Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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सन् 1960 से 1963 तक का भयानक समय
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(श्रीमती इन्दुमती पंडित बी.ए.)
रूस में साम्यवाद का जन्म होने के पश्चात लालतारा (हर्षल) का प्रकाश पूर्व और पश्चिम के पड़ोसी देशों पर तेजी से फैलने लगा है। युद्ध के बाद पूर्वीय यूरोप के कितने ही देश साम्यवादी शासन के अंतर्गत आ गये। इसी प्रकार एशिया के कितने ही देशों को भी ‘प्रजासत्तात्मक शासन’ के नीचे से मुक्त करके लाल शासन का अनुयायी बनाया गया। एशिया का सबसे बड़ा देश चीन लालतारा के प्रकाश के पड़ने से उसके नीचे आ गया।
एशिया में लालतारा के प्रकाश में आने वाला सबसे अन्तिम देश उत्तरी वियतनाम है और उस पर बड़े काका ‘होंचीमिन्ह’ का अधिकार है। इस देश की राजधानी हनोई को जब फ्राँस के हाथ से निकालकर उस पर साम्यवादियों का अधिकार हुआ, तो जमीन के सुधार का काम ‘ट्रु आँगचिन्ह’ के सुपुर्द किया गया। इस सम्बन्ध में एक प्रदेश के ईसाई निवासियों ने जब बवा किया तो उनका बड़ी कठोरता से दमन किया गया। परिस्थिति के सुधारने में सहायता देने के निमित्त चीन के प्रधानमंत्री चाऊएनलाई स्वयं हनोई आये और दोनों पक्षों को समझने का प्रयत्न किया। इसके फलस्वरूप दमन के कारण लोगों का जो नुकसान हुआ था उसका हर्जाना दिया गया और उनकी अन्य कितनी ही माँगें भी पूरी की गई। इस उपद्रव में जो 15 हजार व्यक्ति मार डाले गये थे और जिनको गड्ढा खोदकर इकट्ठा गाढ़ दिया गया था, उनको वहाँ से निकाल कर उनकी अच्छी कब्रें बनाई गई। यह घटना उस देश की है, जहाँ के प्रधान ‘होची मिन्ह’ महात्मा गाँधी और नेहरू जी के नाम दूसरे नामों की अपेक्षा अधिक लिया करता है। इससे मालूम पड़ता है कि लाखों आदमियों की जान के लिए अन्य लाखों आदमियों का संहार कर डालना साम्यवादी शासन का स्वाभाविक नियम ही है।
यह नियम किस प्रकार काम करता है और आगामी दिनों में किस प्रकार इसका व्यवहार होगा, इसके सम्बन्ध में हमको खासतौर पर तीन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है- (1) कुँभ-युग में संपातवृत्त का प्रतिकरण, (2) इससे सम्बन्ध रखने वाले प्रमुख ग्रह-योग, (3) हर्षल का भ्रमण और अन्य ग्रहों के साथ उसका योग।
(1) महान खगोलशास्त्र के ज्ञाताओं के मतानुसार कुँभ राशि में संपातवृत्त का प्रतिक्रमण 1762 से आरम्भ हुआ है और तभी से जन-सत्ता और नव-युग का आन्दोलन आरम्भ हुआ है। प्रत्येक राशि की तरह कुँभ राशि भी 30 अंशों की बनी है, कहा जाता है कि ऐसी 30 अंश की एक राशि को अपनी चक्रगति से पार करने में सूर्य को 2150 वर्ष लगते हैं। इसका अर्थ यह हुआ है कि किसी भी राशि का एक अंश पार करने में सूर्य को लगभग 70 वर्ष और 9 महीने का समय लगता है।
इस हिसाब से हम सन् 1903 में मीन राशि से 2 अंश दूर और कुँभ राशि के 28 वें अंश में थे और सन् 1973 में हम 27 वाँ अंश पार कर चुकेंगे। सन् 1960 में हम कुँभ राशि में 27 अंश और 10 कला पर होंगे। इस समय की ग्रह स्थिति पर विचार करने से वह बड़ी गंभीर जान पड़ती है। नीचे हम उसकी खास खास बातें देते हैं-
(1) 1961 की 9 फरवरी को एक सूर्य ग्रहण पड़ेगा और वह कुँभ राशि के 27 अंश पर होगा।
(2) 1961 के सितम्बर में हर्षल का लालतारा सिंह राशि के 27 वें अंश पर पहुँचेगा। और वह कुँभ के संपात के ठीक सामने होगा।
(3) सन् 1962 की 5 फरवरी को एक सूर्य ग्रहण पड़ेगा और उस समय लालतारा हर्षल सिंह राशि के 28 वें अंश पर रहेगा। इसी दिन आठ ग्रह, अर्थात् सूर्य, चन्द्र, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि और केतु कुँभ राशि में होंगे। इसी समय वृश्चिक राशि में पड़े हुए नेपच्यून से इनका केन्द्रयोग होगा।
(4) 1961 की 19 फरवरी को मकर राशि के 25 अंश पर गुरु-शनि युत होने वाली है। इसका प्रभाव भारत पर भी काफी पड़ने की संभावना है।
ऊपर प्रकट किये गये तथ्यों से यह मालूम पड़ता है कि लालतारा ‘हर्षल’ और कुँभ राशि का प्रभाव इतना बढ़ जायेगा कि संसार के राजपुरुषों को उस तरफ ध्यान देना पड़ेगा। इस प्रभाव का समय भी काफी लम्बा है अर्थात् सन् 1960 से 1963 तक पृथ्वी के सभी देशों पर अपनी भौगोलिक स्थिति के अनुसार पड़ेगा। भारत पर भी लालतारा का प्रभाव कुछ अंशों में अवश्य पड़ने वाला है।
पर इस फलादेश को पढ़कर किसी को यह नहीं समझ लेना चाहिए कि साम्यवादी प्रभाव बहुत देशों पर बढ़ जायेगा, अथवा इसके विपरीत साम्यवाद पृथ्वी तल से नष्ट कर दिया जायगा। हमारा कहने का आशय इतना ही है कि इस अवसर पर अन्य समय की अपेक्षा बहुत महत्व की और गम्भीर असाधारण घटनाएँ होंगी। इतना निश्चय समझना चाहिए कि 1960 से 1963 तक का समय बीसवीं सदी के मध्य भाग के इतिहास में सबसे अधिक भयंकर माना जायगा। इन वर्षों में बहुत कुछ राजनीतिक उथल-पुथल होगी, लालतारा का आश्चर्यजनक प्रभाव अनेक देशों पर पड़ेगा। मेरे ज्योतिष सम्बन्धी अध्ययन के आधार पर तीसरा महायुद्ध भी मुझे इसी अवधि में होता जान पड़ता है। इस दृष्टि से मैं तो संपात-चक्र से सम्बन्ध रखने वाले इस योग के बेहद महत्व देती हूँ। आगे चलकर पृथ्वी के मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों के जीवन पर इसका कैसा असर पड़ेगा यह तो भावी ही बतलायेगी।