Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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बाइबिल और कुरान की प्राचीन भविष्यवाणियाँ
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(‘भारतीय योगी’)
ईसाइयों की ‘बाइबिल’ एक पुरानी धर्म पुस्तक है। उसका कुछ भाग तो जिसे ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ कहते हैं ईसामसीह से भी छ :-सात सौ वर्ष पहले का है। उसमें खास कर यहूदियों का इतिहास दिया गया है जो उस समय मिश्र, पैलेस्टाइन आदि में निवास कर रहे थे और जिनको निरन्तर शत्रुओं का सामना करना पड़ रहा था। बाइबिल में लिखा है कि “ईश्वर ने यहूदियों को हुक्म दिया था कि अगर वे उसके आदेशानुसार चलेंगे तो सुखी और मालदार बनेंगे। इसके विपरीत अगर वे उलटे रास्ते पर चले तो उनको सख्त सजा दी जायेगी। अगर वे इससे भी न सुधरे तो परमात्मा उनके शहरों को वीरान कर देगा, उनके दुश्मन वहाँ रहने लगेंगे और यहूदियों को बिना घर बार के संसार भर में भटकना पड़ेगा। आखिर में जब भटकते हुए और तकलीफ पाते हैं उनको सात समय (सेविन टाइम्स) हो जायगा तो पर परमात्मा उनकी फिर खबर लेगा और उनको इकट्ठा करके फिर उनके मुल्क में बसायेगा।”
यहूदियों के रहने की पुरानी भूमि पैलस्टाइन का मुल्क है। वहीं पर उनका एक मात्र और परम पवित्र धार्मिक स्थान जरुशलम है। जिस प्रकार संसार भर के मुसलमान एक मात्र मक्का को तीर्थ मानते हैं और दुनिया के कोने-कोने से उनकी यात्रा को जाते हैं, उसी प्रकार यहूदी भी सब प्रकार की कठिनाइयाँ सहकर हजारों कोस से जरुशलम की यात्रा करने आते हैं। यह देश कितने ही समय से टर्की के कब्जे में था और उसमें अरब लोग बस गये थे। सन् 1914 के महायुद्ध के पश्चात यह अंगरेजों के अधिकार में आ गया और मित्र राष्ट्रों की सलाह से वहाँ यहूदियों को बसाने का निश्चय किया गया। यद्यपि अरब लोगों ने इस बात का घोर विरोध किया और वर्षों तक लड़ाई -झगड़े होते रहे तो भी अब तक दस-पन्द्रह लाख यहूदी वहाँ बस चुके हैं। अतः सन् 1949 से पैलेस्टाइन के एक भाग में ‘इसराइल’ के नाम से उनका राष्ट्र भी कायम हो गया है। हाल ही में ‘इसराइल’ ने मिस्र पर हमला किया जिसके फल से विश्वव्यापी महायुद्ध की आशंका उत्पन्न हो गई थी।
वास्तव में पैलेस्टाइन में यहूदियों का फिर बसना और उनका एक राष्ट्र बन जाना एक अनोखी घटना है। क्योंकि बाइबिल में टर्की के साम्राज्य नष्ट होकर यहूदी राष्ट्र की स्थापना का वर्णन का स्पष्ट रूप से किया गया है और पिछले कई सौ वर्ष में सैकड़ों बड़ी-बड़ी पुस्तकें अंग्रेजी में लिखी जा चुकी हैं जिसमें बाइबिल की भविष्यवाणियों में दृढ़ विश्वास प्रकट करते हुए यह कहा गया है कि ‘सात समय’ समाप्त होने पर टर्की का साम्राज्य नष्ट हो जायगा। यहूदी पैलेस्टाइन में अवश्य बसाये जायेंगे। पाठक चाहें ईसाइयों के किसी भी पुस्तकालय में ऐसी पुस्तक स्वयं देख सकते हैं।
