Magazine - Year 1957 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
कठिन भविष्य की महान चुनौती
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
हमें अपना कर्तव्य पालन करने के लिए कटिबद्ध होना होगा।
(श्रीराम शर्मा आचार्य)
आपत्तियाँ और कठिनाइयाँ एक अध्यापक की तरह आती हैं। लापरवाह और आलसी प्रमादी लड़के अध्यापक से पिटते, अपमानित होते और क्रोध सहते हैं, किन्तु परिश्रमी एवं कर्तव्य परायण विद्यार्थी उसी अध्यापक द्वारा प्रशंसित होते, प्यार प्राप्त करते, ज्ञानवान बनते, पुरस्कृत होते एवं उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अध्यापक एक ही है पर दो प्रकृति के छात्र उससे दो प्रकार की परस्पर विरोधी अनुभूतियाँ प्राप्त करते हैं। विपत्ति भी ऐसा अध्यापक है जिसका कार्य कठोर है, वह कड़ी परीक्षा लेता है, यह उद्देश्य उसका अशुभ नहीं होता। वह शुभ लक्ष्य की पूर्ति के लिए ही आता है।
व्यक्तिगत जीवन में, सामाजिक जीवन में, सार्वभौम जीवन में, जब कभी विपत्तियाँ आती हैं, वह मनुष्य के व्यक्तिगत, सामाजिक, सार्वभौम अशुभ कर्मों का ही फल देती है। यह अशुभ कर्म जितनी बड़ी मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं विपत्ति भी उतनी ही बड़ी बन जाती है। ग्रह दशा तो एक अनुकूल अवसर मात्र है। वर्षा ऋतु में दाद, खाज, छाजन, फोड़े-फुन्सी, मलेरिया, दस्त, हैजा आदि रोगों की बढ़ोतरी होती है उसका कारण यह नहीं है कि वर्षा में यह रोग बरसते हैं, वरन् यह है कि शरीर के अन्दर जो विष बहुत दिनों से एकत्रित हो रहा था उसके निकलने के लिए- फूट पड़ने के लिए एक अनुकूल अवसर आ गया। जिसके शरीर में संचित विष न हो उसके लिए वर्षा ऋतु में भी बीमार होने का कोई खतरा नहीं रहता। बसंत ऋतु में बहुधा पेड़ पौधे फूलते हैं पर फूलते वे ही हैं तो खाद, पानी पाकर परिपुट हो गये हैं जो पौधे अपना स्वाभाविक विकास नहीं कर सके, खाद, पानी नहीं प्राप्त कर सके, वे बसन्त ऋतु आने पर भी फूलने से वंचित ही रह जाते हैं।
ग्रह दशाओं के सम्बन्ध में भी यह बात है, यह एक अनुकूल अवसर मात्र है। नहर में भरा हुआ पानी कहीं कुलावा लगा देने से उसमें होकर बाहर निकलने लगता और निकलेगा तभी जब नहर में पानी भरा हो। पानी न हो, नहर सूखी पड़ी हो तो कितने कुलावे लगा देने पर भी पानी खेतों में नहीं पहुँचता। एक ही राशि के अनेक व्यक्तियों पर एक ही समय एक ही ग्रह की शुभ अशुभ दशाएँ आती हैं पर सभी को समान रूप से दुख सुख नहीं मिलते। कारण यह है कि उन व्यक्तियों के शुभ अशुभ संचित कर्मों की मात्रा के अन्तर होता है। ग्रह दशा अपनी ओर से अकारण किसी को त्रास या पुरस्कार नहीं देती। यदि ऐसा हुआ होता तो ईश्वर की, ग्रह देवताओं की सदाशयता, श्रेष्ठता, समय दर्शिता एवं न्याय शीलता स्थिर नहीं रहती। तब तो इन ग्रह देवताओं को अकारण दुख देते रहने वाले राक्षस मूर्खतावश बिना पात्र कुपात्र का भेद किये सुख उलीचते फिरने वाले पागल कहा जाता। वस्तुतः ग्रह देवताओं की ऐसी हीन स्थिति नहीं है। उनके लिए सभी प्राणी समान है। सभी पर वे देवता होने के कारण दया ही करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आगामी पाँच वर्ष घोर अनिष्ट के दिखाई पड़ रहे हैं। यह भयंकरता कितनी होगी, इसका माप यह है कि मनुष्य जाति के सामूहिक दुष्कर्म