Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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आगामी वर्षों में भारत में होने वाले परिवर्तन
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(श्री राज ज्योतिषी अभयानंद काश्यप)
राहु और केतु के बीच में और सब ग्रहों के आ जाने से काल-सर्पयोग बनता है। वह दो प्रकार का होता है, एक पूर्ण बलवान और दूसरा अपूर्ण। ता. 17 दिसम्बर 57 से 14 मई 58 तक वह योग होने वाला है, पर किसी पाप-ग्रह का अंशात्मक सम्बन्ध न होने से पूर्ण जोरदार नहीं है।
इस योग का असर भारत और पाकिस्तान की कुण्डली पर विशेष रूप से दिखाई पड़ता है। इसके फल से सन् 1957 के अन्तिम भाग से सन् 1958 के आरम्भ तक इन दोनों देशों में कितने ही परिवर्तन होंगे। पाकिस्तान पर इसका प्रभाव कितने ही मूलभूत परिवर्तनों के कारण विशेष रूप से अनुभव किया जायेगा। पाकिस्तान के चुनाव परिणाम आश्चर्यजनक सिद्ध होने पर इस्कन्दर मिर्जा या वैसे ही किसी अन्य व्यक्ति के हाथ में शासन की बागडोर पूरी तरह सुपुर्द कर दी जायगी। इस प्रकार की निरंकुश सभा के फल से देश में अन्धेरगर्दी फैल जायगी। और कुछ प्रमुख राजनैतिक व्यक्तियों को खून, कैद या देश निकाले द्वारा हटना पड़ेगा। पर काल-सर्पयोग अपूर्ण होने से पाकिस्तान की दशा बहुत अधिक नहीं बिगड़ेगी। देश का झुकाव मर्यादित प्रजातंत्र की तरफ ही रहेगा। इस योग के साथ पूर्वी पाकिस्तान के अस्तित्व का सम्बन्ध विशेष महत्व का होगा और वहाँ का आन्दोलन उग्र रूप धारण करेगा, जिसका प्रभाव पश्चिमी पाकिस्तान पर भी पड़ेगा। पूर्वी पाकिस्तान के प्राँतीय स्वराज का असर भारत के कुछ प्राँतों और खासकर आसाम पर भी पड़ेगा। इस सम्बन्ध में भारतीय नेताओं को सावधान रहना चाहिए।
भारत में खेती-बाड़ी के कार्यक्रम के प्रति दुर्लक्ष होने से गेहूँ की खेती को नुकसान होगा। इसके फल से अनाज की तंगी होगी और अशाँति उत्पन्न होगी।
सन् 1958 की 24 सितम्बर को गुरु और नेपच्यून की युति होने वाली है। यह युति जब-जब हुई है तब-तब कितने ही देशों की सीमाओं में परिवर्तन हो जाता है। पिछले समय में इस युति के कितने ही युद्ध और महायुद्ध हुए हैं। इसके प्रभाव से युद्ध का बीज बो दिया जाता है, पर उस का फल कुछ समय बाद प्रकट होता है। वर्तमान समय में भी इसके फल से तीसरे विश्वयुद्ध का बीज बो दिया जायगा, पर उसके प्रत्यक्ष होने में कुछ अधिक समय लगेगा। सूर्य के दक्षिण गोत्र -प्रवेश की कुँडली में यह युति सातवें स्थान पर होने से, भविष्य में होने वाले छोटे-बड़े युद्धों में भारत की तटस्थता का कायम रहना कठिन होगा और इसके फल से भारत को किसी राजनैतिक गुटबन्दी में शामिल होना पड़ेगा। सरकार का झुकाव पूर्वीय (रूसी) गुटबंदी की तरफ होने से जनता का एक भाग उसका विरोध करेगा और पश्चिमी देशों की नीति का समर्थन करेगा। लोक-सत्ता की ग्रीष्म की बैठक में इस विरोध का स्पष्ट रूप दिखलाई पड़ेगा।