‘सात समय के समाप्त होने के अवसर’ पर यहूदियों के पैलेस्टाइन में बसने की भविष्यवाणी के साथ ही बाइबिल में और भी भविष्यवाणियाँ दी गई हैं जिनमें सबसे बड़े संसार व्यापी युद्ध का वर्णन किया गया है, जिसके फल से मानव जाति का एक बड़ा अंश नष्ट हो जायगा। इसी अवसर पर अनेक प्रकार के ईश्वरीय कोप- जैसे प्लेग, अकाल, भूचाल आदि के आने की बात भी लिखी है। अब चूँकि इनमें से टर्की की खिलाफत का अन्त और पैलेस्टाइन में यहूदियों के बसने की बात सामने आ चुकी है। इसलिये शीघ्र ही अन्य बातों के होने की संभावना असंगत नहीं है।
बाइबिल की भविष्यवाणियों की व्याख्या करने वालों ने ‘सात समय’ का अर्थ सात वर्ष बताया है। पर जब भी कहा है कि भविष्यवाणी का एक दिन एक वर्ष के बराबर माना जाता है। इस हिसाब से जिस समय भविष्य वाणी की गयी थी उससे 365&7=2555 वर्ष इन घटनाओं के होने की संभावना है। यहूदियों का दण्ड ईसा से 58 वर्ष पहले आरम्भ हुआ था और इस हिसाब से सन् 1966 में ‘सात समय’ की अवधि पूरी हो जायेगी। कुछ व्याख्याकारों ने ईसाइयों के प्राचीन सन् के 360 दिन का होने से सन् 1931 में ही ‘सात समय’ की म्याद पूरी मानी है। कुछ भी हो एक ढाई हजार वर्ष पुरानी भविष्यवाणी के पूरे होने में 30-35 साल का अन्तर कोई महत्व नहीं रखता। हम तो इसी बात से इस भविष्यवाणी के महत्व को बहुत अधिक समझते हैं कि इतनी पुरानी भविष्यवाणी के अनुसार वर्तमान समय में वास्तव में ऐसे महायुद्ध की संभावना उत्पन्न हो चुकी है जिससे मानवजाति का प्रायः सर्वनाश हो जाना संभव है।
(1) ‘सात समय’ का जमाना जब समाप्त होने को आयेगा उस समय संसार की कैसी दशा होगी इस सम्बन्ध में लिखा है- “उस वक्त चारों तरफ लड़ाइयां होने लगेंगी और लड़ाई की अफवाहें सुनाई देने लगेंगी। एक मुल्क दूसरे मुल्क के खिलाफ खड़ा होगा और एक सल्तनत दूसरी सल्तनत के। उस समय अकाल पड़ेंगे, महामारी फैलेगी और जगह-जगह भूकम्प आयेंगे। यह हालत शुरू में होगी और इसके बाद इससे कहीं ज्यादा कष्ट भोगने पड़ेंगे।”
(2) बाइबिल की भविष्यवाणियों में ‘सात ट्रम्पेट्स’ का वर्णन भी विशेष रूप से महत्व का है। उसके मतानुसार जब पृथ्वी के निवासी घोर पाप करने लगेंगे तो ईश्वर की तरफ से उनको जो दण्ड दिया जायगा उसी का वर्णन इन ‘सात ट्रम्पेट्स’ में किया गया है। इनका वर्णन प्राकृतिक दुर्घटनाओं के रूप में किया गया है, पर कितने ही ईसाई धर्म विद्वानों ने यह भी कहा है कि उनका मतलब राजनैतिक हलचल और नाशकारी घटनाओं से है। जो कुछ भी हो पाठक बाइबिल के मूल शब्दों को देखें-
“जब पहला फरिश्ता अपना ट्रम्पेट (बिगुल) बजायेगा तो पृथ्वी पर बरफ का तूफान आयेगा, और आग और खून की बारिश होगी। इससे पेड़ों का एक तिहाई भाग जल जायगा और तमाम हरी घास जल जायगी।”
‘जब दूसरा फरिश्ता ‘ट्रम्पेट’ बजायेगा तो एक बहुत बड़ा जलता हुआ पहाड़ समुद्र में गिरेगा और इससे समुद्र का एक तिहाई हिस्सा खून हो जायगा। समुद्र में रहने वाले जीवित प्राणियों में से एक तिहाई मर जायेंगे और एक तिहाई जहाज नष्ट हो जायेंगे।’
