Books - गायत्री का मन्त्रार्थ
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Language: HINDI
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विद्यारण्य स्वामी का गायत्री मन्त्रार्थ
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तदिति वाङ् मनोगम्यं ध्येयं यत्सूर्यमण्डले ।
सवितुः सकलोत्पतिस्थितिसंहारकारणम् ।।
समस्त विश्व की उत्पत्ति, पालन, संहार करने वाले सविता देव के मण्डल में जो वाणी मन से भी अगम्य ‘तत्’ है, उसका ध्यान करना चाहिये।
वरेण्यमाश्रयर्णीयं यदाधारमिदञ्जगत् ।।
भर्ग स्स्वसाक्षात्कारेणविद्यातत्कार्यं दाहकम् ।।
जो इस जगत का आधार तथा सबका आश्रय लेने योग्य है वह भर्ग अपने साक्षात्कार से अविद्या और तज्जनित कार्यों का नाशक है।
देवस्य द्योतमानस्य ह्यानन्दात्क्रीडतोऽपि वा ।
धीमह्यहं स एवेति तेनैवाभेद सिद्धये ।।
आनन्द स्वरूप से प्रकाशमान तथा क्रीड़ा करने वाले सविता देव का वह सविता ही है। ऐसा जानकर अभेद सिद्धि के लिए ध्यान करते हैं।
धियोऽन्तःकरण वृत्तीश्च प्रत्यक्प्रवण चारिणी ।
धियः (बुद्धिः) अन्तःकरण की वृत्ति और जीवात्मा के समक्ष चलने वाली है।
य इत्यलिङ् धर्म यत्सत्य ज्ञानादि लक्षणम् ।
यह लिड व्यत्यय है जो सत्य तथा ज्ञान स्वरूप है।
नोऽस्माकं बहुधा भिस्त भिन्न भवेदृशां तथा ।
अनेक प्रकार के अभ्यास से अनेक भेद देखने वाले लोगों को—
प्रचोदयात्प्रेरयतु प्रार्थनेयं विचार्यने ।
प्रचोदयात् अर्थात् प्रेरणा करे। यह प्रार्थना है।
तारानाथ तर्कवाचस्पति का गायत्री मन्त्रार्थसवितुर्देवस्य भर्गाख्यं परब्रह्म स्वरूपं तेज । चिन्तनीयं मम हत्पद्मस्थितेनैव भर्गाख्येन तेजसा प्रेर्यमाणस्तदेव भूर्लोकान्तरिक्ष लोकस्वर्गलोकादि ब्रह्माण्डोदरवृत्ति सकल चराचर त्रैलोक्य स्वरूपं मम हृदये वाह्ये च सूर्यमण्डले वर्तमान तेजसा एकीभूतं परब्रह्मस्वरूप ज्योतिरहमिति चिन्तयञ्जपं कुर्यादिति ।।
सविता देव का भर्ग नाम का पर ब्रह्म स्वरूपी प्रार्थनीय तेज हमारे हृदय में स्थिर भर्ग नाम के तेज से प्रेरित है। वही पृथ्वी लोक अन्तरिक्ष, स्वर्ग लोक आदि ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत विद्यमान चराचर त्रैलोक्य रूपी हमारे हृदय में तथा बाहर सूर्य मण्डल में वर्तमान तेज से एक रूप पर ब्रह्म रूप ज्योति है वह मैं हूं ऐसा चिन्तन करता हुआ जप करे।
तदिति वाङ् मनोगम्यं ध्येयं यत्सूर्यमण्डले ।
सवितुः सकलोत्पतिस्थितिसंहारकारणम् ।।
समस्त विश्व की उत्पत्ति, पालन, संहार करने वाले सविता देव के मण्डल में जो वाणी मन से भी अगम्य ‘तत्’ है, उसका ध्यान करना चाहिये।
वरेण्यमाश्रयर्णीयं यदाधारमिदञ्जगत् ।।
भर्ग स्स्वसाक्षात्कारेणविद्यातत्कार्यं दाहकम् ।।
जो इस जगत का आधार तथा सबका आश्रय लेने योग्य है वह भर्ग अपने साक्षात्कार से अविद्या और तज्जनित कार्यों का नाशक है।
देवस्य द्योतमानस्य ह्यानन्दात्क्रीडतोऽपि वा ।
धीमह्यहं स एवेति तेनैवाभेद सिद्धये ।।
आनन्द स्वरूप से प्रकाशमान तथा क्रीड़ा करने वाले सविता देव का वह सविता ही है। ऐसा जानकर अभेद सिद्धि के लिए ध्यान करते हैं।
धियोऽन्तःकरण वृत्तीश्च प्रत्यक्प्रवण चारिणी ।
धियः (बुद्धिः) अन्तःकरण की वृत्ति और जीवात्मा के समक्ष चलने वाली है।
य इत्यलिङ् धर्म यत्सत्य ज्ञानादि लक्षणम् ।
यह लिड व्यत्यय है जो सत्य तथा ज्ञान स्वरूप है।
नोऽस्माकं बहुधा भिस्त भिन्न भवेदृशां तथा ।
अनेक प्रकार के अभ्यास से अनेक भेद देखने वाले लोगों को—
प्रचोदयात्प्रेरयतु प्रार्थनेयं विचार्यने ।
प्रचोदयात् अर्थात् प्रेरणा करे। यह प्रार्थना है।
तारानाथ तर्कवाचस्पति का गायत्री मन्त्रार्थसवितुर्देवस्य भर्गाख्यं परब्रह्म स्वरूपं तेज । चिन्तनीयं मम हत्पद्मस्थितेनैव भर्गाख्येन तेजसा प्रेर्यमाणस्तदेव भूर्लोकान्तरिक्ष लोकस्वर्गलोकादि ब्रह्माण्डोदरवृत्ति सकल चराचर त्रैलोक्य स्वरूपं मम हृदये वाह्ये च सूर्यमण्डले वर्तमान तेजसा एकीभूतं परब्रह्मस्वरूप ज्योतिरहमिति चिन्तयञ्जपं कुर्यादिति ।।
सविता देव का भर्ग नाम का पर ब्रह्म स्वरूपी प्रार्थनीय तेज हमारे हृदय में स्थिर भर्ग नाम के तेज से प्रेरित है। वही पृथ्वी लोक अन्तरिक्ष, स्वर्ग लोक आदि ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत विद्यमान चराचर त्रैलोक्य रूपी हमारे हृदय में तथा बाहर सूर्य मण्डल में वर्तमान तेज से एक रूप पर ब्रह्म रूप ज्योति है वह मैं हूं ऐसा चिन्तन करता हुआ जप करे।