Magazine - Year 1957 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
प्रलय वीणा के तार-तार (Kavita)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
प्रलय-वीणा के तार-तार अब झंकृत कर ऐ महाकाल,
ले उठा हाथ में डमरू अब बज उठे भयानक रुद्रताल।
मच जाय, विश्व में उथल-पुथल अवनि गगन जल-थल संकुल,
हो फिर ताण्डव प्रलयंकर सर्वत्र प्रज्ज्वलित हाथ अनल॥
टूटे पहाड़ हों छार-छार छलकें अम्बुधि ले महानाश,
चण्डी ले खप्पर करे नाच फैला कृत्तान्त का मृत्युपाश।
हो त्रस्त-व्यस्त भयभीत ध्वस्त, पददलित प्रताड़ित महाक्रान्त,
कर पदाघात से भूप्रकम्य ब्रह्माण्ड काण्ड होवे अशान्त।
टूटे नक्षत्र, ग्रह स्थान भ्रष्ट हो धूमकेत, से व्योम व्याप्त,
ये सूर्य चन्द्र हो, चूर्ण-चूर्ण शिशुभार वृत्त भी समाप्त॥
जल उठें दिशाएं धाँय-धाँय दिग्पाल छोड़ दिशि भाग जायं।
कूरम फणीश सब छलभलाँय बाराह दन्त-द्वय टूट जायं॥
डगमग हो विश्व होवे विदीर्ण पावे नव जीवन त्याग जीर्ण,
मिट जाय प्रताड़न दैन्य अनद हो सत्यं, प्रेम फिर से विस्तीर्ण॥
भातृत्व स्नेह की मन्दाकिनी फिर बहे विश्व में शान्त दान्त,
साम्राज्यवाद सम्पत्तिवाद, शोषक समाज का हो महान्त।
जल उठें कोठियाँ धवल-नवल बन जायं झोपड़े नवल महल,
हों प्रबल-सबल अतिशय निरबल अब सुप्त हाड़ हो जायं सबल।
फिर हो सतयुग का नवप्रभात अतएव नाश है व्याल माल।
इस प्रलय वीणा के तार-तार अब झंकृत कर हे महाकाल॥