भारत में समाजवाद की स्थापना तो अवश्य होने वाली है, पर यह समाजवाद किस तरह का होगा इसकी रूपरेखा आगामी दो-तीन वर्ष तक नहीं जान पड़ेगी। तो भी हम कह सकते हैं कि यह समाजवाद रूस और अमरीका के बीच के रास्ते का, गाँधीवादी और मार्क्सवाद का अपूर्व मिश्रण होगा और इससे हमारा देश एक नये ही रास्ते पर चलना आरम्भ करेगा।
भारत में प्राकृतिक उत्पात
पुराने अनुभव से हम जानते हैं कि भारत के उत्तर पूर्व भाग में और अंशतः उत्तर के कुछ भूमि खण्डों पर तुला राशि का आधिपत्य है। इसमें संक्षेपतः बिहार का कुछ भाग, आसाम, पश्चिमी और पूर्वी बंगाल, काश्मीर, नेपाल, तिब्बत, चीन और बर्मा का कुछ भाग और इंडोनेशिया वगैरह का समावेश होता है।
पिछले कुछ वर्षों से नेपच्यून ग्रह शुभाशुभ योग उत्पन्न करता हुआ तुला राशि में भ्रमण कर रहा है। परन्तु अब वह खूब बलवान होकर धीमे-धीमे वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा। सन् 1958 के अन्त तक यह तुला और वृश्चिक राशि की संधि पर होगा। और परिणाम स्वरूप ऊपर लिखे देशों पर उसका बहुत जोरदार प्रभाव पड़ेगा। वृश्चिक राशि का आधिपत्य कच्छ, सौराष्ट्र के कुछ भाग, कराची के आस-पास का प्रवेश और गुजरात के कुछ भागों पर है। प्राकृतिक दृष्टि से विचार करते समय प्रदेशों के राजनीतिक विभागों को ध्यान में नहीं रखा जा सकता, इस तरह की घटनाओं में भौगोलिक दृष्टि से ही विभिन्न भूमि-खण्डों पर विचार किया जाता है।
हमारे कहने का तात्पर्य यही है कि जिन भूमि खण्डों में पिछले कुछ वर्षों में भूचाल आये हैं- जैसे आसाम, पूर्वी पाकिस्तान, कच्छ और नेपाल आदि के कुछ भाग- इन सब में फिर से वैसी ही घटना होने का भय है। इनमें से पश्चिमी प्रदेशों में इन घटनाओं का रूप हलका रहेगा, पर पूर्व दिशा में उग्र रूप होने की संभावना है। इसलिये इन प्रदेशों में विकास तथा निर्माण के बड़े-बड़े कार्य इस समय स्थगित रखे जायें तो इससे बहुत सी सम्पत्ति और श्रम का बचाव हो सकेगा।
आगामी चार वर्षों में आसाम और पूर्वी पाकिस्तान के मध्य भागों की नदियों का प्रवाह कुछ बदल जायगा, जिससे खेती की जमीन और फसलों के स्वरूप में कुछ अन्तर पड़ेगा। इतना ही नहीं नदियों के किनारे पर बसे कितने ही गाँवों और नगरों पर भी इसका असर पड़ेगा। इसलिये विकास के नये कार्यों को नदियों के किनारे से दूर रखना ही समझदारी की बात है। बंगाल और आसाम में कितनी ही जगह ऐसा मालूम पड़ेगा कि नदी का तल ऊंचा होकर नये टापू बन गये हैं और अब उनमें जहाज नहीं चलाये जा सकते। इन परिवर्तनों में कुछ जल्दी और कुछ धीरे-धीरे होंगे, पर उनका होना निश्चित है।
कुछ प्राचीन भविष्यवाणियाँ
