Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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परिवर्तन का समय समीप आ चुका
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परिवर्तन संसार का अटल नियम है। एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है कि संसार में कोई वस्तु सदैव एक दशा में स्थिर नहीं रह सकती। जो आज बालक है, कल वह युवा होगा और परसों बूढ़ा होकर यहाँ से चल बसेगा। यही हाल देशों, जातियों, धर्मों, सब तरह की संस्थाओं, सामाजिक प्रथाओं आदि का होता है, यह सत्य है कि इनके जन्म और मरण में अधिक समय लगता है, पर एक दिन अन्त सबका हो जाता है। जब तक यह परिवर्तन धीरे-धीरे होता रहता है तो साधारण मनुष्य की बुद्धि उसे अनुभव नहीं कर सकती, क्योंकि वे अपनी छोटी सी आयु के भीतर इनके निर्माण और नाश का बहुत थोड़ा अंश ही देख सकता है। केवल ऐसे व्यक्ति ही, जो इतिहास और समाज-विज्ञान की जानकारी रखते हैं, इस प्रकार के सूक्ष्म परिवर्तन को समझ पाते हैं।
पर एक समय ऐसा भी आता है जब पुरानी संस्थाओं और प्रणालियों का शीघ्रता पूर्वक नाश होकर नई रचना होने लगती है। तब परिवर्तन की गति बड़ी तेज हो जाती है और साधारण बुद्धि के मनुष्य भी उसके देख और समझ सकते हैं। संयोग वश ऐसा ही युग इस समय हमारे सामने उपस्थित है। इस समय सब तरह की संस्थाओं, प्रणालियों और प्रथाओं का परिवर्तन ऐसी शीघ्रता से और व्यापक रूप में होने लगा है कि जो लोग अपने नेत्र बन्द किये पड़े रहते हैं उनको भी उसके धक्के लग रहे हैं और वे भी आँखें खोलने को विवश हो रहे हैं। आज छोटे और बड़े, मूर्ख और पंडित, गरीब और अमीर मनुष्यों के मुँह से बार-बार यही सुनाई पड़ रहा है कि “जमाना बदल गया है- अनहोनी बातें हो रही हैं- प्रकृति के नियम भी बदल गये- अब परमात्मा की लीला है।”
आज आप दुनिया के राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक किसी विषय पर विचार कीजिए, आपको तुरन्त ज्ञात हो जाएगा कि पुरानी बातें बड़ी जल्दी-जल्दी बदल रही हैं और उनके स्थान में ऐसी बातें प्रचलित होती जाती हैं जिनकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यह सत्य है कि आज भी अधिकाँश व्यक्ति इन परिवर्तनों के वास्तविक रहस्य को नहीं समझ पाते, इसलिए वे उनको देखकर या तो चौंक रहे हैं, घबड़ा रहे हैं, या नाराज होकर कोस रहे हैं। वे यही कहते रहते हैं कि “अब पृथ्वी पर पाप बहुत बढ़ गया है और संसार के बुरे दिन आ गये हैं।” पर काल चक्र ऐसे निर्बल या भोले लोगों की कुछ भी चिन्ता न करके वेग पूर्वक अपना काम किये जा रहा है। यह वर्तमान समय के प्रतिकूल अथवा अनुपयुक्त रीति-रिवाजों और संस्थाओं को निर्दयता पूर्वक कुचलकर फेंक रहा है और दुनिया की मनुष्य-जीवन की काया पलट करता जा रहा है।
