Books - गायत्री का मन्त्रार्थ
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Language: HINDI
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भूमिका
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गायत्री के 24 अक्षरों में ज्ञान विज्ञान का महान् भण्डार छिपा हुआ है। उसके एक एक अक्षर में इतना दार्शनिक तत्व ज्ञान सन्निहित है जिसका पूरी तरह पता लगाना कठिन है। आध्यात्मिक और भौतिक सभी प्रकार के ज्ञान विज्ञान उसके गर्भ में मौजूद हैं जिनका यदि ठीक ठीक पता चल जाय तो मनुष्य उन सभी वस्तुओं को प्राप्त कर सकता है जो उसे अभीष्ट हैं।
गायत्री वेद की माता है। गायत्री से ही चारों वेद और उनकी ऋचाएं निकलीं हैं। वेद समस्त विद्याओं के भण्डार हैं। समस्त तत्व ज्ञान, और भौतिक विज्ञान वेदों के अन्तर्गत मौजूद हैं। जो कुछ वेद में है उसका सार गायत्री में है। यदि कोई गायत्री को भली प्रकार समझले तो उसे वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति, उपनिषद् आदि की सभी बातों का ज्ञान, स्वयंमेव हो सकता है।
एक एक अक्षर का, एक एक पद का, क्या अर्थ, भाव, रहस्य एवं सन्देश है उसको जानने के लिए मनुष्य का एक एक जीवन भी अपर्याप्त है। गायत्री के 24 अक्षर ज्ञान विज्ञान के 24 समुद्र हैं, उनकी पार पाना साधारण काम नहीं है। फिर भी उनका कुछ संक्षिप्त सा परिचय पाठकों को हो जाय, इस उद्देश्य में यह पुस्तक लिखी गई है।
विभिन्न ऋषियों ने अपने अपने दृष्टिकोण से गायत्री महामंत्र का अर्थ किया है। अनेक ग्रन्थों में अनेक प्रकार से उसके भाष्य उपलब्ध हैं। यह भिन्नता प्रतिकूलता या विरोध की द्योतक नहीं वरन् एक दूसरे की पूरक हैं। जो बात एक से छूट गई है वह दूसरे में पूरी की गई है फिर भी यह सब मिलाकर गायत्री का अर्थ सर्वांगपूर्ण हो गया है ऐसा नहीं कहा जा सकता। जितना प्रकट हुआ है उसकी अपेक्षा अनेक गुना रहस्य अभी अप्रकट है।
इतने विशद ज्ञान भण्डार की सम्पूर्णतया जानकारी होना मनुष्य की स्वल्प बुद्धि के लिए कठिन है। हमारे जैसे साधारण व्यक्ति के लिए तो वह और भी कठिन है। पर सार्वजनिक उपयोग के लायक जितना कुछ अर्थ ज्ञान हम उपस्थित कर सकते थे उपस्थित किया है। आशा है कि गायत्री का अर्थ जानने के उत्सुक जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक किसी हद तक उपयोगी ही सिद्ध होगी।
—श्रीराम शर्मा, आचार्य
गायत्री वेद की माता है। गायत्री से ही चारों वेद और उनकी ऋचाएं निकलीं हैं। वेद समस्त विद्याओं के भण्डार हैं। समस्त तत्व ज्ञान, और भौतिक विज्ञान वेदों के अन्तर्गत मौजूद हैं। जो कुछ वेद में है उसका सार गायत्री में है। यदि कोई गायत्री को भली प्रकार समझले तो उसे वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति, उपनिषद् आदि की सभी बातों का ज्ञान, स्वयंमेव हो सकता है।
एक एक अक्षर का, एक एक पद का, क्या अर्थ, भाव, रहस्य एवं सन्देश है उसको जानने के लिए मनुष्य का एक एक जीवन भी अपर्याप्त है। गायत्री के 24 अक्षर ज्ञान विज्ञान के 24 समुद्र हैं, उनकी पार पाना साधारण काम नहीं है। फिर भी उनका कुछ संक्षिप्त सा परिचय पाठकों को हो जाय, इस उद्देश्य में यह पुस्तक लिखी गई है।
विभिन्न ऋषियों ने अपने अपने दृष्टिकोण से गायत्री महामंत्र का अर्थ किया है। अनेक ग्रन्थों में अनेक प्रकार से उसके भाष्य उपलब्ध हैं। यह भिन्नता प्रतिकूलता या विरोध की द्योतक नहीं वरन् एक दूसरे की पूरक हैं। जो बात एक से छूट गई है वह दूसरे में पूरी की गई है फिर भी यह सब मिलाकर गायत्री का अर्थ सर्वांगपूर्ण हो गया है ऐसा नहीं कहा जा सकता। जितना प्रकट हुआ है उसकी अपेक्षा अनेक गुना रहस्य अभी अप्रकट है।
इतने विशद ज्ञान भण्डार की सम्पूर्णतया जानकारी होना मनुष्य की स्वल्प बुद्धि के लिए कठिन है। हमारे जैसे साधारण व्यक्ति के लिए तो वह और भी कठिन है। पर सार्वजनिक उपयोग के लायक जितना कुछ अर्थ ज्ञान हम उपस्थित कर सकते थे उपस्थित किया है। आशा है कि गायत्री का अर्थ जानने के उत्सुक जिज्ञासुओं के लिए यह पुस्तक किसी हद तक उपयोगी ही सिद्ध होगी।
—श्रीराम शर्मा, आचार्य