अब से कुछ सौ वर्ष पूर्व (पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी के लगभग) फ्राँस में ‘नोस्टरडम’ नामक एक ज्योतिष शास्त्र ज्ञाता हुआ है, उसने संसार के भविष्य के विषय में एक बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा है। यह ग्रंथ कविता में है, इसलिये अनेक लोग इसकी व्याख्या तरह-तरह के करते हैं। तो भी उसमें स्वेज को खोदा जाना, वैज्ञानिक आविष्कारों की वृद्धि, विश्वव्यापी संग्राम आदि का वर्णन यही अच्छी तरह किया है। यह अपने ग्रंथ में लिख गया है कि “तीसरा महायुद्ध वैज्ञानिकों की प्रयोगशालाओं में से फट पड़ेगा। यह युद्ध मुख्य रूप से गरुड़ और रीछ के मध्य में होगा। इस युद्ध में कोई जीत नहीं सकेगा, वरन् दोनों की शक्ति का नाश कर देंगे। इस युद्ध के बाद दोनों में से एक को भी महान शक्तियों में नहीं गिना जायगा।” (अमरीका का राष्ट्रीय चिन्ह ‘ईगल’ अथवा गरुड़ है और रूस को राजनीतिक क्षेत्र में ‘रशियन बीयर’ (रूसी भालू) कहा जाता है।)
अभी हाल में जर्मनी के एक ज्योतिषी प्रो. ट्रोइन्सकी ने ज्योतिष के सम्बन्ध में बहुत सी खोज करके संसार के राजनीतिक भविष्य पर प्रकाश डाला है। उन्होंने सन् 1953 में निम्नलिखित भविष्यवाणी की थी-
“वास्तव में आज हम भयंकर समय में होकर गुजर रहे हैं। राजनैतिक संघर्ष सन् 1955 से अधिक उम्र होते जायेंगे। सन् 1958-1959 की साल में संघर्ष भयंकर रूप धारण कर लेंगे। सन् 1961 से 1963 तक के वर्षों में इससे भी भीषण अवस्था विभिन्न देशों के बीच उत्पन्न हो जायेगी जो सन् 1965 तक जारी रहेगी। इसी वर्ष भावी घटनाओं का कोई निश्चित परिणाम दिखाई पड़ेगा।”
मिश्र का बड़ा पिरामिड संसार भर के विद्वानों की दृष्टि में बड़ा रहस्यपूर्ण अनेक गुप्त तत्वों का भण्डार माना जाता है। स्काटलैण्ड के एक विद्वान प्रोफेसर पियाजी स्मिथ ने अब से 60-70 वर्ष पूर्व उक्त पिरामिड की कई वर्षों तक खोजबीन करके दो तीन पुस्तकें लिखी थीं जिनमें से एक का नाम है ‘पिरामिड स्पीक्स’। इसमें संसार के भविष्य के सम्बन्ध में बहुत सी बातें लिखी हैं, जिनका समय अब पूरा हो चुका है। वर्तमान समय की दृष्टि से उसमें एक ही बात यह कही गयी है कि ‘सन् 1953 से नई दुनिया का निर्माण होने लग जायगा” इससे हम यह अनुमान कर सकते हैं कि सन् 1953 के बाद के दस बीस वर्ष बड़े-बड़े परिवर्तनों और संघर्ष के होंगे। क्योंकि नई दुनिया का निर्माण तब तक नहीं हो सकता जब तक कि पुरानी दुनिया को तोड़ा-फोड़ा न जाय। यह तोड़ना-फोड़ना ही युद्ध, उपद्रव, संघर्ष आदि के रूप में प्रकट होगा।
संसार व्यापी इन संघर्षों का परिणाम भारतवर्ष पर भी पड़ना अनिवार्य है, विशेष कर इस कारण कि अब उसका अन्तर्राष्ट्रीय महत्व बढ़ता जाता है और उसका विरोधी पाकिस्तान भी उसको सैनिक तैयारी के लिए बाध्य करता रहता है।