Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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अणु बम की प्रलय का दोषी कौन?
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(श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य)
इस समय दुनिया में अणु बम के कारण हलचल मची हुई है। जो लोग उसे जानते हैं वे उनके कारण बड़े चिन्तित रहते हैं, क्योंकि अगर किसी महत्वाकाँक्षी या स्वार्थान्ध व्यक्ति ने इस बारूद में चिंगारी छोड़ दी तो उसका भीषण परिणाम दोनों लड़ने वालों को ही नहीं वरन् सारे संसार को भोगना पड़ेगा। और वह भी केवल हमीं लोगों को भोगना न होगा वरन् हमारे बाल बच्चे और नाती-पोते भी सैकड़ों वर्ष तक उसके कारण हानि उठाते रहेंगे और नीचे दर्जे का जीवन व्यतीत करने को विवश हो जायेंगे। अणु युद्ध की बुराइयां इतनी अधिक है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है और जब तक वे सामने नहीं आतीं तभी तक हमको अपना सौभाग्य समझना चाहिए।
ऐसे अणु-शस्त्रों का जिसने आविष्कार किया और प्रयोग किया वह वास्तव में समस्त मानव जाति का शत्रु है और जब कभी इन अस्त्रों का कुफल जनता को भोगना पड़ेगा तब सब लोग उसको प्राचीन काल के दैत्यों से भी बढ़कर निन्दनीय समझेंगे। इस सम्बन्ध में अमरीका को जलसेना के एडमिरल विलियम डी. लोही ने, जो प्रेसीडेन्ट रुजवेल्ट और ट्रूमन के समय में प्रधान सैनिक सलाहकारों में से थे, अपनी पुस्तक ‘आई वाज दियर’ में सन् 1949 में नीचे लिखे विचार प्रकट किये हैं-
“मेरी यह सम्मति है कि जापान के विरुद्ध इस बर्बरतापूर्ण हथियार का हिरोशिमा तथा नागासाकी पर प्रयोग करना युद्ध की दृष्टि से किसी प्रकार सहायक नहीं था। उस समय जापानी लोग परास्त हो चुके थे और प्रभावशाली समुद्री घेरे तथा हवाई जहाजों द्वारा प्रचलित ढंग की सफल बम वर्षा के कारण आत्म समर्पण करने को तैयार थे। मेरा निजी ख्याल यह है कि चूँकि इस अणु अस्त्र के तैयार करने में जो अरबों रुपया खर्च हुआ उसकी दृष्टि से वैज्ञानिक इसकी जाँच करना चाहते थे। प्रेसीडेन्ट ट्रू मन इस बात को जानते थे, और इस मामले से सम्बन्धित अन्य व्यक्तियों को भी इसका पता था। तो भी, प्रधान कार्यकारिणी युद्ध समिति ने जापान के दो शहरों पर इस बम को डालने का निर्णय किया। इस अस्त्र को ‘बम’ कहना गलत है, क्योंकि वह विस्फोटक पदार्थ नहीं है। यह एक जहरीला पदार्थ है, जिसके विस्फोट से तो थोड़े आदमी मरते हैं, पर उसमें से निकलने वाली घातक रेडियो एक्टिव किरणों से बाद में असंख्य लोगों की जानें जाती हैं। भविष्य के युद्ध में इस अस्त्र की मारक शक्ति बड़े भय की चीज है। मेरी अपनी भावना यह है कि चूँकि इसका सबसे पहले प्रयोग हमने ही किया है, और इस कारण हम प्राचीन काल (डार्क एजेज) की युद्ध करने वाली बर्बर जातियों के दर्जे को पहुँच गये हैं। मुझे जो युद्ध की शिक्षा दी गयी थी वह इस ढंग की नहीं है, और स्त्रियों तथा बालकों का संहार करके युद्ध में विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। मुझे इस बात का पूरा विश्वास जान पड़ता है कि हमारे वास्तविक शत्रु हमें भविष्य में तैयार कर लेंगे और यह कभी हमारे ऊपर ही प्रयोग किया जायेगा। यही कारण है कि एक पेशेवर सैनिक होते हुए और पचास वर्ष तक सरकारी सेवा में नौकरी करने के बाद मुझे अपनी युद्ध कथा के अन्त में ऐसा भय प्रकट करना पड़ा। युद्ध में एटम बम का प्रयोग हमें साधारण जनता के प्रति वैसी ही निर्दयता करने के जमाने में पहुँचा देगा जैसी कि चंगेजखाँ के समय में की जाती थी। इन दोनों में इतना ही अन्तर होगा कि इस समय यह नाश लीला एक राष्ट्र के नाम पर दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध की जायगी जब कि पुराने जमाने में कोई एक बादशाह अपने लालच या धर्मान्धता के कारण ऐसा काम करता था। ये असभ्यता पूर्ण युद्ध में काम लाये जाने वाले नये और भयंकर हथियार एक आधुनिक ढंग की बर्बरता के प्रदर्शक है जो किसी ईसाई व्यक्ति के लिए शोभा नहीं दे सकती।”
