Books - गायत्री का मन्त्रार्थ
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Language: HINDI
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‘‘गायत्री - मंत्रार्थ’’ का द्वितीय खण्ड (गायत्री पर आचार्य सायण का भाष्य)
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तत् तस्य भर्गस्तेजः धीमहि ध्यायेमचिन्तयाम अत्र यद्यपि तदिति पदं भर्गो विशेषणं नास्ति तथापि तच्छब्द प्रयोगादेव यच्छब्द प्रयोगोपलभ्यते तस्यकस्य ‘सवितुः’ सर्व भावनानां प्रसवितुः पुनः किं भूतस्य ‘देवस्य’ दीप्ति क्रीडादि युक्तस्य तं कं यो भर्गो नोऽस्माकं धियो बुद्धिः प्रचोदयात् ।
तत् अर्थात् इनके भर्ग अर्थात् तेज का ध्यान चिन्तन करते हैं।
यहां पर यद्यपि तत् शब्द का विशेषण नहीं हैं तथापि तत् शब्द का प्रयोग से यत् शब्द का प्रयोग उपलक्षित होता है।
उनके-किनके? (सवितुः) समस्त भावों के उत्पन्न कारक का, पुनः वह कैसा है। (देवस्य) प्रकाश, तथा क्रीड़ादि से युक्त के तेज का ध्यान करते हैं।
वह तेज कौन है? जो तेज हमारी (धियः) बुद्धि को (प्रचोदयात्) प्रेरणा करता है।
तादिहि भर्ग शब्देन वहुविधिमाहात्म्य मुक्तम् । सवितृ मण्डलगनादित्य देवता स्वपुरुष उच्चतेअत्र यद्यपि सवितुर्भर्गः इति । सवितृ भर्गयोर्भिन्नता गायत्रीमन्ये प्रतीपते तथापि परमार्थ चिन्तायां सवितृभर्गयीर्भेदो न विद्यते एव स एव सविता स एव भर्गः सवितृभर्गयोः अद्वैतमेव तथा च राहो शिर इतिवत् षष्टीत्वभेद साधिकापुनरपि किंभूतं भर्गः वरेण्यं प्रवणीयं प्रार्थनीयम् । जन्म मृत्यु दुःख नाशाय ध्यानेन उपासनीयमित्यर्थः । एवं गायत्र्या स्तस्यच महात्म्यभुपवर्ण्य पुनस्तथव महा प्रभास्वं महाव्याहृति भिर्विशेषणी भूतासिराभिधीयते तद्यथा कि भूतं भर्गः भूरादि व्याप्य तिष्ठन्मभिति शेषः तथा च भरादि त्रैलोक्य प्रकाशकम् । भूर्भुमिलोकः भुवः भुवर्लोकः अन्तरिक्ष, स्वः स्वर्लोकः एवमुपरि क्रमेणवस्थितान् लोकानभिव्याप्यावतिष्ठ मनोऽसौ भर्गः एतांस्त्रींल्लोकानेव प्रदीपवत् प्रकाशयती त्यथः।
यहां पर उस भर्ग शब्द से अनेक प्रकार का महात्म्य कहा है। सवितृ मण्डल के अन्तर्गत जो आदित्य देवता है। वह सर्व व्यापी पुरुष कहा जाता है।
गायत्री मन्त्र में यद्यपि ‘सवितुभर्गः’ यहां पर सविता और भर्ग में भिन्नता प्रतीत है तथापि परमार्थ चिन्तन में सविता और भर्ग में भेद नहीं है किन्तु वही सविता है वही भर्ग है, इस प्रकार अद्वैत है। और (राहोः शिर) राहु का शिर, अर्थात् राहु ही शिर है, इस प्रकार सवितुर्भर्गः में वही हो गई है।
फिर वह कैसा है? (वरेण्यं) प्रार्थना करने योग्य जन्म मृत्यु रूपी दुःख नष्ट करने के लिए ध्यान द्वारा उपासनीय है।
इस प्रकार गायत्री का महात्म्य वर्णन कर पुनः भर्ग के महात्म्य को महा व्याहृति द्वारा विस्तार पूर्वक कहते हैं।
