Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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दिव्य दृष्टि वाले महात्माओं की भविष्यवाणियाँ
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(श्री मृत्युँजय उपाध्याय एम.ए.)
हमारे देश में, तथा अन्य देशों में भी समय-समय पर कुछ विशिष्ट महापुरुष ऐसे उत्पन्न हुआ करते हैं जो भविष्य में होने वाली घटनाओं को दिव्य दृष्टि द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व जान जाते हैं और लोक कल्याण के उद्देश्य से उसे प्रकट भी कर देते हैं। इन भविष्य वाणियों में जो समय दिया जाता है वह प्रायः गुप्त संकेतों के रूप में होता है, जिससे जन-साधारण में व्यर्थ का आतंक न फैले, और केवल गुप्त विद्याओं से अनुराग रखने वाले अथवा उनके खास अनुयायी उनको समझ कर समयानुसार मार्ग-दर्शन का कार्य कर सकें। नीचे हम कुछ ऐसी ही भविष्यवाणियों का संग्रह पाठकों, के विचारार्थ दे रहे हैं-
मालिका की भविष्यवाणी
उड़ीसा प्राँत में जगन्नाथ पुरी के पास कितने ही मठों में ‘मालिका’ नाम की एक प्राचीन पुस्तक मिलती है। वह पाँच सौ वर्ष से अधिक पुरानी है और ताड़ के पत्तों पर लिखी गई है। कहा तो यह जाता है कि उड़ीसा में एक लाख ‘मालिका’ की पुस्तकें हैं, पर इस समय जितनी पुस्तकों की जानकारी लोगों को है उनकी संख्या भी सैकड़ों है। ये सब महन्तों के अधिकार में है। वे इन पुस्तकों को बड़ी कोशिश से खास-खास को ही देखने देते हैं।
मालिका की रचना बंगाल के प्रसिद्ध भगवद् भक्त श्री चैतन्य महाप्रभु के समय में हुई थी। उनके एक मित्र श्री अच्युतानन्द दास थे जिनको उड़ीसा में बहुत बड़ा योगी और महात्मा माना जाता है। लोगों का यह भी विश्वास है कि अच्युतानन्द दास ने अपनी सब पुस्तकें योग शक्ति से लिखी हैं। इन्हीं में से एक ग्रन्थ में सतयुग से लेकर कलियुग तक अच्युतानन्द के अनेक जन्मों का भी वर्णन किया गया है। उड़ीसा में अच्युतानन्द दास की भविष्यवाणियों का बड़ा महत्व है और लोग उनके प्रति बड़ी श्रद्धा और विश्वास रखते हैं। उनकी भविष्यवाणियाँ वैसे तो बड़ी विस्तृत हैं जिनका विवरण एक बड़े ग्रंथ में भी नहीं दिया जा सकता। पर उनका साराँश थोड़े शब्दों में नीचे दिया जाता है।
“बाढ़ और युद्ध, अकाल और महामारी, भूचाल और विस्फोट इस युग की अनिवार्य घटनायें हैं। योरोप की प्रायः समस्त आबादी नष्ट हो जायगी, और कुछ समय बाद अमरीका पानी में डूब जायगा, अन्त में रूस सफलता प्राप्त करेगा। विजयी रूस को आगामी अवतार वश में करेगा। भारतवर्ष में नीलाँचल (जो जगन्नाथ पुरी के नाम से प्रसिद्ध है) समुद्र-गर्भ में विलीन हो जायगा। यह एक नियम सा हो गया है कि प्रत्येक युग के अन्त में भारत का एक हिस्सा डूब जाता है। त्रेता के अंत में लंका डूबी थी, द्वापर के अन्त में द्वारिका समुद्र में विलीन हो गई, और अब कलियुग का अन्त होते समय हिन्दू-धर्म का प्रधान तीर्थ जगन्नाथपुरी लोप हो जायगी।”
‘मालिका की भाषा और भविष्य वाणियों की शैली का एक नमूना भी देखिये :-
ठावे-ठावे अनर्थ जे होई बढ़ि वीर,
दिवस आँधार दिशु, थिच अन्धकार॥1॥
महा घोर अनर्थ जे होई व संसार,
तेतिकि वेल कुलक्ष रखि थिवु वीर॥2॥
केहि जे काहारि होई न रहिवे मही,
अरजीला धन पर नेउ थिवे वो ही ॥3॥
धरे-धरे तातटि बाट पड़िव संसार,
दुर्वाद गाउ थिवे जे सुजन संगर॥4॥
असुरान्त माने बड़बड़ बोलाइबे,
खट जे खचु आमाने संसारे फेरिवे ॥5॥
श्री हरि महीमा जे अटइ दिव्य रस,
निगम बेलकु एका रहिवे मो दास॥6॥
पश्चिम दिगरु अनुकूल हेव जे वे,
निश्चय जणिव निकटटि हेवे तेवे ॥7॥
बलराम जी गरुड़ जी को कलियुग का भविष्य बतलाते हैं कि- ‘हे वीर जब कलियुग के अन्त होने का समय होगा, तब जगह-जगह लड़ाई होगी और दिन में अंधेरा दिखलाई पड़ेगा।1। उतने ही समय में संसार में बड़ा भारी अनर्थ होगा, उसी समय को ध्यान में रखो।2। उस समय संसार में कोई किसी का न होगा, लोग दूसरे का धन लूटने को हमेशा तैयार रहेंगे।3। हर एक घर में किवाड़ (टट्टी) लग जावेगा। हर जगह भाग्य को कोसना और खराब बातें सुनाई पड़ेंगी।4। असुर प्रकृति वाले व्यक्ति बड़े आदमी (अमीर) बनकर पूज्य बन जायेंगे और लुटेरे संसार में स्वच्छंद होकर फिरेंगे।5। श्री हरि का चरित्र अमृत है। उसके प्रभाव से अन्त समय में भक्त लोग ही बचेंगे।6। यह लूट-मार जब पश्चिम में शुरू होगी तब समझ लेना कि समय नजदीक आ गया है।7।
