Books - गायत्री का मन्त्रार्थ
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Language: HINDI
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मंगलाचरणम्
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यन्मंडलं दीप्तिकरं विशाल,
रत्नप्रभम् तीव्र मनादि रुपम् ।
दारिद्रय दुःखक्षय कारणंच
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल प्रकाश देने वाला, विशाल, रत्न प्रभा वाला, तेजस्वी तथा अनादि रूप है जो दारिद्र और दुःख को क्षय करने वाला है, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं देवगणैः सुपूजितम्,
विप्रैःस्तुतमानव सुक्ति कोविदम् ।
तं देव देवं प्रणमामि सूर्यं,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल देवगणों द्वारा पूजित है, मानवों को मुक्ति देने वाला तथा विप्र गण जिसकी स्तुति करते हैं, उस देव देव सूर्य को प्रणाम करता हूं। वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंण्डलं ज्ञान घनत्व गम्यं,
त्रैलोक्य पूज्यं त्रिगुणात्मरूपरूपम् ।
समस्त तेजो मय दिव्य रूपं,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल ज्ञान के घनत्व को जानता है, जो त्रैलोक द्वारा पूजित एवं प्रकृति स्वरूप है, समस्त तेज वाला एवं दिव्य रूप है। वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं गूढयति प्रबोधम्,
धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।
तत्सर्व पाप क्षय कारणं च,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल गुप्त योगियों का प्रबोध रूप है, जो जनता के धर्म की वृद्धि करता है। जो समस्त पापों के क्षय का कारणभूत है वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं व्याधि विनाशदक्षम्,
यद्र्गयजुः साम सुसम्प्रगीतम् ।
प्रकाशितं येन च भूभुर्वस्वः,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मण्डल रोगों को नष्ट करने में दक्ष है, जिसका वर्णन ऋक, यजु और सोम में हुआ है, जो पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा स्वर्ग तक प्रकाशित है वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं वेदविदो वदन्ति,
गायन्ति यच्चारण सिद्ध संधाः ।
यद्योगिनो योगजुषां च संघाः,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
वेदज्ञ जिसके मंडल का वर्णन करते हैं जिसका गान, चारण, तथा सिद्धगण करते हैं। योगयुक्त योगी लोग जिसका ध्यान करते हैं वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करें।
यन्मंडलं सर्व जनेषुपूजितम्,
ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्काल कालादिमनादि रूपम्,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसके मंडल का पूजन सबलोग करते हैं, मृत्युलोक में जो प्रकाश फैलाता है, जो काल का भी कालरूप है अनादि है, वह उपासनीय सूर्य मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलम विष्णु चतुर्मुस्वास्यम,
यदक्षरं पाप हरं जनानाम् ।
यत्काल कन्पक्षय कारणंच,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल विष्णु तथा ब्रह्मा स्वरूप है, जो अक्षर है, और जनों का पाप नष्ट करता है, जो काल को भी नष्ट करने में समर्थ है, वह उपासनीय सूर्य मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलम् विश्व सृजां प्रसिद्धम्,
उत्पत्ति रक्षा प्रलय प्रगल्भम् ।
यस्मिन् जगत् संहरतेऽ खिलं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्
जिसके मंडल द्वारा विश्व का सृजन हुआ है, जो उत्पत्ति, रक्षा तथा संहार करने में समर्थ है, जिसमें यह समस्त जगत लीन हो जाता है, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलम् सर्व गतस्य विष्णोः
आत्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यम्
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल सर्व व्यापक विष्णु का स्वरूप है, जो आत्मा का परम धाम है और जो विशुद्ध तत्व है योग पथ के सूक्ष्म से सूक्ष्म भेद को भी जानता है वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं ब्रह्म विदो वदन्ति
गायन्ति यच्चारण सिद्ध संघाः ।
यन्मण्डलं वेद विदः स्मरन्ति
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिस मण्डल का वर्णन ब्रह्मज्ञ करते हैं। जिसका यशोगान चारण और सिद्धगण करते हैं जिसकी महिमा का वेदविद स्मरण करते हैं, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं वेद विदोपगीतम्,
यद्योगिनां योम पथानुगम्यम् ।
तत्सर्व वेदं प्रणामामि सूर्यम्
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसके मंडल का वर्णन वेदविद् करते हैं योग पथ का अनुसरण करके योगी लोग जिसे जानते हैं, उस सूर्य को प्रणाम है, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
उपरोक्त प्रार्थना में भगवान सविता की वन्दना है। सावित्री भी सविता की शक्ति है। गायत्री मंत्र में भगवान का पुल्लिंग शब्दों से अभिवन्दन किया है, माता को स्त्रीलिंग शब्दों में उपासना की जाती है। यह लिंग भेद कई व्यक्तियों को भ्रम में डालता है। वस्तुतः सविता और सावित्री, ईश्वर और ब्रह्म, एक ही है। वह न स्त्री है न पुरुष या वह दोनों ही है स्त्री भी पुरुष भी। जब हम माता के रिश्ते से प्रभु की उपासना करते हैं तो वह गायत्री आराधना कहलाती है।