“जब तीसरा फरिश्ता ‘ट्रम्पेट बजायेगा तो एक बहुत बड़ा तारा गिरेगा, जो दीपक की तरह प्रकाशित होगा। यह नदियों और पानी के स्रोतों के एक तिहाई भाग पर पड़ेगा। इस तारे का नाम ‘वार्मवुड’ होगा। इससे जल स्रोतों का एक तिहाई भाग ‘वार्मवुड’ हो जायेगा। यह पानी जहरीला होगा, जिसके पीने से बहुसंख्यक आदमी मर जायेंगे।”
इसी प्रकार अगले ‘ट्रम्पेट्स’ के बजने पर दुनिया में रहने वालों को दूसरी तरह की तकलीफें सहनी पड़ेंगी। चौथे ट्रम्पेट से सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश घट जायगा। पाँचवें से मनुष्यों को कष्ट पहुँचाने वाले टिड्डियों के आकार के जानवर पृथ्वी के भीतर से निकलेंगे और छठे से आग और धुआँ से मारने वाले सवार उत्पन्न होंगे। जैसा हम ऊपर लिख चुके हैं इन भविष्यवाणियों में अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया गया है, जैसा कि प्राचीन काल में प्रायः नियम था। उदाहरण के लिए टिड्डियों के आकार के जानवरों से हवाई जहाजों और आग तथा धुआँ से मारने वाले सवारों से तोपों और मशीनगनों का अर्थ समझ सकते हैं। इसी प्रकार समुद्र और पृथ्वी पर पहाड़ तथा तारा गिरने का अर्थ स्पष्ट ही एटम बम और हाइड्रोजन बम के फेंके जाने से माना जा सकता है जो सचमुच ही पानी तथा खाने पीने की सभी चीजों को जहरीली अथवा मारने वाला बना देते हैं।
(3) बाईबल में अकाल का जैसा भीषण चित्र खींचा गया है, वह भविष्यवाणी को निगाह से ही नहीं, वरन् प्रभावशाली लेखनशैली की दृष्टि से भी ध्यान देने योग्य है। वैसे अकाल हमेशा ही पड़ा करते हैं, पर युद्ध के समय उनका रूप और भी भयंकर हो जाता है। उस समय खेती बारी करने वाले और उपयोगी वस्तुओं के बनाने वाले लाखों मजबूत आदमी फौज में भरती कर लिये जाते हैं, जिससे पैदावार स्वयमेव कम हो जाती है। फिर लड़ने वाली असंख्यों सेना के पीछे हर रोज लाखों मन अनाज और दूसरी खाने पीने की वस्तुओं की आवश्यकता होती है। इनके सिवा दोनों ओर की फौजों में से जो दुश्मन के देश के भीतर घुस जाती है वह खेती-बारी और व्यापार की मण्डियों तथा बाजारों को नष्ट-भ्रष्ट करती चलती है, इससे अकाल और भी भयंकर रूप धारण कर लेता है। फिर आगामी युद्ध में तो इस बात की पूरी सम्भावना है कि एटम बमों के कारण खाने-पीने के समस्त पदार्थों में रेडियो एक्टिविटी का ऐसा घातक प्रभाव पड़ेगा कि जो कोई उनको व्यवहार में लायेगा वह दस बीस दिन में ही देह के भीतरी अंगों के गल जाने से मर जायगा। इसलिये अगर युद्ध के समय लोगों को सबसे अधिक भयंकर अकाल का सामना करना पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। बाइबिल में अकाल का वर्णन करते हुए लिखा है-