राजनीति के क्षेत्र में देखिये तो पिछले 40-50 वर्षों में बड़े-बड़े सम्राटों, शहंशाहों, सुल्तानों, कैसरों जारों, राजा, महाराजाओं का नाम निशान नहीं बचा है। जापान के सम्राट जो अपना वंशक्रम सूर्य से लगाते हैं और जिनका दर्शन कोई मनुष्य नहीं कर सकता था, रूस के जार जो “छोटे ईश्वर” कहलाते थे, चीन के बादशाह जिनका वंश वास्तव में अति प्राचीन काल से करोड़ों व्यक्तियों का भाग्य विधाता बना बैठा था, टर्की के सुल्तान जो संसार भर के मुसलमानों के खलीफा और परम पूजनीय माने जाते थे, हम लोगों के देखते-देखते लोप हो गये और आज उनके महलों में जहाँ सूर्य का प्रकाश और वायु भी कठिनता से घुस पाते थे मजदूरों के स्कूल या अजायबघर खुले हुए हैं। दूर क्यों जायें हमारे ही देश में जो राजा और महाराजा अपने को राम और कृष्ण के वंशज बतलाते थे, इन आठ-दस वर्षों के भीतर ही अपनी-अपनी ऊंची-ऊंची गद्दियों से उतर कर जन साधारण की कतार में आकर खड़े हो गये हैं। इस समय बड़े-बड़े देशों के कर्ता-धर्ता ऐसे ही व्यक्ति बने हुए हैं जो अभी तक बिल्कुल साधारण वंशों के समझे जाते थे। कितने ही देशों में ऐसे लोग शासन के प्रधान हैं जो बचपन में सचमुच मजदूरी करके पेट भरते थे। हमारे यहाँ भी स्कूलों के साधारण मास्टर करोड़ों की जन-संख्या वाले प्रदेशों के प्रधानमन्त्री और राज्यपाल बने हैं। क्या इन बातों में आपको नव-युग की झलक नहीं दिखलाई देती?
धर्म की तो बात ही मत पूछिये। यों तो धर्म के सम्बन्ध में साधारण लोगों में ही नहीं बड़े-बड़े विद्वान और ज्ञानी कहलाने वालों में भी सदा ने बड़ा मतभेद रहा है और धर्म के सिद्धान्त तथा उसकी क्रियाएं और विधियाँ समय-समय पर बदलती रहती हैं, पर आज कल धर्म की जड़ पर ही जैसा आक्रमण हो रहा है, वैसा दृश्य पूर्वकाल में कभी देखने को नहीं आया। इस समय लाखों-करोड़ों व्यक्ति ऐसे पैदा हो गये हैं जो धर्म के परिवर्तन या संशोधन की बात नहीं कहते, पर जो धर्म का नाम लेने के ही विरुद्ध हैं। भारतवर्ष का जो शासन विधान बनाया गया है, वही ‘धर्म-निरपेक्ष’ कहा जाता है, अर्थात् उसका किसी विशेष धर्म या साम्प्रदायिक नियमों से कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा। रूस, चीन आदि साम्यवादी देशों में तो धर्म को जहाँ तक संभव था जनता में से भी निकाल दिया है और अब वहाँ बहुत थोड़े आदमी मन्दिरों या गिरजाघरों में जाने वाले बचे हैं। इन बातों से धर्म के पक्षपातियों में भी खलबली मची है और वे धर्म की रक्षा के उपाय सोचने लगे हैं। नतीजा यह हुआ है कि भारत जैसे धर्म-प्रधान देश में भी धर्म के संस्कार के प्रयत्न हो रहे हैं और अनेकों धार्मिक संगठन तथा धर्म-तत्व के ज्ञाता सन्त और महात्मागण धर्म में घुसी हुई दिखावटी और कृत्रिम बातों को दूर करके वास्तविक धर्म का प्रचार कर रहे हैं।
जहाँ नये युग के प्रभाव से लाखों-करोड़ों व्यक्ति धर्म के विरोधी बन रहे हैं, दूसरी ओर उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप लाखों-करोड़ों लोगों में यह विश्वास भी जम रहा है कि जब वर्तमान स्वार्थ और पाप के जमाने अथवा ‘कलियुग‘ का अन्त होकर शीघ्र ही त्याग और परमार्थ के समय अथवा ‘सतयुग‘ का आविर्भाव होने वाला है। समय-समय पर हिन्दुओं में कल्कि अवतार, मुसलमानों में मेंहदी और ईसाइयों में मसीह के प्रकट होने की चर्चा अनेक लोगों के मुख से सुनने में आया करती है। ईरान के लाखों वहावी, हजारों थियोसोफिस्ट, हजारों बौद्ध धर्मावलम्बी भी किसी नवीन अवतार के होने में विश्वास रखते हैं और अनेक व्यक्ति तो उसके आगमन का जोरों से प्रचार कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में कुछ वर्ष पहले नीचे लिखा मनोरंजक लेखाँश किसी योरोपियन धार्मिक अखबार में छपा था-