जितने अधिक होंगे उतना ही त्रास संसार को सहना पड़ेगा। यह वर्ष तो उन अशुभ कर्मों के फूट पड़ने का अनुकूल अवसर मात्र है। इस दृष्टि से हम मनुष्य जाति के वर्तमान कालीन तथा निकट भूतकाल के अशुभ कर्मों पर दृष्टि डालते हैं तो लगता है कि व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता संयम शीलता, उदारता, क्षमा, भ्रातृभाव, सेवा एवं त्याग की सत्प्रवृत्तियों को एक कोने में उठा कर रख दिया जाता है और लोगों ने कानूनी तथा गैर कानूनी शोषण, अपहरण, अन्याय, उत्पीड़न, छल, असत्य, स्वार्थ, परिग्रह एवं दुष्टता की अति कर दी है। लोगों के व्यक्तिगत जीवन में स्वार्थ का बोलबाला है। दूसरों के लिए आत्म त्याग करने की बात कोई सोचता तक नहीं- सबकी गरदन काट कर केवल अपना ही पेट बड़ा कर लेने की धुन हर एक पर सवार हो रही है। श्रेष्ठता और सन्मार्ग की ओर नहीं वासना और तृष्णा की ओर हर एक की आँखें लगी हुई हैं।
सूक्ष्म दृष्टि से अध्यात्मिक दिव्य दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट दिखाई देता है कि आसुरी विचारों एवं कर्मों में आकाश को बुरी तरह तमसाद्रम कर रखा है, इन काली घटनाओं को अब भी बरसने का अवसर मिलेगा गजब ही ढा देने की परिस्थिति पैदा कर देगी। दूरदर्शी तत्व वेत्ता लोग अदृश्य के इन्हीं शुभ-अशुभ जमघटों को देखकर भले बुरे भविष्य की भविष्यवाणियाँ किया करते हैं। ग्रह दशा को उस भविष्य दर्शन के जानने में एक सहायक दूरबीन माना जा सकता है। उनकी स्थिति का गणित करके यही काम निकाला जाता है जो बढ़िया दूरबीन लगाकर क्षितिज पर बहुत दूर उड़ती हुई किसी चीज को देखा जा सकता है।
पिछले दिनों अशुभ भविष्य की आशंका चर्चा अखण्ड-ज्योति में होती रही है। इस अंक में भी उस सम्बन्ध में बहुत कुछ ऊहापोह किया गया है। हमारा निज का मत है कि मानव जाति के सामूहिक दुष्कर्म जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, उसी तेजी से बढ़ते रहे, उनकी रोक थाम न हुई, तो विश्व संहार की वैसी ही दुर्घटना अगले वर्षों में हो सकती है जैसी कि इन भविष्यवाणियों में बताई गई है। साथ ही हमारा निजी अभिमत यह भी है कि यह भयंकरता अभी उस स्थिति को नहीं पहुँची है जिसे शान्त करने में मानवीय प्रयत्न सर्वथा असफल सिद्ध हों। इस महा भयंकर प्रलयंकर विपत्ति को जिसके सम्मुख आ खड़े होने पर करोड़ों मनुष्यों की प्राणि हानि तथा अपार धन सम्पदा की हानि हुए बिना न रहेगी, यदि प्रबल प्रयत्न किये जायें तो अभी भी टाला जा सकता है।
यह प्रबल प्रयत्न यह हों कि मनुष्यों के मस्तिष्क जो आज संग्रह, स्वार्थपरता, अनीति, तृष्णा एवं वासना में बुरी तरह व्यस्त हो रहे हैं, उन्हें अपरिमह त्याग, सेवा, परमार्थ, न्याय, समता, नीति, उदारता, सत्य, प्रेम एवं संयम की ओर मोड़ा जाय। जन साधारण का मनः क्षेत्र जब कुविचारों से छुटकारा पाकर सद्विचारों और सद्भावों की ओर मुड़ता है तो लोगों के जीवन में सत्कर्मों की, आदर्श एवं अनुकरणीय आचरणों की अभिवृद्धि होती है। इस प्रकार की ऐसी दिव्य सुगन्धि भर देता है जिसके फलस्वरूप दैवी आशीर्वाद एवं सुख शान्ति की सतयुगी वर्षा होने लगती है। लोग अनेक आपत्तियों एवं कष्टों से छुटकारा पाकर ईश्वर प्रदत्त सुख सौभाग्यों का अनायास ही प्रचुर सौभाग्य प्राप्त करते हैं।