‘जब तीसरी मुहर खोली जायगी तो उससे एक काले रंग का घोड़ा निकलेगा और उस पर जो सवार होगा उसके हाथ में एक तराजू होगी। वह घोषणा करेगा कि एक पैमाना गेहूँ का एक सिक्का और तीन पैमाना जौ का एक सिक्का होगा।” फिर आगे चलकर लिखा है- “लोगों के चेहरे कोयले की तरह काले हो जायेंगे। वे गलियों में मारे-मारे फिरेंगे। उनकी खाल हड्डियों से अलग होकर लटक पड़ेगी और शरीर सूख कर लकड़ी की तरह हो जायेगा। जो लोग तलवार से मारे जाते हैं वे उन भूख से मरने वालों की बनिस्बत सुख में रहेंगे।”
बाइबिल के ईसायाह, विभाग में लिखा है- “देखो ईश्वर ने पृथ्वी को उजाड़ बना दिया और वह सुनसान पड़ी है। इस भयंकर अकाल के बाद जो हाल किसानों का होगा वही जमींदार का होगा जो कर्जदार का होगा वही साहूकार का होगा, जो हाल भिखारी का होगा वही हाल दाता का होगा। तमाम खेत सूख जायेंगे और बर्बाद हो जायेंगे। पृथ्वी पर से चैन और आराम उठ जायगा और चारों तरफ रंज ही रंज दिखलाई पड़ेगा। अनगिनत मनुष्य इस भयंकर काल में मरेंगे और पृथ्वी पर थोड़े ही आदमी बचेंगे। बड़े-बड़े शहर उजाड़ हो जायेंगे और घरों में ताले पड़े होंगे। सड़कों पर कोई आदमी फिरता न दिखाई देगा, क्योंकि ईश्वर ने ऐसी आज्ञा दी है। “
(4) इन भयंकर घटनाओं के जमाने में दूसरी बहुत सी आपत्तियों के साथ एक महाभयंकर भूकम्प के आने की बात भी बाइबिल में लिखी है। अनुमान से मालूम होता है कि इसका आशय प्राकृतिक भूकम्प के बजाय राजनीतिक और सामाजिक क्राँति से ही है। भविष्यवाणी के शब्द इस प्रकार हैं-
“जब वह छठी मुहर को खोलेगा तो एक महाभयंकर भूकम्प आयेगा। सूरज बालों से बने कम्बल की तरह दिखाई देने लगेगा। आकाश के तारे टूट कर जमीन पर गिरने लगेंगे। आकाश कागज के गोल पुलिन्दे की तरह फटकर दो हिस्सों में अलग-अलग हो जायगा। तमाम पहाड़ व टापू अपनी जगह से हट जायेंगे। दुनिया के बादशाह, बड़े आदमी, अमीर लोग, बड़े-बड़े सरदार और अधिकारी लोग सब कोई खोहों और पहाड़ की गुफाओं में छिपने लगेंगे। वे उन पहाड़ों और चट्टानों से कहेंगे कि हमारे ऊपर गिर पड़ो और हमको उस न्यायकर्ता परमेश्वर के रोष से बचाओ।”
पाठक अगर विचार करेंगे तो उनको स्पष्ट जान पड़ेगा कि ऐसी घटना राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के समय में हो सकती है। प्राकृतिक भूकम्प के अवसर पर तो अमीर और गरीब सब एक साथ मरते हैं। पर इस भविष्यवाणी में केवल अमीर और बड़े-बड़े लोगों के नष्ट होने का वर्णन है, उससे प्रकट होता है कि यह कोई राजनीतिक और सामाजिक भूकम्प ही हो सकता है। ऐसी अवस्था रूस, पोलैण्ड, रुमानिया आदि में पूँजीवाद का नाश होकर साम्यवाद स्थापित होते समय देखी जा चुकी है।
(5)”जब चौथा फरिश्ता अपना ‘वायल’ सूर्य पर डालेगा तो उसकी गर्मी इतनी बढ़ जायेगी कि वह मनुष्यों को भून डाले। भयंकर गर्मी से व्याकुल होकर लोग परमेश्वर को गालियाँ देने लगेंगे कि उसने कैसी व्याधियाँ उत्पन्न की है।”