“क्या ईसा मसीह ने फिर से जन्म लिया है? इस सम्बन्ध में आजकल योरोप के अध्यात्म विद्या के जानकारों में बड़ी चर्चा हो रही है। कुछ साल पहले मिश्र की प्राचीन गुप्त विद्याओं के जानकार मि. जार्ज बाबेरी ने भविष्यवाणी की थी कि दुनिया में एक नया युग-शुरू होने वाला है। यहूदी लोगों का ख्याल है कि उनके धर्म ग्रंथों में बतलाया गया ‘मुएर गजर’ नाम का युग (अर्थात् सतयुग) जल्दी ही शुरू होगा। ईरान में अली के मानने वालों का भी ऐसा ही विश्वास है। जापानी लोगों का विश्वास है कि कुछ ही समय बाद ‘अवातेरी’ नाम का स्वर्ण युग आरम्भ हो जायगा। इतना ही नहीं अमरीका और इंग्लैण्ड जैसे विज्ञान-प्रधान देशों में भी ऐसे ही विश्वासों का प्रचार करने वाले अनेक लोग पैदा हो गये हैं और हजारों व्यक्ति उनके अनुयायी भी बन गये हैं।”
हमारे कहने का आशय यह कदापि नहीं है कि उपर्युक्त मत मतान्तरों के जो व्यक्ति सतयुग और अवतार की बात कहते हैं वे कोई बड़े विचारक हैं और उन्होंने जाँच-पड़ताल करके ऐसा निश्चय किया है। पर इतना हम अवश्य जानते हैं कि जब-जब संसार में विशेष हलचल का समय आता है और उसके कारण सर्व-साधारण को कठिनाइयाँ उठानी पड़ती हैं, तभी वे अपनी रक्षा के लिए किसी उद्धारकर्ता की ओर नजर दौड़ाने लगते हैं और ऐसा युग आने की अभिलाषा करने लगते हैं कि जिसमें वे सुख और शाँति से रह सकें। अगर हिन्दू-धर्म के शब्दों में कहा जाय तो, अब अत्याचार और कष्टों के मारे मनुष्य-मात्र त्राहि-त्राहि करने लगते हैं तभी नया अवतार होता है और तभी नया युग आता है। भगवान कृष्ण का ‘यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः’ वाला श्लोक सभी जानते हैं। इसके अनुसार जब कभी धर्म की बहुत ही हानि हो जाती है अर्थात् जब दुनिया के लोग परोपकार, दया, क्षमा आदि सद्गुणों को छोड़कर घोर स्वार्थी बनकर जोर जुल्म पर उतारू हो जाते हैं, अपना मतलब पूरा करने के लिए कमजोरों का गला काटने लगते हैं, तो भगवान का अवतार या उन्हीं की शक्ति से सम्पन्न किसी महापुरुष का आविर्भाव होता है।
साथ ही यह स्पष्ट है कि इस प्रकार का परिवर्तन बिना किसी बहुत बड़ी नाश लीला के नहीं होता। जो लोग अपने स्वार्थ और लोभ के लिए दूसरों के हक को दबाये बैठे हैं वे सहज में अपनी जगह को नहीं छोड़ सकते। जिन्होंने दुनिया की सम्पत्ति को बटोर कर ताले में बन्द कर रखा है। वे केवल उपदेशों से अपने खजानों की ताली जनता को अर्पण नहीं कर सकते। इसलिये ऐसे महान काया पलट करने वाले परिवर्तन प्रायः बहुत बड़ी मार-काट और संहार के साथ ही होते हैं। उसके लक्षण भी आज की राजनीतिक घटनाओं और युद्ध के नवीन साधनों में प्रत्यक्ष दिखलाई पड़ रहे हैं। इसलिये हम भी इस बात पर विश्वास करते हैं कि अब संसार का विध्वंस होकर नये के आगमन का समय समीप ही आ पहुँचा है।