वह भर्ग कैसा? जो पृथ्वी आदि लोकों में व्याप्त है और पृथ्वी आदि तीनों लोकों को प्रकाशित करता है। भूः—पृथ्वी लोक है।
भुव—भुवर्लोक अर्थात् अन्तरिक्ष है।
स्वः—स्वर्ग लोक है। इस प्रकार ऊपर क्रमशः स्थिति लोकों में व्याप्त होकर वर्तमान वह भर्गः इन तीन लोकों को इस प्रकार दीपक के सदृश्य प्रकाशित करता है।
तत् अर्थात् इनके भर्ग अर्थात् तेज का ध्यान चिन्तन करते हैं।
यहां पर यद्यपि तत् शब्द का विशेषण नहीं हैं तथापि तत् शब्द का प्रयोग से यत् शब्द का प्रयोग उपलक्षित होता है।
उनके-किनके? (सवितुः) समस्त भावों के उत्पन्न कारक का, पुनः वह कैसा है। (देवस्य) प्रकाश, तथा क्रीड़ादि से युक्त के तेज का ध्यान करते हैं।
वह तेज कौन है? जो तेज हमारी (धियः) बुद्धि को (प्रचोदयात्) प्रेरणा करता है।
तादिहि भर्ग शब्देन वहुविधिमाहात्म्य मुक्तम् । सवितृ मण्डलगनादित्य देवता स्वपुरुष उच्चतेअत्र यद्यपि सवितुर्भर्गः इति । सवितृ भर्गयोर्भिन्नता गायत्रीमन्ये प्रतीपते तथापि परमार्थ चिन्तायां सवितृभर्गयीर्भेदो न विद्यते एव स एव सविता स एव भर्गः सवितृभर्गयोः अद्वैतमेव तथा च राहो शिर इतिवत् षष्टीत्वभेद साधिकापुनरपि किंभूतं भर्गः वरेण्यं प्रवणीयं प्रार्थनीयम् । जन्म मृत्यु दुःख नाशाय ध्यानेन उपासनीयमित्यर्थः । एवं गायत्र्या स्तस्यच महात्म्यभुपवर्ण्य पुनस्तथव महा प्रभास्वं महाव्याहृति भिर्विशेषणी भूतासिराभिधीयते तद्यथा कि भूतं भर्गः भूरादि व्याप्य तिष्ठन्मभिति शेषः तथा च भरादि त्रैलोक्य प्रकाशकम् । भूर्भुमिलोकः भुवः भुवर्लोकः अन्तरिक्ष, स्वः स्वर्लोकः एवमुपरि क्रमेणवस्थितान् लोकानभिव्याप्यावतिष्ठ मनोऽसौ भर्गः एतांस्त्रींल्लोकानेव प्रदीपवत् प्रकाशयती त्यथः।
यहां पर उस भर्ग शब्द से अनेक प्रकार का महात्म्य कहा है। सवितृ मण्डल के अन्तर्गत जो आदित्य देवता है। वह सर्व व्यापी पुरुष कहा जाता है।
गायत्री मन्त्र में यद्यपि ‘सवितुभर्गः’ यहां पर सविता और भर्ग में भिन्नता प्रतीत है तथापि परमार्थ चिन्तन में सविता और भर्ग में भेद नहीं है किन्तु वही सविता है वही भर्ग है, इस प्रकार अद्वैत है। और (राहोः शिर) राहु का शिर, अर्थात् राहु ही शिर है, इस प्रकार सवितुर्भर्गः में वही हो गई है।
फिर वह कैसा है? (वरेण्यं) प्रार्थना करने योग्य जन्म मृत्यु रूपी दुःख नष्ट करने के लिए ध्यान द्वारा उपासनीय है।
इस प्रकार गायत्री का महात्म्य वर्णन कर पुनः भर्ग के महात्म्य को महा व्याहृति द्वारा विस्तार पूर्वक कहते हैं।
वह भर्ग कैसा? जो पृथ्वी आदि लोकों में व्याप्त है और पृथ्वी आदि तीनों लोकों को प्रकाशित करता है। भूः—पृथ्वी लोक है।
भुव—भुवर्लोक अर्थात् अन्तरिक्ष है।
स्वः—स्वर्ग लोक है। इस प्रकार ऊपर क्रमशः स्थिति लोकों में व्याप्त होकर वर्तमान वह भर्गः इन तीन लोकों को इस प्रकार दीपक के सदृश्य प्रकाशित करता है।