इस भविष्यवाणी के अनुसार इस समय पश्चिमी देशों में लूट-मार (अपहरण) का भाव चोटी पर पहुँच चुका है, और असुर प्रकृति वाले संसार के प्रधान बने बैठे हैं। इसलिये हमारा विश्वास है कि यह भविष्यवाणी शीघ्र ही सत्य होती दिखलाई पड़ेगी और वर्तमान युग का अन्त होकर एक श्रेष्ठ युग का आविर्भाव होगा।
शेरो साहिब की भविष्यवाणी
योरोप और अमरीका में हाल के समय में जितने ज्योतिषी हुये हैं उनमें शेरो साहिब का नाम सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। उन्होंने सन् 1925 में भविष्यवाणी की एक बहुत बड़ी पुस्तक लिखी थी जिसमें संसार भर में होने वाले युद्धों, दैवी घटनाओं और नये-नये परिवर्तनों का जिक्र किया गया है। उनके भविष्य कथन का आधार वह सिद्धान्त है कि पृथ्वी की कक्षा या धुरी अपनी जगह से धीरे-धीरे इधर-उधर हटती रहती है। इसके सबब से सूर्य भी हमको अपने स्थान से हटता नजर आता है। यह पृथ्वी का हटना ऐसा होता है कि सूर्य एक-एक करके बारहों राशियों में हो आता है। एक राशि से दूसरी राशि में जाने में उसे 2150 वर्ष और बारहों राशियों में 25800 वर्ष लगते हैं। ईसा के जमाने में सूर्य मीन राशि में था। अब सन् 1762 से कुम्भ राशि में आ गया है। जब सूर्य मीन राशि में आया था तो उसके फल से समुद्री जातियों की उन्नति हुई थी। अब कुम्भ राशि का विशेष प्रभाव रूस, चीन तथा भारत आदि देशों पर है और इस युग में इन्हीं देशों की सबसे ज्यादा तरक्की होगी।
ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार रूस कुम्भ राशि का है और उसका स्वामी शनि माना गया। शनि का यह मानवीय भाग्य की दृष्टि से बड़ा भयंकर माना गया है। यूनान के प्राचीन पुराणों में शनि को ऐसे देवता का रूप दिया गया है जो स्वयं ही अपने बच्चों को खा जाता है। यह लक्षण रूस में बहुत अंशों में पाया जाता है। वह सदा से अपने ही बच्चों को खाता रहा है। पुराने बादशाहों के जमाने में और अभी पचास वर्ष पहले जार के शासन काल में रूस में सदा अनगिनत आदमी षड्यंत्रों और क्रान्तियों में मारे जाते रहे हैं। बोलशेविकों के जमाने में भी विरोधियों की बहुत बड़ी संख्या में हत्याएं की गयी हैं। पर समय आयेगा जब कि रूस वालों का यह खून, जो बहुत समय से पानी की तरह बहाया गया है ‘एक नये स्वर्ग और नई पृथ्वी की रचना करेगा।”
पृथ्वी की कक्षा के बदलने का असर दुनिया की आवहवा पर बहुत अधिक पड़ता है। ध्रुव के स्थान बदल जाने से बड़े-बड़े भूकम्प आते हैं। समुद्रों की गहराई में फर्क पड़ जाता है, जल की जगह थल और थल की जगह जल हो जाता है। इस बार भी पचास वर्ष के भीतर स्वीडेन, नार्वे, डेनमार्क तथा इंग्लैण्ड, फ्राँस, जर्मनी, रूस के उत्तरी भाग ऐसे ठंडे हो जायेंगे कि वहाँ रहना कठिन हो जायगा। इसके बदले में चीन, भारत, मिश्र, पैलेस्टाइन आदि जो अभी तक गर्म समझे जाते हैं, मातदिल आवहवा वाले बन जायेंगे। इससे इन देशों की बड़ी तरक्की होगी और संसार में उनका महत्व बहुत अधिक बढ़ जायगा। अटलाँटिक महासागर के बीच एक नया टापू निकल आने से अफ्रीका का सहारा (रेगिस्तान) फिर से समुद्र बन जायगा, जिससे उस देश की काया पलट जायगी और वह भावी सभ्यता का एक बड़ा केन्द्र बन जायगा।
सूर्य जब तक कुम्भ राशि में रहेगा अर्थात् अब से लगभग दो हजार वर्ष तक, संसार की सामाजिक अवस्था भी बहुत बदली रहेगी। इस युग में स्त्रियों और मजदूरों की प्रधानता होगी। संसार में से और धर्मों का ह्रास होकर ‘साम्यवाद’ का धर्म फैल जायगा। दुनिया में बड़े विचित्र सिद्धान्तों का प्रचार किया जायगा और लोग उनको मान लेंगे। अमीर लोग खुशी से अपनी धन-सम्पत्ति को त्याग देंगे और गरीब बन जायेंगे। बादशाह लोग मजदूरों के साथ बैठकर रोटी खायेंगे और मजदूर अमीरों पर हुक्म चलायेंगे। बड़े-बड़े लोगों के पुत्र-पुत्रियाँ साम्यवादी बन जायेंगे और अपने बाप-दादों की जमीन-जायदाद गरीबों में बाँट देंगे। ईसाई धर्म भी बिल्कुल बदल जायगा और उसमें नये तरह के सिद्धान्त शामिल कर लिये जायेंगे।