मानव मस्तिष्क को सामूहिक रूप से कुमार्ग पर से हटाकर सन्मार्ग पर चलाने की प्रवृत्ति पैदा करने के लिए केवल ‘उपदेश’ करना काफी नहीं है। श्रेष्ठ चरित्र के ऐसे प्रभाव शाली व्यक्तियों की, इसके लिए आवश्यकता है जिनका व्यक्तिगत चरित्र एवं कार्यक्रम एक जीता जागता प्रवचन हो, जो वाणी से ही नहीं अपने उदाहरण से जनता पर प्रभाव डालते हों। भौतिक वाद से आध्यात्मवाद की ओर जन साधारण का मस्तिष्क मोड़ कर आकाश से छाये हुए अनिष्टकारी दूषित वातावरण को हम शान्त कर सकते हैं। पर यह मोड़ कैसे आवे? कैसे आत्मत्यागी लोग जन नेतृत्व के लिए निकलें? कैसे जनता में यह प्रवृत्ति पैदा हो कि धर्म चर्चा को एक कौतुहल मात्र समझने की अपेक्षा जीवन का एक ठोस तथ्य समझे? यह एक विकट समस्या है। इसका हल बाह्य जगत में नहीं अंतर्जगत में है। ऋषि, महर्षियों का लाखों वर्षों तक परीक्षित आध्यात्म विज्ञान ही इन समस्याओं का समाधान करने में समर्थ हो सकता है। इतिहास साक्षी है कि लोक मानस में मोड़ देने के लिए ऋषियों ने समय-समय पर विशाल शक्तिशाली धर्मानुष्ठान किये हैं और उनका सुदूरवर्ती भूखंडों के मानव प्राणियों पर आश्चर्यजनक व्यापक प्रभाव हुआ है। आज उस सबकी भी भारी आवश्यकता है।
आपत्तियाँ आ रही हैं- अति निकट आ पहुँची हैं- वे एक निष्ठुर किन्तु सुयोग्य अध्यापक की तरह सामने उपस्थित हो रही हैं। यदि हम आलसी ओर उद्दंड विद्यार्थी साबित हुए अपनी दुष्प्रवृत्तियों पर ही अड़े रहे तो बुरी तरह पिटना पड़ेगा। जो भविष्य वाणियाँ, चेतावनियाँ, विज्ञ व्यक्ति दे चुके हैं, दे रहे हैं, वे अक्षरशः सत्य होकर रहेगी। परन्तु उस ग्रह दशा रूपी विद्वान अध्यापक से लाभ उठाया गया, उसके शासन का सम्मान करके अपनी मनोदशा मोड़ ली, सत्प्रवृत्तियों की ओर चल पड़े तो न केवल इस भयंकर विपत्ति की घड़ी को टाला जा सकेगा। वरन् एक नये स्वर्ग युग का सूत्रपात भी हो जायेगा। समय की कठोर चेतावनी सामने उपस्थित है, यदि हम उसे सुन समझ सकें तो अपने आपको मोड़ लेंगे, बदल लेंगे और इस भयंकर भविष्य की दुर्घटना से अपने को ही नहीं असंख्यों अन्य निरीह प्राणियों की भी रक्षा कर सकेंगे। यदि उपेक्षा और आलस्य ही हमारे अवलम्बन रहे, वासना और तृष्णा से विरत न हो सके तो गूलर के फल में रहने वाले भुनगों की तरह कराल काल की दाढ़ों से शीघ्र ही चबा लिये जायेंगे। यह समस्या हमारी बुद्धिमता के लिए दूरदर्शिता के लिए एक प्रकार की चुनौती है जिसमें यह सिद्ध हो जायेगा कि हम इतने कुसमय में भी तुच्छ स्वार्थों से लिपटे रह कर अपना तथा सब का सर्वनाश होने देना पसंद करते हैं या जागरुक होकर सामूहिक सुरक्षा के लिए कटिबद्ध होते हैं।
गायत्री तपोभूमि एक जागरुक लौह सत्ता की तरह विश्व शाँति के मोर्चे पर जूझ रही है। जागरुक प्रहर की भाँति यह संस्था इस घनघोर अन्धेरे की घड़ी में मशाल जला कर आकाश में उमड़ती हुई प्रलयंकर घटाओं को दिखा रही है, उसने चेतावनी का बिगुल बजाते रहना जारी कर दिया है ताकि कुँभकर्णी निद्रा में पड़े हुए लोग करवट बदलें, अपना भला बुरा सोचें और वह करें जो बुद्धिमान लोग आपत्ति की घड़ी आने पर किया करते हैं।