ये शब्द एक महान अमरीकन सेनापति ने, जिसने गत महासमर में बहुत कुछ काम किया था, सन् 1949 में लिखे थे। शोक है कि आज वे बिल्कुल सत्य होते दिखलाई पड़ रहे हैं, तो भी बड़े राष्ट्र उन से कुछ शिक्षा लेने को तैयार नहीं।
इसी प्रकार संसार के बड़े-बड़े वैज्ञानिक निरन्तर महान राष्ट्रों के कर्णधारों को चेतावनी दे रहे हैं कि अणु शक्ति के नाशकारी प्रयोग से मानवता को बहुत अधिक हानि पहुँचना निश्चय है। इंग्लैंड के प्रोफेसर सी.एफ. पावेल तथा फ्राँस के प्रोफेसर जोलियट फ्यूरी दोनों अणु विज्ञान के प्रसिद्ध ज्ञाता हैं, जिनको वैज्ञानिक आविष्कारों के उपलक्ष में ‘नोबल प्राइज’ मिल चुका है। 30 अप्रैल 1957 को उन दोनों ने एक संयुक्त बयान में कहा है-
“यद्यपि अनेक देशों के प्रमुख वैज्ञानिक निरन्तर गम्भीर चेतावनी दे रहे हैं तो भी अणु-अस्त्रों के परीक्षण जारी है। इसलिए हमको एक बार फिर अपने संघ के सब वैज्ञानिकों के नाम पर, अनिवार्य आवश्यकता समझते हुए यह चेतावनी देनी पड़ती है।
“अब वातावरण तथा पृथ्वी को विषाक्त बनाने का खतरा बहुत स्पष्ट रूप से प्रकट हो गया है, और जो नई सूचनायें प्राप्त हुई हैं उनसे हमारी चिन्ता और भी बढ़ जाती है। एटम और हाइड्रोजन बमों के विस्फोट से उत्पन्न होने वाले रेडियो स्ट्रोन्टियम की मात्रा बराबर बढ़ती जा रही है। यह धीरे-धीरे लगातार पृथ्वी की धूल या वर्षा में सम्मिलित होता जाता है और वहाँ से पौधों में पहुँच जाता है। पिछले अणु बमों के विस्फोट से उत्पन्न ‘रेडियो स्ट्रोन्टियम’ अभी तक पृथ्वी पर आ रहा है और अभी कितने ही वर्ष तक आता रहेगा।
“इन वनस्पतियों में से यह ‘रेडियो स्ट्रोन्टियम’ मनुष्यों और घरेलू पशुओं के शरीरों में पहुँच कर हानि पहुँचाने लगता है। दूध में भी वह पाया जाता है। अगर अब भी अणु-अस्त्रों का परीक्षण बन्द नहीं किया गया तो बड़ी आयु के मनुष्यों तथा बच्चों में इस हानिकारक तत्व का परिमाण बहुत अधिक बढ़ जायगा और उनमें से अनेकों को हड्डी के कैंसर तथा ल्यूकेमिया (श्वेत रक्तता) की बीमारी लग जायगी। अणु-अस्त्रों के इन विस्फोटों से जो ‘रेडियो स्ट्रोन्टियम’ उत्पन्न होगा उससे आगामी पीढ़ियों के लिए बड़ा खतरा है।”
“हम सब वैज्ञानिकों से आग्रह करते हैं कि- वे इस सम्बन्ध में स्पष्ट और ठीक-ठीक सूचनायें सर्वत्र फैला दें जिससे मनुष्य इस खतरे को समझ सकें। हम सब सरकारों से भी आग्रह करते हैं कि- वे आपस में समझौता करके अणु-अस्त्रों के परीक्षण को तुरन्त बन्द कर दें। सुरक्षा के इस अनिवार्य उपाय पर संसार की समस्त सरकारों और मनुष्यों का ध्यान देना अत्यावश्यक है, यह केवल उन्हीं के लिए विचारणीय नहीं है जो कि इस प्रकार के परीक्षण कर रहे हैं।”
इस दृष्टि से अणु-अस्त्रों के परीक्षण का यह भय साधारण जनता द्वारा फैलाई हुई अफवाह नहीं है-वरन् यह संसार के सबसे बड़े वैज्ञानिकों की सम्मतियों पर आधारित है। कुछ राजनीतिज्ञ हम से कहते हैं कि इस आन्दोलन का कारण रूस वालों की धोखेबाजी है। पर हम अच्छी तरह जानते हैं कि हमको कोई धोखा नहीं दे रहा है। स्वयं अमरीका, इंग्लैंड, फ्राँस, जर्मनी के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक, जो इस विषय का पूर्ण ज्ञान रखते हैं, हम को सत्य बात बतला रहे हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे शरीरों को विषाक्त बनाया जाय और हमारी भावी संतानों को विकार ग्रस्त किया जाय, सिर्फ इस कारण से कि बड़े राष्ट्र एक दूसरे पर संदेह करते हैं और आपस में समझौता करने में असमर्थ हैं।