इसकी व्याख्या करते हुए एक विद्वान ने लिखा है कि “इस समय मनुष्य जाति की दुर्गति चोटी पर पहुँच जायगी। जल, थल, सूर्य आदि जो जीवन के मुख्य आधार हैं वे ही सब मनुष्यों को उनके पाप कर्मों का फल देने लगेंगे। कुछ दिन पहले जो लोग ऐश-आराम में मस्त पड़े होंगे, वे अब निरन्तर रोते चिल्लाते और शोक करते ही दिखलाई पड़ेंगे। इस समय कितने ही दिन तक सूर्य पृथ्वी के ऊपर इतनी अधिक गर्म और जलाने वाली किरणें डालेगा कि मनुष्यों को अपने घर भट्ठी की तरह जान पड़ने लगेंगे।” तीसरे महायुद्ध में जब एटम और हाइड्रोजन बमों का प्रयोग होगा तब ऐसी हालत प्रत्यक्ष दिखाई पड़ेगी, क्योंकि उनका तेज और गर्मी भी सूर्य के सदृश्य ही होती है और उसके द्वारा मनुष्य और जीवित प्राणी ही नहीं पत्थर और मिट्टी भी जलकर धुँआ के रूप में हो जाते हैं।
(6) भावी महायुद्ध का नीचे लिखा वर्णन भी बड़ा रोमाँचकारी है। भविष्यवाणी के कर्ता को ध्यान की अवस्था में निम्नलिखित दृश्य दिखलाई पड़ा-
“मुझे दिखाई पड़ा कि एक फरिश्ता सूर्य के प्रकाश में खड़ा है और कह रहा है कि आसमान में उड़ने वाले पक्षियों इकट्ठे होकर आओ और ईश्वर के दिये हुए भोज में शामिल हो। इसमें तुमको बड़े-बड़े बादशाहों, राजाओं, कप्तानों, ताकतवर मनुष्यों, घोड़ों और उन पर बैठने वालों और सब प्रकार के बड़े और ऊँचे दर्जे के मनुष्यों का माँस खाने को मिलेगा।
(7) बाइबिल के भविष्य वर्णन का अन्त नीचे लिखी भविष्यवाणी से होता है। भविष्यदर्शी महात्मा जानने ध्यानावस्था में देखा-
“मैंने एक फरिश्ते को आसमान से आते देखा। उसके शैतान को बाँध कर अथाह गड्ढ़े में फेंक दिया और उसे बन्द कर दिया। इसके बाद एक हजार वर्ष तक पृथ्वी पर सतयुग (मिलेनियम) रहेगा।”
इसकी व्याख्या करने वाले एक विद्वान ने लिखा है कि “इन सात वर्षों की महा भयंकर घटनाओं में संसार की पूर्ण रूप से काया पलट हो जायगी। लड़ाई और महामारियों से करोड़ों व्यक्ति खत्म हो जायेंगे और बड़े-बड़े शहर सुनसान दिखाई पड़ेंगे। इसके बाद जब पृथ्वी की शासन-व्यवस्था धार्मिक और नैतिक विचारों संत पुरुष करने लगेंगे तो लोगों की सब तकलीफें मिट जायेंगी। उस समय लोग ईश्वरीय नियमों के अनुसार रहने लगेंगे और पाप तथा स्वार्थ के भावों को छोड़ देंगे। तब फौजी और जहाजी बेड़ों का नाम भी न रहेगा और लोग तलवारों को तोड़कर हल का फार बना लेंगे। एक देश के निवासी दूसरे देश वालों से झगड़ा न करेंगे और युद्ध सदा के लिये बन्द हो जायगा। जंगल के खूँखार जानवर भी शान्त बन जायेंगे। कोई मनुष्य छोटी उम्र में न मरेगा। इस युग में हुकूमत केवल उन्हीं लोगों के हाथ में रहेंगी जिनका चरित्र शुद्ध तथा पवित्र होगा, जो नम्र, विनयशील और गरीबों को पसन्द करने वाले होंगे।”