शाँति के अन्य मोर्चों पर लोग अपने-अपने ढंग से काम कर रहे हैं, विज्ञान के मोर्चे पर वैज्ञानिक लोग एक ओर अणु बम, उदविजन बम, कीटाणु बम, दूरमारक राकेट आदि बनाने तथा उनसे बचाव के उपाय खोजने में रात दिन एक कर रहे हैं। औद्योगिक मोर्चे पर अर्थशास्त्री तथा धनाधीश लोग विशालकाय उद्योग धंधे लगाने पर जुटे हुए हैं। विकास मोर्चे पर सरकारी द्वितीय पंचवर्षीय योजना द्रुत गति से कार्यान्वित हो रही है। राजनीतिक मोर्चे पर विभिन्न देशों के राज्याधिकारी, अपने-अपने ढंग से विश्व विजय या विश्व शाँति की बात सोचते हुए नाना विधि षड़यंत्रों के जाल बुन रहे हैं। विभिन्न मोर्चों पर विभिन्न कार्यों की हलचल हो रही है, पर इन सब को मिलाकर भी जो मोर्चा भारी पड़ता है उस सद्भावना, मानवता, नैतिकता, सच्चरित्र, उत्कृष्टता, आदर्शवादिता एवं साधना तथा तपस्या पूर्ण धर्मानुष्ठानों के आयोजन का मोर्चा सर्वथा सूना पड़ा है। यह मोर्चा यदि इसी प्रकार सूना पड़ा रहा तो अन्य सब मोर्चों पर लगी हुई भारी जन शक्ति और सम्पदा निरर्थक सिद्ध होगी। भेद की बात है कि जिस आध्यात्मिक मोर्चे की गतिविधि पर वास्तविक सुख शाँति निर्भर है उसकी ओर सामान्य जनता की अभिरुचि नहीं, और जो तथाकथित धर्मध्वजी लोग हैं वे अपना अपना सम्प्रदाय चलाने, अखाड़ा जमाने, पैर पुजाने, चेला मूढ़ने के गोरख धन्धे में लगे हुए हैं। उन्हें इतनी फुर्सत नहीं कि इस आड़े समय में जन कल्याण के लिए कुछ त्याग करने, कष्ट सहने और जनता का धर्म नेतृत्व करने के कठिन कार्य को अपने कंधे पर लेने की तत्परता दिखावें।
इन परिस्थितियों में गायत्री परिवार के सदस्यों को बहुत कुछ करना है। इस आड़े वक्त में “कुछ कर मिटने और मर मिटने” की जिम्मेदारी उनके कन्धों पर आ रही है। निकट भविष्य में उन्हें जन मानस को बदलने के लिए नैतिकता, मानवता, कर्त्तव्य परायणता एवं सद्भावना की स्थापना के लिए एक सुव्यवस्थित योजना-साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना के अंतर्गत देश व्यापी कार्य करना होगा। पर अभी तो एक तात्कालिक आवश्यकता के रूप में इन दिनों ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान को सफल बनाने में लगना है। अनुष्ठान के तीन चरण थे। प्रथम चरण अनुसार प्रतिदिन 24 लाख जप, 24 हजार हवन, 24 हजार मंत्र लेखन तथा पाठ होता था। यह चरण पूरा हो गया, दूसरे चरण में इस संख्या को पाँच गुनी करना था, जप को 24 लाख प्रतिदिन से बढ़ाकर सवा करोड़ और 24 हजार पाठ, लेखन हवन को बढ़ा कर सवा लाख प्रतिदिन करना था। यही प्रयत्न इन दिनों चल रहा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत एवं व्यापक प्रचार की आवश्यकता है अन्तिम तीसरा चरण वह होगा जिसके अंतर्गत प्रतिदिन 24 करोड़ जप और 24 लाख हवन, पाठ, लेखन का क्रम चलेगा। प्रथम चरण की अपेक्षा सौ गुना और तृतीय चरण की अपेक्षा 20 गुना आयोजन निस्संदेह अब की अपेक्षा कहीं अधिक तत्परता एवं प्रयत्नशीलता की अपेक्षा रखेगा। इसके लिए घनघोर प्रयत्न करने वाले सहस्रों, आत्मत्यागी धर्म सैनिकों की भारी आवश्यकता पड़ेगी।
