसे और बोले -नहीं रे! मेरा यह प्रणाम इस हाड़- मांस की देह वाले चित्र को नहीं है, यह तो उस परम वन्दनीय गुरू चेतना को प्रणाम है, जो इस फोटो की भाव मुद्रा से छलक रही है।      श्री ठाकुर के इस कथन ने लाटू महाराज को भक्ति के महाभाव में निमग्न कर दिया। इन क्षणों में उन्हें परमहंस का एक और वाक्य याद आया- जे राम जे कृष्ण सेई रामकृष्ण अर्थात् जो राम, जो कृष्ण , वही रामकृष्ण। पर इन सब बातों का अनुभव कैसे किया जाए? इस जिज्ञासा के समाधान में श्री ठाकुर ने कहा- भक्ति से, ज्ञान से। इसी से तेरा सब कुछ हो जाएगा। अपने सद्गुरू के वचनों को हृदय में धारण कर। लाटू महाराज गुरूभक्ति को प्रगाढ़ करते हुए ध्यान -साधना में जुट गए।      उनकी यह साधना निरंतर अविराम तीव्र से तीव्रतर एवं तीव्रतम होती गई। इस साधनावस्था में एक दिन उन्होंने देखा कि ठाकुर किसी दिव्य लोक में हैं। बड़ा ही प्रकाश और प्रभापूर्ण उपस्थिति है उनकी। स्वर्ग के देवगण, विभिन्न ग्रहों क स्वामी रवि ,शानि, मंगल आदि उनकी स्तुति कर रहे हैं। ध्यान के इन्हीं क्षणों में लाटू महाराज ने देखा कि श्री ठाकुर की परा चेतना ही विष्णु- ब्रह्मा एवं शिव में समायी है। माँ महाकाली भी उनमें एकाकार हैं। ध्यान में एक के बाद अनेक दृश्य बदले और लीलामय ठाकुर के दिव्य चेतना के अनेक रूपों का साक्षात्कार होता गया। अपनी इस समाधि में लाटू महाराज कब तक खोए रहे, पता नहीं चला।      समाधि का समापन होने पर लाटू महाराज पंचवटी से सीधे श्री ठाकुर के कमरे में आए और उन्हें वह सब कह सुनाया , जो उन्होंने अनुभव किया था। अपने अनुगत शिष्य की यह अनुभूति सुनकर परम कृपालु परमहंस देव हँसते हुए बोले -अच्छा रे! तू बड़ा भाग्यवान है, माँ ने तुझे सब कुछ सच- सच दिखा दिया। जो तूने देखा, वह सब ठीक है। फिर थोड़ा गंभीर होकर उन्होंने कहा- शिष्य के लिए गुरू से भिन्न तीनों लोकों में कुछ नहीं है। जो इसे जान लेता है, उसे सब कुछ अपने- आप मिल जाता है। श्री ठाकुर के यह वचन प्रत्येक शिष्य के लिए महामंत्र है। 
First 13 15 Last


Other Version of this book



गुरुगीता
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गुरुगीता
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • आत्मनिवेदन
  • आदि जिज्ञासा, शिष्य का प्रथम प्रश्न
  • सद्गुरू से मिलना जैसे रोशनी फैलाते दिये से एकाकार होना
  • सद्गुरू की प्राप्ति ही आत्मसाक्षात्कार
  • परमसिद्धि का राजमार्ग
  • गुंरू- चरण व रज का माहात्म्य
  • साक्षात् भगवान् विश्वनाथ होते हैं - सद्गुरू
  • स्वयं से कहो- शिष्योऽहम्
  • समर्पण विसर्जन विलय
  • सब कुछ गुरू को अर्पित हो
  • आओ गुरू को करें हम नमन
  • शंकर रूप सद्गुरू को बारंबार नमन
  • शिवभाव से करें नित्य सद्गुरू का ध्यान
  • गुरू से बड़ा तीनों लोकों में और कोई नहीं
  • गुरू कृपा ने बनाया महासिद्ध
  • गुरूकृपा से असंभव भी संभव है
  • गुरूचरणों की रज कराए भवसागर से पार
  • साधन सिद्धि गुरूवर पद नेहू
  • मंत्रराज है सद्गुरू का नाम
  • भावनाओं का हो सद्गुरू की पराचेतना में विसर्जन
  • सद्गुरू की कठोरता में भी प्रेम छिपा है
  • मद्गुरूः श्री जगद्गुरूः
  • मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यम्
  • चेतना के रहस्यों का जानकार होता है सद्गुरू
  • श्री सद्गुरू शरणं मम
  • गुरू ही इष्ट है इष्ट ही गुरू है
  • एक ही यज्ञ अहं को भस्म कर देना
  • सहस्त्रदल कमल पर सद्गुरू की दिव्यमूर्ति का ध्यान
  • गुरू का वाक्य ब्रह्मवाक्य समान
  • सबसे सच्ची सिद्धि गुरूभक्ति
  • गुरूसेवा ही सच्ची साधना
  • गुरूभक्ति ही साधना वही है सिद्धि
  • सत् चित् आनन्दमयी सद्गुरू की सत्ता
  • सद्गुरू को तत्व से जान लेने का मर्म
  • सद्गुरू की कृपा से ही मिलती है मुक्ति
  • गुरूकृपा गृहस्थ को भी विदेह बना देती है
  • सच्चे शिष्य का एक ही स्वर- निष्काम कर्म
  • गुरूगीता का प्रत्येक अक्षर मंत्रराज है
  • ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान रूप में गुरूगीता
  • साधना से सिद्धि में आसन व दिशा का भी महत्तव
  • गुरू भक्ति की सिद्धि सर्वोपरि सबसे बड़ी
  • कष्टों में भी प्रसन्न रखती है गुरूभक्ति
  • कामधेनु कल्पतरू चिन्तामणि है गुरूगीता का पाठ
  • गुरूगीता से मिलता है ज्ञान का परम प्रकाश
  • गुरूगीता के पाठ की महिमा न्यारी
  • सर्वसंकटहारिणी गुरूगीता की मंत्र साधना
  • सारे तीर्थ विद्यमान होते हैं जहाँ
  • संकटमोचक मोक्षदायी है गुरूगीता का पाठ
  • परम गोपनीय संकट रक्षक है यह ज्ञानामृत
  • महामंत्र एवं मंत्रराज है गुरूगीता
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj