Books - गायत्री का मन्त्रार्थ
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Language: HINDI
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आचार्य सायण का गायत्री भाष्य
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सर्सासुश्रुतिषु प्रसिद्धस्य देवस्य द्योतमानस्य सवितुः सर्वान्तर्यामितया ग्रेरकस्य जगतस्रष्टुः परमेश्वरस्य आत्मभूतं वरेण्यं सवैरूपास्यतयाज्ञेयतया चसम्भजनीयम् ।
सब श्रुतियों में प्रसिद्ध प्रकाशमान देव सविता सर्वान्तर्यामी के रूप में प्रेरणा देने वाला, जगत का सृष्टा परमेश्वर का आत्मभूत वरेण्य, सबके उपासनीय जानने और भजन करने योग्य है।
भर्गः अविद्या तत्कार्ययोर्भर्जनाद्भर्गः स्वयं ज्योतिः पर ब्रह्मात्मकं तेजः ।
अविद्या तथा उसके कार्यों का भर्जन करने के कारण उसे भर्ग कहते हैं वह स्वयं ज्योति और परब्रह्म का तेज है।
धीमहि तद्योहं सोऽसौ योऽसौ सोहमित वयं ध्यायेम ।
जो मैं हूं सो वह है, जो वह है सो मैं हूं, ऐसा ध्यान करते हैं।
[यद्वा] तदिति भर्गो विशेषणम् । सवितुर्देवस्य तत्तादृशं भर्गः धीमहि कि तदित्यपेक्षायामाह । यइति लिंगव्यत्ययः यद्भर्गो धियः प्रचोदयादितितद्धयायेमेति समन्वयः ।
अथवा—तत् शब्द भर्ग का विशेषण है। सविता देव के सदृश्य उस भर्ग का ध्यान करता हूं वह क्या है—वह भर्ग बुद्धि को प्रेरणा देता है, उसका ध्यान करते हैं। यह समन्वय है।
(यद्वा) यः सविता सूर्यो धियः कर्माणि प्रचोदयात् प्रेरयति तस्य सवितुः सर्वस्य प्रसवितुर्देवस्य द्योत मानस्य सूर्यस्य तत् सर्वे दृश्यमानतया प्रसिद्धं, वरेण्यं सर्वैः भजनीय भर्गः पापानां पातकं तेजो मण्डलं धीमहि ध्येयतया मनसा धारयेम ।
जो सविता (तेजस्वी) बुद्धि को कर्म के लिए प्रेरणा देता है उस सब का प्रसव करने वाले सविता देव के, प्रकाशमान सूर्य के सब को प्रत्यक्ष होने के कारण, सब को दिखलाई देने के कारण सबके द्वारा उपासनीय भजन करने योग्य भर्ग को पापों के नष्ट करने वाले तेजो मण्डल को ध्येय समझकर धीमहि अर्थात् धारण करते हैं।
सब श्रुतियों में प्रसिद्ध प्रकाशमान देव सविता सर्वान्तर्यामी के रूप में प्रेरणा देने वाला, जगत का सृष्टा परमेश्वर का आत्मभूत वरेण्य, सबके उपासनीय जानने और भजन करने योग्य है।
भर्गः अविद्या तत्कार्ययोर्भर्जनाद्भर्गः स्वयं ज्योतिः पर ब्रह्मात्मकं तेजः ।
अविद्या तथा उसके कार्यों का भर्जन करने के कारण उसे भर्ग कहते हैं वह स्वयं ज्योति और परब्रह्म का तेज है।
धीमहि तद्योहं सोऽसौ योऽसौ सोहमित वयं ध्यायेम ।
जो मैं हूं सो वह है, जो वह है सो मैं हूं, ऐसा ध्यान करते हैं।
[यद्वा] तदिति भर्गो विशेषणम् । सवितुर्देवस्य तत्तादृशं भर्गः धीमहि कि तदित्यपेक्षायामाह । यइति लिंगव्यत्ययः यद्भर्गो धियः प्रचोदयादितितद्धयायेमेति समन्वयः ।
अथवा—तत् शब्द भर्ग का विशेषण है। सविता देव के सदृश्य उस भर्ग का ध्यान करता हूं वह क्या है—वह भर्ग बुद्धि को प्रेरणा देता है, उसका ध्यान करते हैं। यह समन्वय है।
(यद्वा) यः सविता सूर्यो धियः कर्माणि प्रचोदयात् प्रेरयति तस्य सवितुः सर्वस्य प्रसवितुर्देवस्य द्योत मानस्य सूर्यस्य तत् सर्वे दृश्यमानतया प्रसिद्धं, वरेण्यं सर्वैः भजनीय भर्गः पापानां पातकं तेजो मण्डलं धीमहि ध्येयतया मनसा धारयेम ।
जो सविता (तेजस्वी) बुद्धि को कर्म के लिए प्रेरणा देता है उस सब का प्रसव करने वाले सविता देव के, प्रकाशमान सूर्य के सब को प्रत्यक्ष होने के कारण, सब को दिखलाई देने के कारण सबके द्वारा उपासनीय भजन करने योग्य भर्ग को पापों के नष्ट करने वाले तेजो मण्डल को ध्येय समझकर धीमहि अर्थात् धारण करते हैं।