Magazine - Year 1957 - Version 2
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Language: HINDI
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नेहरूजी भी संसार के नाश की संभावना प्रकट करते हैं।
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(श्री. जी. श्रीकण्ठम्)
[भारत के प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल जी नेहरू इस समय संसार के सबसे बड़े शान्ति स्थापन-कर्ताओं में से हैं। कोरिया, इन्डोचीन, मिश्र सब जगह आपने संघर्ष की अग्नि को ठण्डा करके शाँति की धारा बहाई है। वास्तव में कई बार तो जब संसार के बड़े राष्ट्र युद्ध के बिल्कुल निकट पहुँच गये और एटम बम जहाजों में रखकर रवाना कर दिये गये तब नेहरू जी ने उस स्थिति को संभाला है। पर संसार की वर्तमान गतिविधि को देखकर और बड़े राष्ट्रों के राजनीतिज्ञों की मनोवृत्ति की समझ कर नेहरू जी को भी सदैव अणुयुद्ध शुरू हो जाने का खतरा दिखाई पड़ा करता है। नीचे के लेख से पाठक वर्तमान स्थिति के सम्बन्ध में उनकी सम्मति जान सकते हैं। ये विचार उनके विभिन्न भाषणों से एकत्रित किये गये हैं।]
“आज बड़े राष्ट्र युद्ध के निकट जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि आज संसार युद्ध की मनोवृत्ति के ज्वर से ग्रस्त है। यह देखकर मुझे गत महासमर के आरम्भिक महीनों की याद आ जाती है। मुझे विश्वास है कि युद्ध और हिंसा से ये समस्यायें हल नहीं हो सकतीं। तो भी संसार के सामने आज बड़े खतरे मुँह बाये खड़े हैं ओर हो सकता है कि अभी हमने जो छोटी लड़ाइयां देखी हैं वे पहला दौर हो और बड़ी लड़ाई अभी आने वाली हो। खासतौर से शक्तिशाली राष्ट्रों की महत्वाकाँक्षाएँ दुर्बल देशों को खतरे में डालती हैं। आज दुनिया के सामने दो ही विकल्प हैं- उदजन बम या पंचशील।
पारस्परिक भय और संदेह के कारण अमरीका और रूस में आतंक पैदा हो गया और ये दोनों शस्त्रीकरण में होड़ कर रहे हैं। फल यह हुआ है कि अब संसार में सशस्त्र सेनाओं की पगध्वनि और हथियारों की खनखनाहट फिर सुनाई देने लगी है। मेरा ख्याल यह नहीं है कि लड़ाई अभी हो जायगी, किन्तु संसार आज ज्वालामुखी के मुख पर बैठा है। भारत की नीति तो युद्ध से दूर रहने की है किन्तु यदि संसार में सचमुच लड़ाई हो जाती है तो उसकी लपटों की गर्मी हम तक भी जरूर पहुँचेगी। फिर भी हम स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा कर देना चाहते हैं दोनों शक्तिशाली और हथियार बंद गुटों के एक दूसरे के मुकाबले में आगे बढ़ते जाने पर भी भारत अपनी स्वतंत्र नीति पर डटा रहेगा और किसी गुटबन्दी में न पड़कर सब देशों से मित्रता का सम्बन्ध ही रखेगा।”
“इन उदजन बमों से लोगों को भय है कि यदि उनका खुला हुआ इस्तेमाल हुआ तो क्या होगा, मुझे विश्वास है कि दुनिया में आज कोई भी यह नहीं चाहता। कुछ भी हो उसके बारे में सोचने का कोई लाभ नहीं। विगत युगों में भी विनाश काल के समय लोगों ने सोचा था कि दुनिया का अन्त समीप आ रहा है। लेकिन मानव अभी जीवित और आगे बढ़ता जा रहा है।”
हम लोगों ने तो गाँधी जी के विश्वविद्यालय में निडर बनने की शिक्षा पाई है। कभी-कभी लोग उनकी शिक्षा को भूल जाते हैं, किन्तु वह बार-बार उनके काम आती है। हमारे देश के धर्मशास्त्रों में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि मनुष्य को सबसे बड़ा उपहार निडरता का ही मिल सकता है लेकिन दुनिया में आज भय फैला है। जो देश जितना अधिक शक्तिशाली है और उसके भय भी उतने ही बड़े हैं। भय पाप है, क्योंकि घृणा व हिंसा जैसे उसके साथी हैं। हमारे शान्तिपूर्ण संघर्ष का अर्थ है कि बुराई के आगे कभी घुटने नहीं टेकना। उदजन बम को भी उससे बड़ी शक्ति-मानव मस्तिष्क को काबू में किया जा सहता है।