अखण्ड-ज्योति एवं गायत्री परिवार में ऐसे अनेकों व्यक्ति हैं जिनके मन मानस में धर्म भावनाएं लहरें मारती रहती हैं। जहाँ चाह होती है वहाँ राह निकलती है। समय देने वाले, श्रम देने वाले भावनाशील व्यक्ति यदि कटिबद्ध होकर धर्म प्रचार के लिए खड़े हो जाये तो प्रतिदिन 24 करोड़ जप एवं सवा लाख हवन, पाठ लेखन का संकल्प आसानी से पूरा हो सकता है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि लोगों की दृष्टि में इस महान तथ्य की उपयोगिता आ जाय तो वे लोग जिनके ऊपर गृहस्थ नाम मात्र की जिम्मेदारियाँ रह गयी हैं। नाती पोतों का मोह छोड़कर इस कार्य में जुट जायें जो वानप्रस्थ, संन्यास की प्राचीन मर्यादाओं का पालने करने के साथ-साथ सच्चे अर्थों में जीवन को सफल बना सकते हैं। वे सद्गृहस्थ जो अपने दैनिक कामकाज से थोड़ा वक्त बचा सकते हैं अपने निकटवर्ती क्षेत्र में बहुत भारी काम कर सकते हैं। रामगंज मंडी के मास्टर शम्भू सिंह हाडा, बरेली के श्री चिमनलाल सूरी, आरंग के पं. विद्याशंकर मिश्र आदि रोज कमाने रोज खाने की स्थिति वाले लोगों ने गजब के काम करके दिखा दिये तो जिन लोगों के कोई सहारा भी है तो वे बहुत कुछ कर सकते हैं। सन्त महात्माओं, पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त लोगों के लिए तो यह समय बहानेबाजी में काटने का किसी प्रकार भी नहीं है।
“भजन करके मुक्ति प्राप्त करने” में लगे हुए ओर अनुष्ठान करके ऋद्धि-सिद्धि उपलब्ध करने के स्वार्थ पूर्ण दृष्टिकोण को थोड़े समय के लिए बदल दिया जाना चाहिए अब कुछ समय के लिए कम से कम 5 साल के लिए विश्व शाँति के लिए निस्वार्थ धर्म प्रचार ही सब धर्म प्रेमियों का लक्ष होना चाहिए। क्योंकि इन दिनों न किसी को मुक्ति संभव है और ऋद्धि-सिद्धियाँ ही। उसके लिए जो सूक्ष्म वातावरण की अनुकूलता होनी चाहिए वह इन दिनों बिलकुल भी नहीं है; इसलिए उन असफल होने वाले प्रयत्नों में समय गंवाने की अपेक्षा, वह कार्य करना चाहिए जिस पर अपनी, अपने परिवार की, आम नगर की एवं समस्त संसार की सुख शान्ति निर्भर है। 24 करोड़ जप, सवा-सवा लाख हवन, पाठ, लेखन का महा अनुष्ठान पूरा करने के लिए कम से कम एक हजार धर्म प्रचारकों की सेना चाहिए। पाँच साल तक एक हजार धर्म प्रचारक यदि विश्व शाँति के मोर्चे पर अपना आत्म-दान करते हुए कटिबद्ध होकर अड़ जायं तो अणु बमों का मुँह मोड़ सकते हैं। विध्वंसकारी घनघोर घटाओं से इन्द्र वज्र की तरह टकरा कर उन्हें पीछे हटा सकते हैं। प्राचीनकाल में इन्द्र वज्र एक दधीच ऋषि की हड्डियों से बनाया गया था। आज मोर्चा कड़ा है फिर दधीच जैसी हड्डियाँ भी नहीं हैं, आज एक हजार आत्मदानी मिलकर ही उस आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं।
इतने बड़े राष्ट्र में एक हजार धर्म प्रचारक पाँच वर्ष के लिए आत्मदानी बनकर विश्व शाँति के मोर्चे पर अड़ जाने के लिए तैयार न होंगे ऐसा विश्वास नहीं होता। इस आवश्यकता की पूर्ति अखंड ज्योति और गायत्री परिवार द्वारा हो जाय तो यह संख्या अपना सिर ऊंचा उठा सकने, सीना तान कर खड़े होने और एक अत्यन्त भयानक कुसमय को अपनी टक्कर से उलट देने में समर्थ हो सकती है। गायत्री परिवार एक हजार धर्म प्रचारकों की एक सेना खड़ी करके एक सुदृढ़ सहस्रबाहु के रूप में खड़ा हो सकता है, आज समय का तकाजा इसी प्रकार का है। देखें, इसका उत्तर देने के लिए कौन-कौन तैयार होता है।
कुसमय के जगत भेदी नगाड़े बज रहे हैं, सर्वनाश की बेला में, कुत्ते की मौत मरने की अपेक्षा, आइए हम लोग विश्व शाँति के लिए, युग निर्माण के लिए, मानवता की सेवा के लिए, धर्म स्थापना के लिए भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए कुछ कार्य करें। यह करना ही उचित है, इसी में बुद्धिमता, दूरदर्शिता और जीवन की सफलता भी सन्निहित है।