रत्नप्रभम् तीव्र मनादि रुपम् ।
दारिद्रय दुःखक्षय कारणंच
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल प्रकाश देने वाला, विशाल, रत्न प्रभा वाला, तेजस्वी तथा अनादि रूप है जो दारिद्र और दुःख को क्षय करने वाला है, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं देवगणैः सुपूजितम्,
विप्रैःस्तुतमानव सुक्ति कोविदम् ।
तं देव देवं प्रणमामि सूर्यं,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल देवगणों द्वारा पूजित है, मानवों को मुक्ति देने वाला तथा विप्र गण जिसकी स्तुति करते हैं, उस देव देव सूर्य को प्रणाम करता हूं। वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंण्डलं ज्ञान घनत्व गम्यं,
त्रैलोक्य पूज्यं त्रिगुणात्मरूपरूपम् ।
समस्त तेजो मय दिव्य रूपं,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल ज्ञान के घनत्व को जानता है, जो त्रैलोक द्वारा पूजित एवं प्रकृति स्वरूप है, समस्त तेज वाला एवं दिव्य रूप है। वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं गूढयति प्रबोधम्,
धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।
तत्सर्व पाप क्षय कारणं च,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल गुप्त योगियों का प्रबोध रूप है, जो जनता के धर्म की वृद्धि करता है। जो समस्त पापों के क्षय का कारणभूत है वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं व्याधि विनाशदक्षम्,
यद्र्गयजुः साम सुसम्प्रगीतम् ।
प्रकाशितं येन च भूभुर्वस्वः,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मण्डल रोगों को नष्ट करने में दक्ष है, जिसका वर्णन ऋक, यजु और सोम में हुआ है, जो पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा स्वर्ग तक प्रकाशित है वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं वेदविदो वदन्ति,
गायन्ति यच्चारण सिद्ध संधाः ।
यद्योगिनो योगजुषां च संघाः,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
वेदज्ञ जिसके मंडल का वर्णन करते हैं जिसका गान, चारण, तथा सिद्धगण करते हैं। योगयुक्त योगी लोग जिसका ध्यान करते हैं वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करें।
यन्मंडलं सर्व जनेषुपूजितम्,
ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्काल कालादिमनादि रूपम्,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसके मंडल का पूजन सबलोग करते हैं, मृत्युलोक में जो प्रकाश फैलाता है, जो काल का भी कालरूप है अनादि है, वह उपासनीय सूर्य मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलम विष्णु चतुर्मुस्वास्यम,
यदक्षरं पाप हरं जनानाम् ।
यत्काल कन्पक्षय कारणंच,
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल विष्णु तथा ब्रह्मा स्वरूप है, जो अक्षर है, और जनों का पाप नष्ट करता है, जो काल को भी नष्ट करने में समर्थ है, वह उपासनीय सूर्य मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलम् विश्व सृजां प्रसिद्धम्,
उत्पत्ति रक्षा प्रलय प्रगल्भम् ।
यस्मिन् जगत् संहरतेऽ खिलं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्
जिसके मंडल द्वारा विश्व का सृजन हुआ है, जो उत्पत्ति, रक्षा तथा संहार करने में समर्थ है, जिसमें यह समस्त जगत लीन हो जाता है, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलम् सर्व गतस्य विष्णोः
आत्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यम्
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसका मंडल सर्व व्यापक विष्णु का स्वरूप है, जो आत्मा का परम धाम है और जो विशुद्ध तत्व है योग पथ के सूक्ष्म से सूक्ष्म भेद को भी जानता है वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मण्डलं ब्रह्म विदो वदन्ति
गायन्ति यच्चारण सिद्ध संघाः ।
यन्मण्डलं वेद विदः स्मरन्ति
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिस मण्डल का वर्णन ब्रह्मज्ञ करते हैं। जिसका यशोगान चारण और सिद्धगण करते हैं जिसकी महिमा का वेदविद स्मरण करते हैं, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
यन्मंडलं वेद विदोपगीतम्,
यद्योगिनां योम पथानुगम्यम् ।
तत्सर्व वेदं प्रणामामि सूर्यम्
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।।
जिसके मंडल का वर्णन वेदविद् करते हैं योग पथ का अनुसरण करके योगी लोग जिसे जानते हैं, उस सूर्य को प्रणाम है, वह उपासनीय सविता मुझे पवित्र करे।
उपरोक्त प्रार्थना में भगवान सविता की वन्दना है। सावित्री भी सविता की शक्ति है। गायत्री मंत्र में भगवान का पुल्लिंग शब्दों से अभिवन्दन किया है, माता को स्त्रीलिंग शब्दों में उपासना की जाती है। यह लिंग भेद कई व्यक्तियों को भ्रम में डालता है। वस्तुतः सविता और सावित्री, ईश्वर और ब्रह्म, एक ही है। वह न स्त्री है न पुरुष या वह दोनों ही है स्त्री भी पुरुष भी। जब हम माता के रिश्ते से प्रभु की उपासना करते हैं तो वह गायत्री आराधना कहलाती है।