इस उदाहरण में जैसे राम-राज्य का वर्णन किया गया है, उसी को सच्चा साम्यवाद या समाजवाद भी कहा जा सकता है। हिन्दू-धर्म शास्त्रों में जो सतयुग का वर्णन है वह भी बिल्कुल इससे मिलता जुलता है, केवल शब्दों का हेर-फेर है। अब प्रजातंत्रवाद में समझदार लोगों को बहुत से दोष दिखलाई पड़ने लगे हैं, क्योंकि उसमें वोट खरीदे ओर बेचे जाते हैं तथा चालाकी से प्राप्त किये जाते हैं। इस कारण ज्यादातर चलते-पुरजे लोग ही कौंसिलों और पार्लमेंटो में पहुँचते हैं और अपनी-अपनी पार्टी के लाभ का ही ख्याल रखते हैं। इसी प्रकार आधुनिक ढंग के साम्यवाद में या समाजवाद में भी पार्टीबन्दी का दोष पाया जाता है और आपस में ईर्ष्या द्वेष का भाव भी बढ़ जाता है। इसलिये संसार की दशा का सुधार तब तक असंभव है जब तक समाज की बागडोर त्यागी और निःस्वार्थी व्यक्तियों के हाथ में नहीं जाय। बाइबिल की भविष्यवाणियों से प्रकट होता है कि अब ऐसा ही समय आने वाला है।
मुसलमानी धर्म ग्रन्थ
मुसलमानों के धर्म ग्रंथ कुरान में कई जगह भविष्य में नवीन युग आने और वर्तमान दशा में घोर परिवर्तन की बात कही गई है। ‘सूरत यासीन’ (कुरान का एक अध्याय) में कहा गया है-
“हम जिसको भी आयु देते हैं उसे आखिर में अन्धा कर देते हैं। यह लोग बुद्धि से क्यों नहीं काम लेते? अगर बुद्धि से काम लें तो फौरन समझ में आ जाय कि जिस प्रकार एक व्यक्ति की आयु निश्चित होती है उसी प्रकार एक ‘उम्मत’ (सम्प्रदाय या मजहब) की भी उम्र निश्चित होती है। और बचपन, जवानी तथा बुढ़ापे की सीढ़ियाँ तय करके ‘उम्मत’ मर जाती है। जब खुदा दूसरी नई ‘उम्मत’ पैदा करता है।
‘सूरत आले इमरान’ में लिखा है- “खुदा ने सब पैगम्बरों (धर्म-संस्थापकों) से वचन लिया है कि जब तुम्हें किताब पैगम्बरी दी जाय और तुम्हारे बाद खुदा की तरफ से कोई दूसरा पैगाम लाने वाला (धर्म संस्थापक अवतार) पैदा हो तो उस पर ईमान लाना और उसकी सहायता करना तुम्हारा कर्तव्य है।
मदीने की मशहूर किताब ‘मकसूम बुखारी’ में लिखा है कि “चौदहवीं सदी में कयामत आयेगी और हजरत मेंहदी प्रकट होकर पापियों का अन्त करेंगे।” इसी किताब में आगे चलकर लिखा है कि- “कयामत पास आ गई है। दोजख की आग भड़क उठी है, सारे संसार में अन्धेरा छा गया है। आँखें खोलकर उठो और देखो कि दुनिया नाश के परदे में जाने वाली है। जो कुछ करना है आज ही कर लो।”
और भी कितने मुसलमान विद्वानों ने होनहार घटनाओं के बारे में भविष्यवाणियाँ लिखी हैं जिनकी मुसलमान जनता में प्रायः चर्चा हुआ करती है। इनसे मालूम होता है कि “चौदहवीं सदी के अन्त में एक बड़ा जालिम शासक पैदा होगा जिसका नाम ‘दज्जाल’ होगा। वह बहुत शक्तिशाली होगा और अपने को ईश्वर बतलायेगा। उसका आतंक सारी दुनिया पर छा जायगा। अन्त में कयामत का समय आयेगा और हजरत मेंहदी प्रकट होकर उसे मारेंगे।”
अब मुसलमानों की चौदहवीं सदी को समाप्त होने में बीस पच्चीस वर्ष का समय और शेष रहा है। मुसलमानों में आमतौर पर विश्वास है कि चौदहवीं सदी के समाप्त होने के आस पास दुनिया की हालत बड़ी ही हलचल पूर्ण हो जायेगी, बहुत भयंकर लड़ाइयां होंगी और मुसलमानी धर्म का अन्त होकर कोई नया पैगम्बर पैदा होगा जिससे दुनिया में नये युग की शुरुआत होगी।